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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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Blog posts : "फेसबुक से "

न्यूज पोर्टल ऐसे शीर्षक लगाते हैं जो पाठक की आदिम आदत का पोषण कर सकें

विनीत कुमार। न्यूज वेबसाइट/पोर्टल  की स्टोरी का शीर्षक लगाने के पीछे का मनोविज्ञान भीतर की सामग्री क्या है, ये बताना नहीं बल्कि हमारे पाठक ताक-झांक की आदत के साथ बड़े हुए हैं तो क्लिक करेंगे ही से आत्मविश्वास के साथ अपना कारोबार जारी रखना होता है.…

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बिग बॉस की नजर मंचन पर भी!

राजेश कुमार/ जी हां, आप कुछ भी कर रहे हों ...चाहे कोई राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधि कर रहे हों , आप पर बिग बॉस की नजर है । जॉर्ज ऑरवेल ने अपने अपने उपन्यास 1984 में भले बहुत पहले इस खतरे की तरफ इशारा कर दिया था, लेकिन उस सत्य से सामना इनदिनों स्पष्ट देखने को मिल रहा है । …

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हर अखबार लगभग एक जैसा खराब है!

विष्णु नागर। जिंदगी भर हिंदी पत्रकारिता की। हिंदी अखबारों का आज का मानसिक दिवालियापन, सरकार की जीहुजूरी, हिंदुत्व का प्रोपेगैंडा और हिंदी को विकलांग बनाने की साजिश सी इस भाषा के अखबारों तथा टीवी चैनलों पर दिखाई पड़ती है, वह व्यथित करती है। गोदी चैनल तो दिनरात नफरत की मशीनगन बने …

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पत्रकार या मेरा पत्रकार ?

यदि इसे हमारे पत्रकार लिखा जाता तो वही अर्थ और भाव निकलता जो इससे निकल रहा है ?

विनीत कुमार/ आप जिस मीडिया संस्थान के लिए रात-दिन एक किए रहते हैं, ख़ून-पसी…

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ख़तरनाक काम हो चुका है पत्रकारिता

प्रश्नपत्र लीक मामले को उजागर करने वाले बलिया के दो ग्रामीण पत्रकार जेल में

शीतल पी सिंह/ निहायत ही ख़तरनाक काम हो चुका है मोदीजी के उदय के बाद । अब विभि…

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अब पत्रकारिता नहीं, विज्ञापनकारिता !

वीरेंद्र यादव/ बातचीत की शुरुआत में छोटी-सी कहानी। बेटा है आदित्‍य। एक साथी आये थे घर पर। उन्‍होंने आदित्‍य से कहा कि पापा को बोलो कि पत्रिका में सिर्फ विज्ञापन निकालें। उसका उत्‍तर था- पत्रिका में पढ़ने के लिए खबर भी होनी चाहिए न।…

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एक माध्यम के तौर पर टीवी तेजी से मर रहा है

मीडिया का शून्य लागत सामग्री फॉर्मूला 

विनीत कुमार। यूक्रेन-कीव में जो लोग मुश्किलों में फंसे हैं, वो बड़ी मुश्किल से विजुअल्स बनाकर अपने परिजनों से साझा कर रहे हैं. उनके परिजन भरी उम्मीद से उन्हें आगे बढ़ा रहे…

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हिन्दी पत्रकारों का बुढ़ापा और भविष्य

संजय कुमार सिंह / छह आठ महीने पहले एक अनजान नंबर से फोन आया था। फोन करने वाले ने पूछा कि संजय जी आपका नंबर मेरे पास काफी समय से सेव है मैं पहचान नहीं पा रहा हूं कि आप कौन हैं। सभ्य और बुजुर्ग सी आवाज थी तो मैंने अपना परिचय बता दिया। उन्होंने भी अपना नाम और हाल-चाल सब बताया…

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मीडिया के बड़बोलेपन में इन्डस्ट्री के भीतर का ख़तरनाक सन्नाटा बरक़रार

विनीत कुमार। एंकरिंग करते हुए दीपक चौरसिया का “बेउडा वीडियो” सामने आने के बाद लोग मुझे लिख रहे हैं कि आपको भले ही आश्चर्य हो रहा होगा, पूरी इन्डस्ट्री को पता है कि वो क्या करते हैं ?…

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मिडिया का घेरा और स्वतंत्र राय

राम जी तिवारी/ किसी भी मुद्दे पर राय बनाते समय आप कौन सी तकनीक अपनाते हैं । एक तो यह होता है कि जो मुख्यधारा की मीडिया में बात प्रचारित की जा रही होती है, हम उसी के साथ अपना सुर भी मिलाने लगते है। दूसरे यह भी संभव है कि हम मुख्यधारा की मीडिया से इतना चिढ़े होते हैं कि वह जो भी क…

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विदेश में भी भारत के पत्रकार चाटुकारिता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर रहे

गिरीश मालवीय। मीडिया की छवि देश में तो गोदी में बैठे मीडिया की बन ही गयी है पर अब तो विदेश में भी भारत के पत्रकार बेहयाई ओर चाटुकारिता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर रहे हैं.जना ओम मोदी कल जबरदस्ती यूएन में तैनात स्नेहा दुबे नाम की अधिकारी जिन्होंने दो दिन पहले यूएन के सम्मेलन म…

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मीडिया ने सच बताने का दायित्व बिल्कुल किनारे कर दिया है

गिरीश मालवीय। कल दैनिक भास्कर के बहुत से संस्करणों के फ्रंट पेज पर एक लेख छापा गया जिसका शीर्षक था  'अब आधार जैसा यूनिक हेल्थ कार्ड मिलेगा जिसमें आपका पूरा मेडिकल रिकार्ड होगा'........दरअसल इस लेख में जो भी जानकारी दी गयी वो लगभग साल भर पुरानी थी.…

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समस्या पर बात करना यदि निगेटिविटी, तो फिर पत्रकारिता का मतलब क्या

विनीत कूमार/ पॉजेटिव और निगेटिव को लेकर हमारी समझ इतनी सपाट है कि कारोबारी मीडिया को सकारात्मक न्यूज के नाम पर नयी दूकान की संभावना दिखने लग जाती है.…

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अपने कार्यक्रम का वीडियो भी प्रधानमंत्री ही बना कर देंगे तो गोदी मीडिया क्या करेगा

रवीश कुमार। पिताजी के पूछने पर कि शाम को देर से क्यों लौटे ,कहां थे तो बेटों के पास जवाब तैयार रहता है। पिताजी, ट्यूशन के बाद हम लोग अमित के घर पर ग्रुप स्टडी करने लगे थे। वही हाल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है। दुनिया खोज रही है कि भारत के प्रधानमंत्री अफगानिस्तान संकट …

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एंकर को अहसास नहीं, उनका संवाददाता जान पर खेलकर लाइव कर रहा है

विनीत कुमार। अंजना ओम कश्यप को एहसास ही नहीं कि उनका संवाददाता जान पर खेलकर लाइव कर रहा है..

कंधार से आजतक के संवाददाता सिद्दिकी खां लाइव हैं. उनके चारों…

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एक और मीडिया संस्थान पर छापेमारी!

सिलसिला सा बनता दिख रहा

उर्मिलेश / ये लो जी, एक और मीडिया संस्थान पर छापेमारी! यह लखनऊ(यूपी) स्थित एक चर्चित चैनल है: भारत समाचार चैनल. इसके संपादक के घर और दफ़्तर पर छापेमारी की खबर आ रही है! यह क्षेत्रीय चैनल कोरोना की तबाही और सरकारी लापरवा…

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क्या न्यूज चैनल और सोशल मीडिया, मीडिया छात्रों को निठल्ला बना रहे हैं ?

विनीत कुमार। पेशे की बुनियादी बातें एकदम ठिकाने लगाकर इसकी या उसकी पक्ष लेने का सबसे ज़्यादा नुक़सान उन छात्रों और नए मीडियाकर्मियों को हुआ है जिनका सीखने-समझने और मेहनत करके इस पेशे में मक़ाम हासिल पर से तेजी से भरोसा उठने लगा है. उन्हें लगता है कि बिना विषय को समझे, ख़ूब मेहन…

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क्या अखबार भी एक 'लक्जरी' है?

सीटू तिवारी। सुबह वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारीजी को देखा कि वो अपने ही भोजपुरिया ठसक अंदाज़ में अपने पोर्टल 'न्यूज़ हाट' पर अखबारों में छपी खबरों की समीक्षा कर रहे थे।  …

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सहज संप्रेषण पत्रकारिता की पहली शर्त

ओम थानवी। पिछले साल मैंने एक टिप्पणी लिखी थी कि जब टीका शब्द हिंदी में है, हिंदी मीडिया ने वैक्सीन प्रयोग क्यों ओढ़ लिया है? बहरहाल, अच्छा लगा कि कुछ अख़बार-टीवी टीका-टीकाकरण भी लिखने लगे। …

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आजीवकों में कोई ईश्वर का दूत नहीं होता

कैलाश दहिया/ महान आजीवक कबीर साहेब के नाम से लोग अभी भी गफलत में हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर भी गलत कयास लगाए गए हैं। वैसे तो कबीर साहेब को ले कर सारी बहसें खत्म की जा चुकी हैं। जिस में अच्छे-अच्छे खेत रहे। बावजूद इस के, निहित स्वार्थवश अभी भी कबीर पर लोग मुंह उठाकर बोलने लगत…

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सम्पादक

डॉ. लीना