कैलाश दहिया/ आर.डी. आनंद ने दिनांक 25 मार्च, 2021को अपनी फेसबुक वॉल पर 'आम्बेडकरवादी और आजीवक' शीर्षक से अपना लेख लगाया है। सर्वप्रथम तो, इन के लेख का शीर्षक ही गलत है। आजीवक एक कंप्लीट धर्म है, जो अपने पर्सनल कानूनों के साथ दलितों की समस्याओं को हल करता आया है। इस के विपरीत अंबे…
Blog posts : "बहस "
समाजवाद की आड़ में जारकर्म समर्थक का चेहरा
दलित आंंदोलन के विरोधियों को आजीवक चिंतकों का डर होना ही चाहिए!
अरुण आजीवक/ बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने कहा था 'समाज की प्रगति उस समाज के महिलाओं की प्रगति से मापना चाहिए।' इसी तर्ज पर यह भी कहा जा सकता है कि समाज की मजबूती उस समाज के साहित्य से भी तय होती है।…
जारकर्म की डाइवर्सिटी मांगते दुसाध
कैलाश दहिया/ यह अच्छी बात है कि सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग पकड़ में आ रहे हैं। मैंने 02 फरवरी, 2021 को फेसबुक पर अपनी निम्नलिखित पोस्ट डाली थी...…
जार चिंतन शिरोमणि- अर्थात्, प्रेम कुमार मणि
कैलाश दहिया/ पिछड़ों के विचारक प्रेम कुमार मणि ने 4 सितंबर, 2020 को अपनी फेसबुक वॉल पर 'यह जार चिंतन क्या है?' शीर्षक से अपना लेख लगाया है। बताया जाए, सर्वप्रथम तो इन का यह शीर्षक ही गलत है। यह होना चाहिए था 'यह दलित चिंतन या मोरल चिंतन क्या है?' यह भी बताया जा सकता है कि इस मोरल…
दलित साहित्य में अड़ंगे लगाते द्विज

भारतीय मीडिया में विदेशी एजेंट
यह तथ्य कमोवेश सबको ज्ञात हैं कि भारतीय मीडिया का एक बडा तबका अपनी आजीविका विदेशियों की ऐजेंटी से चलाता है। हर एक समाचार पत्र का पाठक या टेलीविजन का जागरूक दर्शक यह जानता है कि मीडिया में एक तबका है जो अमेरिका की भारत से ज्यादा चिंता करता है तथा उसके लिये …
लो, ब्राह्मणों की बुधिया तो पकड़ी गई
कैलाश दहिया / 12 सितम्बर 2005,
प्रखर आजीवक (दलित) चिन्तक डा. धर्मवीर की आलोचना की किताब ‘प्रेमचंद: सामंत का मुंशी’ का लोकार्पण का…
आखिर क्यों पढ़ें डा. धर्मवीर का साहित्य
कैलाश
दहिया / डा. धर्मवीर का साहित्य क्यों
पढ़ें? यह कोई छोटा सवाल नहीं, बल्कि हिन्दी साहित्य का केन्द्रीय प्रश्न है। हिन्दी साहित्य या किसी भी
भाषा के साहित्य का मूलभूत प्रश्न क्या है?
या,
साहित्य
क्यों लिखा और पढ़ा जाता है? ऐसे ही सवालों के बीच डा. धर्मवीर के
साहित्य की पर…