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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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अर्पिता-आयुष विवाह में निहित संदेश

विवाह में सलीम खान व उनके बेटों ने कितने पैसे खर्च किए या उसमें कौन-कौन शरीक हुआ, इन 'मसालाखेज़”  बातों के साथ मीडिया द्वारा दिखाये गए विवाह में निहित उन संदेशों को भी समझा जाए जो हमारे समाज में फैले रूढ़ीवादिता को ठेंगा दिखाते हैं

निर्मल रानी/ पिछले दिनों देश के टीवी चैनल व समाचार पत्र व पत्रिकाएं फिल्म अभिनेता सलमान खान की बहन अर्पिता के विवाह संबंधी समाचारों से पटे पड़े थे। मीडिया द्वारा इस विवाह से संबंधित जिन पहलुओं पर खासतौर पर विस्तार से रोशनी डाली जा रही थी उनमें विवाह आयोजन पर होने वाले भारी-भरकम खर्च,विवाह संबंधी आयोजन कहां-कहां हो रहे हैं और कौन-कौन सी रस्में अदा की जा रही हैं। कौन-कौन सी विशिष्ट हस्तियां इस हाई प्रोफाईल विवाह समारोह में आमंत्रित की गईं।किसने हैदराबाद में होने वाली विवाह रस्मों में शिरकत की तो कौन-कौन से लोग मुंबई की पार्टी में शरीक हुए तथा किन-किन सितारों ने इस शादी में खुशियां बांटने के लिए स्टेज पर ठुमके लगाए। सलमान खान ने स्टेज पर आने के लिए कैटरीना कैफ को क्या कहकर संबोधित किया जैसी बातें शामिल रहीं। हालांकि कुछ समाचार पत्रों ने अर्पिता का सलमान के घर में प्रवेश कैसे हुआ इस बात का ाी जि़क्र किया। नि:संदेह हमारे देश व समाज के लिए खासतौर पर अपने धर्म व जाति पर इतराने वाले तथा बात-बात में अपनी जाति,नस्ल तथा 'खानदानी हड्डी का ढिंढोरा पीटने वाले लोगों के लिए सलमान की बहन अर्पिता तथा आयुष का विवाह एक सबक पेश करता है। इतना ही नहीं बल्कि इस रिश्ते में छिपा हुआ मानवता,सर्वधर्म संभाव व सांप्रदायिक सौहार्द्र का भी एक ऐसा पहलू पोशीदा है जिसकी मिसाल देश में कम ही देखने को मिलती है।

गौरतलब है कि सलमान खान के पिता व देश के जाने-माने पटकथा लेखक सलीम खान दो दशक पूर्व मुंबई में एक निर्धारित मार्ग से होकर आया-जाया करते थे। उनके रास्ते में एक जगह एक भिखारिन अपनी एक बच्ची के साथ फुटपाथ के किनारे बैठी भीख मांगा करती थी। सलीम खान उसे अपनी श्रद्धानुसार प्रतिदिन कुछ न कुछ दान देते रहते थे। एक दिन अचानक उस महिला का देहांत हो गया और वह अपनी छोटी सी बच्ची को फुटपाथ पर रोता-बिलखता छोड़कर चल बसी। सलीम खान भी इत्तेफाक से उसी समय उस रास्ते से गुज़रे। उन्होंने उस मृतक महिला के हिंदू रीति-रिवाज से संस्कार करने हेतु अपनी सामथ्र्य के अनुसार दान दिया तथा उस यतीम बच्ची को साथ लेकर अपने घर आ गए। उन्होंने अपने बेटों सलमान खान, अरबाज़ खान तथा सुहैल खान से कहा कि मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी बहन ले आया हूं। उस बच्ची का नाम अर्पिता था। ज़ाहिर है वह एक उच्चस्तरीय व संपन्न सेलिब्रिटी परिवार में पली-बढ़ी। यहीं उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई। परंतु सलीम खान व उनके बेटों ने अर्पिता को अर्पिता ही रहने दिया। उसका नामकरण अपने मुस्लिम धर्म के अनुरूप करने की अथवा उसे मुस्लिम संस्कार देने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं की। गोया वह एक हिंदू मां-बाप की बेटी थी और सलीम खान के परिवार ने उसे उसके ही धार्मिक संस्कारों के अनुसार परवरिश होने दी। अर्पिता के जीवन के केवल इतने छोटे से घटनाक्रम में ही हमें कई बातें साफतौर पर दिखाई देती हैं जिससे समाज को सबक लेने व आंख खोलने की स त ज़रूरत है। हमारे समाज में इस प्रकार फुटपाथ पर लोगों के गरीबी,भुखमरी,लाचारी तथा बीमारी से प्राण त्यागने जैसी खबरें कोई नई नहीं हैं। आए दिन देश के अनेक शहरों में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। जिसके लाखों लोग चश्मदीद गवाह भी रहते हैं। इस प्रकार के दर्दनाक दृश्य देखकर बहुत से लोग द्रवित भी हो जाते हैं। कुछ लोग अपनी सामथ्र्य के अनुसार दान देकर अंतिम संस्कार भी करा देते हैं। परंतु किसी लावारिस बच्चे को और वह भी एक भिखारी के बच्चे को फुटपाथ से ले जाकर अपने घर में अपनी बच्ची जैसी परवरिश करना तथा उसे उसके धर्म व आस्था पर चलने के लिए स्वतंत्र रखना सलीम खां जैसे लोगों के ही वश की बात है। निश्चित रूप से सलीम खान ने ऐसा कर परोपकार का वह मापदंड स्थापित किया है जिसकी दूसरी मिसाल शायद ही इस देश में कहीं देखने को मिल सके।

अब आईए आयुष यानी अर्पिता के पति का जि़क्र करते हैं। आयुष के पिता अनिल शर्मा इस समय हिमालच प्रदेश सरकार में ग्रमाीण विकास मंत्री हैं। इतना ही नहीं बल्कि आयुष के दादा यानी अनिल शर्मा के पिता पंडित सुखराम भारत सरकार में केंद्रीय संंचार मंत्री भी रह चुके हैं। गोया पंडित सुखराम का परिवार हिमाचल प्रदेश के उच्चकोटि के प्रतिष्ठित,राजनैतिक व ब्राह्मण परिवारों में गिना जाता है। इस परिवार के होनहार उद्योगपति नवयुवक आयुष ने अर्पिता से विवाह रचाया। ज़ाहिर है आयुष के परिजनों को भी अर्पिता की व्यक्तिगत् पारिवारिक पृष्ठभूमि खासतौर पर उसकी भिखारिन मां के बारे में ज़रूर पता होगा। परंतु एक उच्चस्तरीय ब्राह्मण परिवार का सदस्य होने के बावजूद बिना किसी हिचकिचाहट के पंडित सुखराम के पौत्र ने अर्पिता से विवाह रचाया। वह यह भी भलीभांति जानते हैं कि अर्पिता का पालन-पोषण एक मांसाहारी मुस्लिम परिवार में हुआ है। इसके बावजूद इस ब्राह्मण परिवार ने इस रिश्ते में कोई कठिनाई महसूस नहीं की। गोया आयुष के परिजनों ने भी जाति-धर्म तथा हड्डी'जैसे संकीर्ण बंधनों से ऊपर उठकर ब्राह्मण व मुसलमानों के मध्य आमतौर पर बनी छुआछूत की खाई को पाटने की खूबसूरत मिसाल पेश की है।

दूसरी ओर आमतौर पर देश में अधिकांशत: यही देखा जाता है कि जिन लोगों के पास न तो नाम होता है,न पैसा न शोहरत और न ही किसी प्रकार की सामाजिक प्रतिष्ठा। शिक्षा के नाम पर भी या तो ऐसे परिवार अशिक्षित होते हैं या फिर नाममात्र की शिक्षा ग्रहण की होती है। अधिकांशत: यह वर्ग या तो निम्र वर्ग का है या फिर मध्यम वर्ग का अथवा मध्यम वर्ग के लोग। आपको देश में लाखों ऐसे परिवार हिंदू व मुस्लिम सभी धर्मों में देखने को मिलेंगे जिनके पास भले ही कुछ भी न हो परंतु जाति-धर्म,हड्डी के नाम पर इनमें पूरी 'अकड़Ó पाई जाएगी। यदि इन्हें इनकी जन्मपत्री के अनुसार इनकी जाति व गोत्र के अनुसार रिश्ता न मिले तो ऐसे लोग सारी उम्र अपनी बेटियां व बेटों को कुंआरा रखना तो स्वीकार कर लेंगे परंतु अपनी तथाकथित 'हड्डीÓ से अलग हटकर विवाह करना कतई स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसी ही संकीर्ण सोच रखने वाले वे लोग हैं जो आए दिन तथाकथित ऑनर किलिंग के नाम पर मीडिया की सुिर्खयों में रहते हैं। अभी पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम लड़की व उसके दलित समुदाय से संबंध रखने वाले पति को लड़की के परिजनों ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि इन दोनों ने अपने-अपने परिवार की मरज़ी के बिना दूसरे धर्म में विवाह रचाया था। ऐसी घटना के बाद एक सवाल यह बार-बार उठता है और भविष्य में भी उठता रहेगा कि क्या ऐसी हत्याओं के बाद हत्यारों के तथाकथित मान-स मान वापस आ जाते हैं? ऐसी हत्या के बाद हत्यारों द्वारा जेल भुगतने की लंबी प्रक्रिया क्या उनके घर-परिवार व उनके तथाकथित मान-स मान को आहत नहीं करती? और सबसे बड़ी बात यह कि जब ऐसी शादियां किसी प्रकार रच ही ली जाती हैं तो उसके बाद हत्या का औचित्य ही क्या है? हत्या के बाद भले ही शादी रचाने वाले दुनिया में न रहें परंतु उनके द्वारा रचा गया विवाह तो वापस कुंआरेपन में परिवर्तित नहीं किया जा सकता?

तमाम खबरें ऐसी भी आती हैं कि मां-बाप द्वारा बच्चों की पसंद के रिश्ते से मना करने पर बच्चों द्वारा आत्महत्या कर ली गई। क्या ऐसी घटनाएं इन बच्चों के माता-पिता के स मान में कोई इज़ाफा करती हैं? अथवा क्या आत्महत्या करने वाले बच्चों के माता-पिता अपने ही कुंआरे बच्चों की लाश अपने कंधों पर उठाकर सुकून,शांति व संतोष का अनुभव करते हैं? ज़ाहिर है ऐसे सवालों का जवाब वही माता-पिता अथवा अभिभावक पूरी ईमानदारी से दे सकेंगे जो ऐसे दर्दनाक हादसों के भुक्तभोगी होंगे। यदि गौर से देखा जाए तो अर्पिता और आयुष के विवाह में ऐसे बहुत सारे सवालों के जवाब छुपे हुए हैं। यह विवाह मात्र एक साधारण विवाह नहीं है बल्कि हमारे दिकयानूसी समाज के लिए आंखें खोलने वाला एक विवाह आयोजन है। सम्राट अकबर से लेकर इंदिरा गांधी,राजीव गांधी, अरूणा आसिफ अली, सचिन पायलेट, शाहरुख खान, सुनील दत्त, संजय दत्त, किशोर कुमार, उमर अब्दुल्ला जैसे अनेक विशिष्ट लोगों ने शादी-विवाह के मामले में जाति-धर्म के संकीर्ण बंधनों को तोड़कर भारतीय समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया है। सलीम खान ने करोड़ों रुपये खर्च कर अर्पिता का विवाह अपनी बेटी की तरह करके जहां जाति-धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर मानवता का धर्म निभाया है वहीं इस खान परिवार ने गरीबी व अमीरी के बीच बनी हुई नफरत,तिरस्कार व अहंकार की खाई को पाटने का काम भी बखूबी अंजाम दिया है। लिहाज़ा ज़रूरत इस बात की है कि अर्पिता के विवाह में सलीम खान व उनके बेटों ने कितने पैसे खर्च किए, या क्या-क्या दिया और उसमें कौन-कौन शरीक हुआ इन 'मसाला खेज़' बातों के साथ-साथ इस विवाह में निहित उन संदेशों को भी समझा जाए जो हमारे समाज के कल्याण तथा विकास के लिए ज़रूरी हैं तथा जो हमारे समाज में फैले अमीरी-गरीबी,जाति-संप्रदाय के भेदभाव तथा रूढ़ीवादिता को ठेंगा दिखाते हैं।

निर्मल रानी                                                                                             

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सम्पादक

डॉ. लीना