कौन संभालेगा.........??
संतोष गंगेले / आजादी के बाद भारतीय पत्रकारिता ने जिस प्रकार की उड़ान भरी उसकी कल्पना नही की जा सकती थी, वैसे अंगे्रजी शासन के दौरान जिन्होने पत्रकारिता की शुरूआत की थी, देश के सबसे बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वह भी लेकिन अंग्रेजो के बाद आजाद भारत में ऐसे पत्रकारों को संविधान में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित नही किया गया। यह पत्रकारों के साथ अन्याय व पक्षपात ही कहा जा सकता है। आजादी के पूर्व की पत्रकारिता सार्वजनिक सूचना, संदेश, प्रिंट मीडिया का जन्म भी विदेशो में होने का देख मिलता है, लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति के इतिहास में पत्रकारिता का जन्म करोड़ो साल पूर्व से चला आ रहा है जिसका प्रमाण देव ऋषि महर्षि नारद जी को श्रेय जाता है, उसके बाद, रामभक्त श्री हनुमान जी को जाता है । इस प्रकार से भारतीय पत्रकारिता के प्रमाण का इतिहास बहुत पुराना है,। देश के अंदर मुनादी कराकर, षिलालेखों के माध्यम से, प्रचार सामग्री के माध्यम के बाद समाचार पत्रों के माध्यम से शासन-प्रशासन की खबर जनता तक, जनता की खबर सरकार तक देना ही पत्रकारिता हुआ करती थी । भौतिकवादी युग में अपराधिक समाचार, नेताओं, अधिकारियों के भृष्टाचार, उनके काले कारनामें ही बर्तमान में पत्रकारिता की मुख्य सुर्खिया रह गई है ।
भारतीय इतिहास में पत्रकारिता जन संचार के स्त्रोत कहे जाते है, पत्रकारिता को हम संदेश, सूचना के रूप में स्वीकार करते है, पत्रकारिता के माध्यम विकाष के गति के साथ संसाधन उपलध्य होने के कारण हस्तलिखित समाचार संदेश सूचना लोगों तक पहुॅचाई जाती रही, धीरे धीरे समाचार आदान-प्रदान के साधन मिलने के बाद पत्र चिठ्ठी हुआ करती थी, उसके बाद प्रेस मषीन की खोज होने के बाद पिं्रट मीडिया का अविष्कार हुआ जिसमें लधु एवं छोटे छोटे समाचार पत्र प्रकाषित किए जाते रहे । लगभग सो साल पूर्व भारत देश में अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू हुआ जिसमेें समाचार पत्रों का पंजीयन आवष्यक किया गया । प्रेस अधिनियम व पत्रकारिता के नियम व कानून बनाऐ गये । गुलाम भारत को आजादी दिलाने में समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही । जनता की आवाज बनकर पत्र, पत्रिकाऐं, समाचार पत्र, रेडियों, को माध्यम बनाया गया । सरकार विरोधी खबरों को छोड़कर खबरों का आजादी में आदान प्रदान हुआ । देश के नेताओं, महापुरूषों की पहचान भी समाचार पत्रों, संदेषो के कारण बनी ।
भारत देश आजाद होने के बाद प्रेस को भी आजादी दी गई तथा आम व्यक्ति को संविधान के तहत उनके मौलिक अधिकारों के साथ अपनी बात कहने जन जन तक पहुॅचाने के लिए प्रेस की आजादी में छूट दी गई, प्रेस की आजादी के साथ समाचार पत्रों के पंजीयन में छूट मिलने के कारण देश के अंदर सैकड़ों समाचार पत्रों को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन हुआ तथा आकाषवाणी रेडियों के माध्यम से देश की जनता को जाग्रत किया गया । भारतीय संस्कृति एंव संस्कारों को जन जन तक पहुॅचाने केलिए सांस्कृतिक आयोजनों का प्रकाशन, प्रसारण किया गया । समाचार पत्रों का आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाने केलिए उन्हे विज्ञापन नीति में सुविधाऐं दी गई। सन् 1962 में भारत पाक, भारत चीन युद्ध के बाद समाचारों की अहमियत बढ़ी तथा सन् 1971 में भारत पाक युद्ध के साथ पत्रकारिता अपने चरम तक पहुॅच गई थी । सन् 1980 में प्रिंट मीडिया के साथ साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया का महत्व लोगों में आने लगा जिससे कैमरा, बीडियों ग्राफी, रिर्काडिंग, एलबंम बनाने की बिधि के अनुसार पत्रकारिता में सहयोग लिया जाने लगा । देश में होने बाले आंतकवादी की शुरूआत सन् 1982 से हुई जिसका परिणाम भारत रत्न प्रधानमंत्री श्रीमूती इन्द्रिरागाॅधी की हत्या से आतंकवाद का तुफान भारत देश में आया । इसके बाद इलेक्ट्रानिक मीडियाॅ ने अपना कदम रखा । पूर्व प्रधानमंत्री स्व0राजीव गाॅधी ने इलेक्ट्रानिक मीडिया को भारत में बढ़ावा दिया जिस कारण देश के अंदर पल पल की आॅखों देखी खबरें आम जन तक पहुॅचने लगी । वर्ष 2000 के बाद कम्प्यूटर एवं सोषल मीडियाॅ अविष्कार हुआ जिस कारण सालों का काम घंटों में होने लगा । देश में लाखों समाचार पत्रों के प्रकाशन के साथ साथ टीव्ही चैनल, सोषल मीडिया, बेब साईट, बेब पोर्टल अनेकानेक आविष्कार हुए।
इलेक्ट्रानिक मीडिया के साथ साथ माबाईल एवं उसमें मिलने बाली सुविधाओं के कारण दुनिया मुठ्ठी में आ गई। आज हम आप एक एक पल की खबरें प्राप्त करते है भेजते है। इस प्रकार के आविष्कार से जहां मानव की आवष्यकताओं को राहत मिली वहीं समय व आर्थिक व्यय कम हुआ लेकिन इनके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे है ।
भारतीय पत्रकारिता की आजादी को बनाऐ रखने के लिए संविधान में जो कानूनी धाराऐं हैं, उनका ज्ञान आम पत्रकार को नही होता है, भारतीय पत्रकारिता के लिए प्रेस परिषद का गठन किया जाता है, उसमें देश के अंदर के निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्य होते है, भारतीय प्रेस परिषद किसी भी संपादक, पत्रकार, चैनल को सीमा के अंदर दंडित करने के अधिकार तो दिये है लेकिन सजा के अधिकार नही दिए है , पत्रकारिता से पीडि़त परेषान को न्याय प्रदान कराने की समय सीमा नही रखी गई है , इस प्रकार एक तरह से पत्रकारिता की आजादी का दुरूपयोग हो रहा है। समाचार पत्रों के प्रकाशन, इलेक्ट्रानिक चैनले के प्रसारण के जो नियम व कानून है उनका पालन कराने बाले ही स्वयं कानून की धज्जिया उड़ाते पाये जाते है तो फिर न्याय मिलने की आषा नही रहती है इसलिए आम व्यक्ति सा पीडि़त पत्रकारिता से जुड़े लोगों से उलझना उचित नही समझते है। यदि पत्रकारिता के नियम व कानून के तहत समाचार प्रकाशन, प्रसारण की सीमाऐं होने के बाद लाघने पर तत्काल समाचार पत्र का प्रकाशन एवं चैनल का प्रसारण बंद करने वाली कमेटी बनाई जावे तो आजाद भारत में प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला प्रेस पत्रकार देश के लिए अपने कर्तव्य का दायित्व का निर्वाहन कर सकता है अन्यथा पत्रकारिता विज्ञापन एवं व्यवसायिक संस्थाऐं बनती चली जा रही है जिसका लाभ सीधे तौर पर संपादक, प्रकाषक, मुदंक एवं संचालक को मिलता है, पत्रकारिता से जुड़े कर्मचारी ,संवाददाता, प्रतिनिधि ब्यूरो चीफ अपने परिवार के संचालन एवं भरण पोषण के लिए अपनी नैतिक जिम्मेदारी का त्याग कर कहीं न कहीं से गलत रास्ते तय करेगा तथा उस पर कालावाजादी, भृष्टाचार, व्लैक मेल जैसे आरोप लगते रहेगे। आजादी के बाद पत्रकारिता एक मिशन एंव जनता की आवाज हुआ करती थी तथा एक सीमा के सैनिक की तरह देश के अंदर अपने कर्तव्यों का पालन किया करते थें, आज पत्रकारिता प्रतिष्ठा, सम्मान, का रास्ता तय कर रही है, साथ ही अपराधों को दवाने, कानून की रक्षा करने की बजाद नेताओं, जनप्रतिनिधिओं, अपराधिओं की चाटुकारिता का हथियार बन चकी है । जिस प्रकार राजनेतिक नेता की योग्यता, अनुभव नही होता, उसी प्रकार से समाचार पत्र बैचने बाले ऐजेन्ट, हाकर भी पत्रकारिता के क्षेत्र में रहकर प्रजातंत्र के चैथें स्तंभ बनकर उसे हमेषा गिराने केलिए गरजते रहते है । आज पत्रकारिता जोखिम भरी काॅटों का रास्ता बन गया। इस पर चलने के लिए न तो भारत सरकार कोई सुरक्षा दे पा रही है न ही प्रदेश सरकारें पत्रकारों के परिवारों के भरण पोषण एंव सुरक्षा के लिए उपाय कर रही है इसलिए पत्रकारिता कागजों एवं प्रसारण तक सीमित हो रही है । देश व प्रदेश में पत्रकारों के हितों के लिए कार्य करने बाले संगठनों में भी आगे -पीछे से ईमानदारी के दरवाजे बंद होने के कारण संगठन एवं उनसे जुड़े पदाधिकारी किसी न किसी राजनैतिक दलों के साथ जुड़े है या वह अपनी आमदानी के लिए गलत रास्ता तय कर अपने अपने संगठनों का संचालित करने में पीछे नही है।
मेरी कलम से तीखा व पत्रकारिता के विरोध में लिखना मेरी मजबूरी नही मेरा कर्तव्य व दायित्य बनता है इसलिए मध्य प्रदेश के अंदर गणेश शंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब एक विषाल संगठन तैयार करने के लिए मैं होनहार, कर्तव्य निष्ठा से परिपूर्ण, समाजसेवा से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार, साहित्यकार, प्रिंट मीडिया, इलैक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े लोगों की तलाष में लगा रहता हॅू भारतीय पत्रकारिता की निष्पक्षता, सफलता आज विष्व पटल पर देखी जा सकती है । देश की पत्रकारिता की सफलता एवं कामयावी सहयोगी पत्रकारों का हमारा संगठन स्वागत एवं सम्मान करता है ।
संतोष गंगेले गणेश शंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब मध्य प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष हैं। सम्पर्क-सूत्र-09893196874