Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

आंदोलनरत अन्नदाता: उदासीन सरकार, ख़ामोश मीडिया

निर्मल रानी/ इस समय पूरा देश, शासन,प्रशासन तथा मीडिया लोकसभा चुनावों के वातावरण में डूबा हुआ है। सभी राजनैतिक दलों के स्टार प्रचारकों के निरर्थक आरोपों व प्रत्यारोपों को ज़बरदस्ती मुद्दा बनाकर जनता पर थोपा जा रहा है। आम लोगों की भावनाओं को झकझोर कर सत्ता में बने रहने के कुटिल प्रयास किये जा रहे हैं। परन्तु इसी चिलचिलाती धूप और तेज़ गर्मी में देश का अन्नदाता आंदोलनरत है। गत 17 अप्रैल से किसानों के प्रमुख संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ( ग़ैरराजनीतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा ने अम्बाला-राजपुरा के मध्य पड़ने वाले शंभू रेलवे स्टेशन पर रेलवे ट्रैक को जाम कर रखा है और वहां प्रदर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन की वजह से सैकड़ों ट्रेन्स के संचालन के प्रभावित होने की ख़बर है। इसके अतिरिक्त दर्जनों ट्रेन्स के रद्द होने का भी समाचार है जबकि 54 ट्रेनों के मार्ग बदले जाने की सूचना है। सैकड़ों माल गाड़ियों का परिचालन भी प्रभावित हो रहा है। ज़ाहिर है किसान आंदोलन के चलते ट्रेन परिचालन में आने वाली इस बाधा का सीधा असर आम जन जीवन पर पड़ रहा है। इस धरने के कारण केवल यात्रियों को ही भारी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ रहा बल्कि रेलवे को भी काफ़ी आर्थिक क्षति सहन करनी पड़ रही है। शंभु रेलवे स्टेशन पर रेल ट्रैक पर दिये जा रहे धरने के क़रीब ही रेल लाइन के सामानांतर जा रही जी टी रोड पर स्थित शम्भू बैरियर पर तो किसानों ने गत फ़रवरी माह से लगभग स्थाई मोर्चा लगा रखा है। और लुधियाना-राजपुरा-अम्बाला मार्ग तभी से बाधित है। शम्भू बैरियर पर फ़रवरी से बैठे किसानों की प्रमुख मांगें वही हैं जिन्हें लेकर 2 वर्ष पूर्व किसानों ने दिल्ली के चारों ओर मोर्चे बंदी की थी और सरकार द्वारा विवादित कृषि क़ानूनों को वापस लेने सहित किसानों की मांगों को माने जाने की घोषणा की गयी थी।  इसी के बाद किसानों ने अपना आंदोलन स्थगित किया था। इन्हीं मांगों में किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य एम एस पी लागू करने जैसी प्रमुख मांग भी शामिल थी। 

जबकि गत 17 अप्रैल से शंभू रेलवे स्टेशन पर रेलवे ट्रैक जाम कर बैठने वाले किसान संगठन तो वही हैं जो शम्भू बैरियर व खनौरी की हरियाणा-पंजाब सीमाओं पर फ़रवरी से बैठे हैं परन्तु इनकी मांगें कुछ और ही हैं। यह रेल रोको आंदोलन किसान नेता नवदीप सिंह व अनीश खटकड़ और गुरकीरत सिंह को रिहा कराने के मक़सद से किया जा रहा है। आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि इन तीनों किसानों को हरियाणा पुलिस द्वारा झूठे मामलों में फंसाया गया है। इसमें से एक अनीश खटकड़ ने तो जेल में मरणव्रत भी शुरू कर दिया था जिसे बाद में किसान नेताओं ने ही जेल में जाकर ख़त्म कराया। किसानों ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक उक्त तीनों किसानों की रिहाई नहीं हो जाती, तब तक किड्सन रेल ट्रैक से नहीं हटेंगे न ही रेलवे ट्रैक खोले जाएंगे। किसान जत्थेबंदियों ने हरियाणा सरकार को यह चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही हरियाणा सरकार ने तीनों किसानों को रिहा नहीं किया तो आंदोलन को और भी तेज़ किया जाएगा। इस आंदोलन का सीधा असर रेलवे यात्रियों पर पड़ रहा है। बढ़ती गर्मी में अपने गंतव्य पर पहुँचने की अनिश्चितता ने आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। कई स्टेशन पर यात्री ट्रेन के इंतज़ार में बैठे हैं। परन्तु ट्रेन की कोई जानकारी नहीं। बच्चे,महिलायें,बुज़ुर्ग सभी जगह जगह रेल प्लेटफ़ार्म पर परेशानियां झेलने को मजबूर हैं। वैसे भी दिल्ली अमृतसर रुट पर पड़ने वाला शम्भू रेल ट्रैक एक ऐसे अति महत्वपूर्ण रेल रुट पर स्थित है जिससे होकर वंदे भारत,शताब्दी,संपर्कक्रांति,स्वर्ण शताब्दी जैसी जम्मू,अमृतसर,फ़िरोज़पुर,भटिंडा,गंगानगर,जालंधर,लुधियाना मार्ग की सैकड़ों ट्रेन्स गुज़रती हैं। 

सवाल यह है कि चुनावी लफ़्फ़ाज़ियों में लगी सरकार जोकि स्वयं को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी भी बताती रहती है वह आख़िर किसान आंदोलन व रेल व सड़क जाम के चलते आम लोगों को होने वाली परेशानियों से निजात क्यों नहीं दिलाती। जो सरकार भाषणों,विज्ञापनों व गोदी मीडिया के माध्यम से देश को बताने की कोशिश करती रहती है कि अन्नदाताओं  की सबसे बड़ी शुभचिंतक सरकार यही है,वह इन आंदोलनकारी किसानों को यही बात क्यों नहीं समझा पाती ? बड़ा आश्चर्य है कि किसान और इस आंदोलन से प्रभावित होने वाली आम जनता,यात्री,वाहन चालक से लेकर किसान तक सभी दुखी व परेशान हैं परन्तु सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सभी 'सेनापति' उनके मुंह से निकली बातों को ही ब्रह्म वाक्य समझ कर प्रचारित करने लग जाते हैं। जबकि वीरेंद्र सिंह जैसे कुछ बाज़मीर  नेता किसानों के साथ हो रही नाइंसाफ़ी को लेकर भाजपा का साथ छोड़ने से भी नहीं कतराते। 

सच तो यह है कि झूठ को सच बताकर परोसने वाली व जन सरोकारों से  मुँह मोड़कर फ़ुज़ूल की निरर्थक बातों में जनता को उलझा कर रखने वाली ऐसी असंवेदनशील सरकार देश में पहले कभी नहीं देखी  गयी। बहुमत का ऐसा अहंकार कि पंजाब,कश्मीर और मणिपुर जैसे कई छोटे राज्यों के लोगों की समस्यायें इसे समस्यायें ही नज़र नहीं आतीं? मांस, मछली, मुसलमान, पाकिस्तान, घुसपैठिये, मुझे मारो, मुझे गाली दो, मुझे पीटो, नेहरू ने देश बर्बाद किया, परिवारवाद पर झूठा प्रवचन, मंगलसूत्र, भ्रष्टाचार पर दोहरा मापदंड, लोकतंत्र की हत्या, सरकारी संस्थाओं का दुरूपयोग,पूं जीपतियों को संरक्षण, हत्यारों व बलात्कारियों की सरपरस्ती जैसी मोदी व भाजपा नेताओं की पसंदीदा बातों में से कोई भी बात जनसरोकारों से जुडी नहीं है। बल्कि यह सब जनविरोधी बातें हैं। परन्तु इनका पूरा चुनावी खेल इनपर व इन जैसी ही तमाम विवादित बातों पर आधारित है। न इन्हें किसानों के आंदोलन की फ़िक्र ,न रेल यात्रियों की परेशानियों की चिंता,न ही सड़क जाम की परवाह। मंहगाई बेरोज़गारी तो इनके लिये चर्चा का विषय है ही नहीं। उसके बावजूद झूठी लोकप्रियता व आत्ममुग्धता का नशा इनके सर चढ़कर बोलता रहता है। 

यह शासन व प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि वह  किसानों के इस धरने की वजह से आम लोगों को होने वाली परेशानियों से निजात दिलाये। कहना ग़लत नहीं होगा कि एक ओर जहाँ अन्नदाता आंदोलनरत है वहीं सरकार इस मामले को लेकर पूरी तरह उदासीन है साथ ही सरकार की जी हुज़ूरी में लगा मीडिया भी इतने संवेदनशील विषय पर पूरी तरह ख़ामोश है।  

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना