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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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चिंघाड़ने वाला मीडिया आज चुप क्यों है?

पटना ब्लास्ट पर चिंघाड़े मारने वाले चैनल व कलम तोड़ कर लिखने वाले अखबार आज चुप हैं

इर्शादुल हक/ आप कह सकते हैं कि मैं मुगालते में हूं. और मीडिया की यह चुप्पी एक रणनीतिक चुप्पी है. क्योंकि 10 नवम्बर को लखीसराय से अरेस्ट होने वाले तमाम संदिग्ध मुसलमान नही बल्कि हिंदू हैं.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने पाकिस्तानी एजेंसी से हवाला के जरिए करोड़ों का लेनदेन करने वाले विकास कुमार, पवन कुमार, गणेश प्रसाद और गोपाल गोयल को गिरफ्तार किया है. इनकी गिरफ्तारी एनआईए ने इंडियन मुजाहिदीन के कथित आरोपियों हैदर अली मुजीबुल, इम्तेयाज, तनवीर ( और एनआईए के इंफारमर मेहर आलम) आदि से मिली जानकारी के बाद ही लखीसराय से की है. पुलिस का कहना है कि उनके पास से 20 से भी ज्यादा एटीएम, सैकड़ों पासबुक मिले हैं. उन्हें पाकिस्तानी नम्बर से एसएमएस किया जाता था. जिसमें यह संदेश होता था कि पाकिस्तान से भेजे गये रुपये को किन किन को देना है. यह बात खुद लखीसराय के एसपी राजीव मिश्र ने स्वीकार की है.

मीडिया की संदिग्ध चुप्पी

पटना ब्लास्ट में यह अब तक की सबसे बड़ी गिरफ्तारी है. लेकिन इस मामले में अखबारों और चैनलों की चुप्पी भले ही हैरतअंगेज हो पर मैं उनकी इस चुप्पी को साकारात्मक ले रहा हूं. हमारे इस पक्ष को मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग मूर्खता कह सकता है क्योंकि उनका यह तर्क होगा कि पटना, रांची से गिरफ्तार किये गये मुसलमानों को मीडिया ने आतंकवादी घोषित कर दिया तो विकास, पवन, गणेश और गोपाल को आतंकवादी क्यों नहीं कहा जा सकता, जबिक इनकी गिरफ्तारी कथित आईएम के पकड़े गये आरोपियों के इनपुट पर हुई है.

तो यहां मैं वैसे मुसलमानों को कहना चाहता हूं कि उजैर और तहसीन अखतर या कोई और मुस्लिम तब तक आतंकवादी नहीं कहे जा सकते जब तक कि उनके खिलाफ कोई ठोस सुबूत एनआई इकट्ठी नहीं कर लेती.

रही बात विकास, पनव, गणेश और गोपाल की गिरफ्तारी की तो इस मामले में अखबारों और चैनलों ने जिस अंदाज में लिया है उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है. पहला- अगर लखीसराय से पकड़े गये इन आरोपियों का संबंध अगर इस्लाम धर्म से होता तो क्या मीडिया का रवैया इतना ही नर्म और खामोश होता? दूसरा-क्या वे उनकी गरिफ्तारी की घोषणा मुस्लिम आतंकवादी के तौर पर नहीं करते? हिंदुस्तान ने इस खबर को महज हवाला का धंधा मानते हुए खबर बनायी है. जागरण ने अपने अलग अलग एडिशन में इस खबर को अलग अलग तरह से लिया है. हां पटना एडिशन में लिखा है कि लखीसराय से आतंकी खातों का संचालन होता था. पर उसका भी ज्यादा ध्यान इस खबर को हवाला से जोड़ने भर की कोशिश भर है. जबकि जागरण ने लखीसराय के एडिशन में शीर्षक दिया है “पाक आतंकी के चार मददगार गिरफ्तार” जबकि हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने हिंदी एडिशन का अनुवाद भर किया है.

प्रभात खबर ने इस खबर का शीर्षक दिया है कि पाक से आये पैसे की जांच शुरू.सवाल है कि किसी अखबार ने इन चार आरोपियों को आतंकवादी नहीं बताया है. पत्रकारिता धर्म भी यही है कि बिना साबित हुए किसी को आतंकवादी कैसे कहा जा सकता है. लेकिन इन अखबारों का यही व्यवहार क्या गैर हिंदुओं की गिरफ्तारी के वक्त था? नहीं, नहीं था.

कुल मिला कर अखबारों ने एनआईए की इस बड़ी सफलता को ऐसे देने की कोशिश की है जैसे इसका कोई संबंध पटना ब्लास्ट से हो ही नहीं. जबकि एनआईए ने लखीसराय पुलिस को अपने इनपुट के आधआर पर कार्रवाई करने को कहा था. तब जा कर इन चारों की गिरफ्तारी हुई थी.

पुलिस की खामोशी

अब रही बात लखीसराय पुलिस की तो यह भी ध्यान देने लायक है. हमारे एक पत्रकार मित्र ने लखीसराय के एसपी राजीव मिश्रा से बात की और पूछा कि क्या ये लोग इंडियन मुजाहिदीन के लिए काम करते हैं और क्या ये आतंकवादी हैं? तो राजीव मिश्रा ने चुप्पी साध ली और कहा कि इस बारे में आप एनआईए से बात करें.

पटना ब्लास्ट की जांच एनआईए कर रही है. और इस जांच में आईपीएस विकास वैभव एनआईए की तरफ से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. पर एनआईए की जांच के बारे में जिन्हें भी थोड़ी जानकारी है वो जानते हैं कि एनआईए इन संवेदनशील मामलों में कुछ नहीं बोलती. और बोलना भी नहीं चाहिए.

पर जिस तरह से चैनलों और अखबारों का रवैया है वह अपनी बातें एनआईए के हवाले से करके खबरों को चला देते हैं. और किसी भी आरोपी को आतंकवादी घोषित कर देते हैं. पर लखीसराय के मामले में उनकी खामोशी की वजह चकित तो करती है पर अच्छी लगती है.

खैर लखीसराय से गिरफ्तार युवाओं के बारे में अखबारों और चैनलों ने जिस तरह (मजबूरी में ही सही) का संय्यम दिखाया है उससे कम से कम इतना तो जरूर फायदा हुआ है कि किसी खास धर्म को आतंकवाद से जोड़ने की प्रवृति फिलहाल थम गयी लगती है. पर इस बात की कोई उम्मीद नहीं कि अगले दिन कोई गैर हिंदू इस मामले में पकड़ा जाये तो उनकी भावनायें जाग जायें और वह चिल्ला-चिल्ला कर उन्हें किसी खास धर्म से जोड़ने का अपना दायित्व पूरा करने लगें.

इर्शादुल हक, नौकरशाही डॉट इन के सम्पादक हैं

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सम्पादक

डॉ. लीना