Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

ठगी जाने के लिए है जनता, दस्तूर तो यही है!

हमपेशा लोगों के प्रति इतने निर्मम मीडिया जमात के भरोसे जनता जनादेश तैयार करने की कवायद करेगी तो ठगी ही जायेगी

पलाश विश्वास / अब उस मीडिया पर क्या भरोसा कीजै, जो अपने ही संगी साथियों की कूकूरगति से विचलित हुए बिना सत्ता गलियारे में या कारपोरेट बेडरूम में चांदी काटने के जरिये ही इहलोक परलोक साधते हैं और बहुत बुलंद पत्रकारिता में नामचीन जिंदगी जीते हुए मीडिया के अंदर महल की नरकयंत्रणा पर खामोशी बरतकर हगीज कैरियर बटोरते हुए सिधार जाते हैं।

तमाम फैसले सही टाइमिंग पर हो जाते हैं।चाहे लागू हो या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि आधार को जरुरी सेवाओं से नत्थी न किया जाये। भारत सरकार बाकायदा संसद में कहती है कि आधार अनिवार्य नहीं ऐच्छिक हैं। लेकिन दुनिया जहां के मीडिया कर्मी गैस एकाधिकार कंपनी के हितों के मद्देनजर अगल बजट में गधे के सिर से सींग की तरह  खत्म हो जाने वाली सब्सिडी के नकदीकरण का हवाला देते हुए जन गण में आतंक का माहौल रचने में एढ़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं कि आधार नंबर न हुआ तो सत्यानाश हो जाएगा।तेल कंपनियां संसद और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते हुए फतवा जारी कर रही हैं कि आधार नंबर के बिना नहीं मिलेगी रसोई गैस। उधर गैस की कीमत दोगुणी कर दी गयी है खास कंपनी के हित में। रोजाना गैस की कीमत में इजाफा हो रहा है। एक खास कंपनी के फायदे के लिए सारे मीडियाकर्मी उसके कारिंदे बतौर काम कर रहे हैं। बाउंसर जैसा बर्ताव कर रहे हैं। बिना संसदीय इजाजत के आईठी कंपनी और गैस एकाधिकार कंपनी के फायदे के लिए लाखों करोड़ के न्यारे वारे पर खामोश मीडिया अब नंदन निलेकणि के प्रधानमंत्रित्व का दावा मजबूत करने के अभियान में जुट गये हैं।

गांव कस्बे के संवाददाता हुए तो भी उसके समीकरण धाकड़ हैं। संवाददाताओं को पत्रकारिता के नाम सारी सुविधाएं। डेस्क पर जो बंधुआ मजदूर संप्रदाय हैं, वे किसी प्रेस क्लब के मेंबर भी नहीं हो सकते और न प्रेस को मिलने वाली रियायतें सुविधाओं का उन्हें लाभ है। संपादक समाचार संपादक के घरों में सेवाएं पहुंच जाती है। अबाध यौनाचार का तो भंडाफोड़ हो ही गया है।

मीडिया के भीतर ही इतना ज्यादा रंगभेद है और वर्णवर्चस्व है कि मलाईदार तबके को गाड़ी बाड़ी मुफ्त विदेश यात्रा पांच सितारा जीवन राजनेताओं के मुकाबले ज्यादा स्तायित्व वाला मिला हुआ है। य़े ही वे लोग हैं जिनकी वजह से न वेतनमान लागू हो पा रहा है और न कार्यस्थितियां सुधर रही हैं। मजीठिया के वे मोहताज नहीं हैं। पत्रकार संगठनों के भी वे ही भाग्यविधाता हैं। हर मुकदमे का सत्ता वर्ग के हितों के मुताबिक सटीक टाइमिंग के मुताबिक पैसला आ जाता है। काफी ब्रेक में ही फैसला तैयार हो ता जा रहा है। लेकिन पूरी एक पीढ़ी रिटायर होती जा रही है और मजीठिया पर अनंत सुनवाई जारी है।

हमपेशा लोगों के प्रति इतने निर्मम मीडिया जमात के भरोसे जनता जनादेश तैयार करने की कवायद करेगी तो ठगी ही जायेगी।

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना