सवाल यह भी है कि अगर वाकई ईमानदार होते ये कॉरपोरेट अखबार वाले, तो हिन्दुस्तान अखबार का पहला पन्ना पूरा ब्लैक कर देते
निखिल आनंद । हिन्दुस्तान अखबार को श्रद्धांजलि के साथ नैतिक तौर पर सरकार के खिलाफ विक्षोभ का इजहार सख्त शब्दों में करना चाहिए था और पत्रकार की हत्या पर सीबीआई जांच की मांग करनी चाहिए थी। लेकिन अफसोस की सब- कुछ सुविधा के अनुसार नरम शब्दों में लिखा गया है। ये पहले पन्ने पर भाँटगिरी में नेताजी लोगों के बयान छाप रहे हैं तो जाहिर है कि सरकार और कॉरपोरेट अखबार जिसको सरकारी विज्ञापन की दरकार है, उसके बीच का रिश्ता इसका एक स्वाभाविक कारण है। लेकिन पटना के दूसरे सभी अखबारों में भी इस घटना की खबर आम सड़क दुर्घटना के अंदाज में हैं। फिर ये तो तेरा पत्रकार और मेरा पत्रकार वाली बात हो गई। शर्मनाक बात है कि पत्रकार के लिये उसका संस्थान काम के दौरान मरने और मारे जाने पर भी खड़ा नहीं होता है। मरने के बाद कुछ दिनों की छद्म सहानुभूति फिर कोई नहीं पूछता है किसी को। अगर वाकई ईमानदार होते ये कॉरपोरेट अखबार वाले तो हिन्दुस्तान अखबार का पहला पन्ना पूरा ब्लैक कर देते।
हिन्दुस्तान के सम्पादक ने एक छोटी सी चिंता पहले पन्ने के कोने में लगाई है जैसे अपने जाँबाज पत्रकार की मौत पर श्रद्धांजलि नहीं हत्या पर खेद प्रकट कर रहे हैं। संपादक ने अखबार का पहला पन्ना ब्लैक ऐंड व्हाइट रखने की बात की है लेकिन उसके ऊपर के दो पन्नों की रंगीन जैकेट की बात नहीं की जिसको देखकर आपको शर्म आयेगी। एक पत्रकार मित्र ने शेयर किया है कि जब सिवान में राजदेव रंजन पर गोलियां बरसायी जा रही थी तब हमारे जाबांज पुलिस अधिकारी राजभवन के दावत में मशगूल थे। तब जिम्मेदार पुलिस के हाकिम हम पत्रकारों का फोन कॉल तक रिसिव नहीं कर रहे थे। 40 से 50 कॉल किए गए। लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। रात 11 बजे इस घटना पर अपना मुंह खोलने की जहमत उठाई। जरा इनकी संवेदनशीलता देखिए। और हम किसी पुलिस कर्मी की खरोंच पर अखबार वाले आसमान उठा लेते हैं। पुलिस वाले तो सरकार के नौकर हैं तो उनकी चापलूसी जायज है पर दिलचस्प है अखबार वालों ने भी मालिकों के राजनीतिक व आर्थिक हित साधने के लिये ईमान बेचकर भांट- चारण बनना मंजूर कर लिया है!
अखबार के संपादकों को समझ लेना चाहिये कि उम्र भले ही तुम्हारी गुजर गई हो मालिकों और उनके लिये दूसरों के तलवे चाटते लेकिन अब इस सूचना क्रांति के दौर पर पत्रकारिता का समाजशास्त्र और भाषाशास्त्र भी लोगों को समझ में आने लगा है। अपने लोगों की मौत का कम से कम मजाक बनाना बंद करो- चुतिया बनाना बंद करो। (आप सब भी देखें हिन्दुस्तान अखबार का दो पन्नों का रंगीन जैकेट और छोटा सा कांईयाँ की तरह संस्थान के पत्रकार की हत्या पर लिखा हुआ खेद संदेश। ये संपादक लिखते हैं कि हिन्दुस्तान का पहला पेज श्वेत- श्याम कर रहे हैं मतलब की पहले पन्ने पर खबर व चित्र भी छपेगी लेकिन रंगीन फोन्ट में नहीं। फ्रॉड कहीं के- शर्म करो- डूब मरो।)
( निखिल आनंद के फेसबूक वाल से )।