यादवेन्द्र / प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कि यूरोपीय देश ग्रीस की इस खबर को पिछले कुछ समय से अपने देश में चल रही घटनाओं के साथ जोड़ कर देखें और खुद फैसला करें कि कहीं हम ग्रीस के ही रास्ते पर तो आगे नहीं बढ़ रहे?
ग्रीस के 46 वर्षीय वरिष्ठ और प्रतिष्ठित पत्रकार कोस्तास वाक्सेवानिस और तीन अन्य पत्रकारों को अक्टूबर के अंतिम दिनों में इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने 2010 में तत्कालीन ग्रीक सरकार को सौंपी गयी 2059 विदेशी बैंक खाता धारकों के एक लिस्ट अपनी समाचार पत्रिका में सार्वजनिक कर दी जो सरकारी फाइलों से कथित रूप से गायब हो गयी थी।
इस लिस्ट में राजनेताओं,शिपिंग के बड़े कारोबारी,डाक्टर,वकील और अनेक स्त्रियाँ (प्रमुख और रसूखदारों की पत्नियाँ)शामिल हैं।उनके ऊपर सरकार ने खाता धारकों की वैयक्तिक गोपनीयता का उल्लंघन करने ( दर असल कहा यह गया कि उन्होंने नाम उजागर करके खाता धारकों को खुले में खूंखार भेडियों के सामने छोड़ दिया) का आरोप लगाया गया।दोष सिद्ध होने पर उनको दो सालों की सजा हो सकती थी।दिलचस्प बात यह है कि किसी आरोपी ने वाक्सेवानिस के ऊपर गोपनीयता भंग करने का आरोप लगाने की जुर्रत नहीं की। कोर्ट में मुक़दमे की सुनवाई के लिए जाते हुए उन्होंने वहां उपस्थित पत्रकारों से कहा कि यह मुकदमा अफसरों के भ्रष्ट कारनामों पर लीपापोती के उद्देश्य से किया गया है।इस मुक़दमे ने पूरे ग्रीस का ही नहीं बल्कि दुनिया भर के स्वतंत्रचेता लोगों का ध्यान आकर्षित किया और अपना समर्थन देने के लिए इनमें से अनेक कोर्ट में उपस्थित भी हुए। ग्यारह घंटों तक चली पूरी बहस सुनने के बाद जज मालिया वोलिका ने दृढ स्वर में फैसला सुनाया कि आप लोग पूर्णतया निर्दोष हैं और अपना पत्रकारिता का काम करते रहने के लिए स्वतंत्र हैं।
इस लिस्ट में राजनेताओं,शिपिंग के बड़े कारोबारी,डाक्टर,वकील और अनेक स्त्रियाँ (प्रमुख और रसूखदारों की पत्नियाँ)शामिल हैं।उनके ऊपर सरकार ने खाता धारकों की वैयक्तिक गोपनीयता का उल्लंघन करने ( दर असल कहा यह गया कि उन्होंने नाम उजागर करके खाता धारकों को खुले में खूंखार भेडियों के सामने छोड़ दिया) का आरोप लगाया गया।दोष सिद्ध होने पर उनको दो सालों की सजा हो सकती थी।दिलचस्प बात यह है कि किसी आरोपी ने वाक्सेवानिस के ऊपर गोपनीयता भंग करने का आरोप लगाने की जुर्रत नहीं की। कोर्ट में मुक़दमे की सुनवाई के लिए जाते हुए उन्होंने वहां उपस्थित पत्रकारों से कहा कि यह मुकदमा अफसरों के भ्रष्ट कारनामों पर लीपापोती के उद्देश्य से किया गया है।इस मुक़दमे ने पूरे ग्रीस का ही नहीं बल्कि दुनिया भर के स्वतंत्रचेता लोगों का ध्यान आकर्षित किया और अपना समर्थन देने के लिए इनमें से अनेक कोर्ट में उपस्थित भी हुए। ग्यारह घंटों तक चली पूरी बहस सुनने के बाद जज मालिया वोलिका ने दृढ स्वर में फैसला सुनाया कि आप लोग पूर्णतया निर्दोष हैं और अपना पत्रकारिता का काम करते रहने के लिए स्वतंत्र हैं।
नवम्बर के शुरुआती हफ्ते में जेल से छूटने के बाद डेनमार्क के अख़बार स्पिएगेल ,ब्रिटेन के अख़बार द टेलीग्राफ और रॉयटर को दिये गये इंटरव्यू के अंश:
मेरे घर को दर्जनों पुलिस वालों ने ऐसे घेर लिया जैसे मैं कोई बेहद खतरनाक अपराधी होऊं।दुर्भाग्य से इस देश की तीन तीन सरकारों ने भले ही वो अलग अलग सरकारें रही हों पर उन्होंने मिलजुल कर यह सुनिश्चित किया कि वह लिस्ट जनता के बीच सार्वजनिक न हो पाए।बार बार इसके बारे में यह अफवाह फैलती रही,लोगों का शक अनेक नामों पर था लेकिन खुले तौर पर नाम लेकर पचड़े में पड़ जाने से हर कोई खौफ खाता था। सारा माहौल ही अजीबो गरीब है -- देश की अधिकांश आबादी मितव्ययिता कार्यक्रमों की चक्की में पिस रही है पर कुछ गिने चुने लोग अपनी संपत्ति सुरक्षित रखने के लिए विदेशों में ठिकाने लगा रहे हैं।इस लिस्ट में जो नाम शामिल हैं उनमे से कई ऐसे हैं जो देश के शीर्ष नेताओं के दोस्त और रिश्तेदार हैं -- जिसे देखो वही कहीं न कहीं अपनी टांग फंसाए हुए है।
ग्रीस की सबसे बड़ी समस्या वो लोग हैं जिनके कन्धों पर देश का शासन चलने का जिम्मा सौंपा गया है -- यह बड़ा संभ्रांत और संगठित गिरोह है।एक और जहाँ इसमें सभी राजनैतिक पार्टियों के नेता शामिल हैं तो दूसरी और सीधे या परोक्ष रूप से व्यवसाय से जुड़े लोग हैं।पहले तो नेताओं ने लिस्ट के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े करने शुरू किये पर जब मैंने लिस्ट सार्वजनिक कर दी तो मीडिया ने उसपर चुप्पी साध ली -- यहाँ तक कि लिस्ट प्रकाशित होते ही मुझे गिरफ्तार कर लिया गया पर देश के टी वी चैनलों पर मेरी गिरफ़्तारी की कोई खबर नहीं दिखाई गयी।यह प्रेस की आज़ादी का बड़ा सवाल है।हद तो तब हो गयी जब ग्रीक लोगों को अपने देश के वास्तविक हाल जानने के लिए विदेशी मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है।1967 से 1974 तक सैनिक शासन में भी लोगबाग बी बी सी और जर्मन मीडिया पर ज्यादा भरोसा करते थे ...लगता है हम आज दुबारा इतिहास के उसी मोड़ पर पहुँच गए हैं।
जो लिस्ट मैंने सार्वजनिक की है वह 2010 में फ़्रांस की वित्त मंत्री क्रिस्टीन लेगार्दे ने ग्रीस सरकार को सौंपी थी जिसमें hsbc बैंक में अपना धन जमा कर के रखने वाले ग्रीक लोगों के नाम हैं -- इसपर चाहे जो भी बवाल मचा हो पर किसी राजनैतिक नेता ने इसकी प्रामाणिकता पर कोई आपत्ति नहीं की है।इसमें सबसे ऊपर शिपिंग कंपनियों के मालिक हैं जिनका कारोबार पूरी दुनिया में फैला हुआ है -- उनमें से कई ने इसकी पुष्टि भी कर दी।जब हमने
hsbc बैंक के कर्मचारियों से बात करनी चाही तो उन्होंने बड़ा अभद्र बर्ताव किया। एक ग्रीक सांसद गिओर्गोस वौल्गाराकिस ने शुरू में सिरे से सारे आरोप नकार दिए पर स्विस बैंक में जमा अपनी बड़ी संपत्ति का हिसाब अभी तक नहीं दे पाए।यहाँ तक कि प्रधान मंत्री के एक सहयोगी ने हमसे कहा कि वे खुद पेशे से वकील हैं सो इस इंतजाम में लगे हैं कि सवालों के घेरे में आई संपत्ति को दूसरे नामों पर जमा करा दें।कुल मिला कर बड़ा ही पेचीदा जाल बना हुआ है।
hsbc बैंक के कर्मचारियों से बात करनी चाही तो उन्होंने बड़ा अभद्र बर्ताव किया। एक ग्रीक सांसद गिओर्गोस वौल्गाराकिस ने शुरू में सिरे से सारे आरोप नकार दिए पर स्विस बैंक में जमा अपनी बड़ी संपत्ति का हिसाब अभी तक नहीं दे पाए।यहाँ तक कि प्रधान मंत्री के एक सहयोगी ने हमसे कहा कि वे खुद पेशे से वकील हैं सो इस इंतजाम में लगे हैं कि सवालों के घेरे में आई संपत्ति को दूसरे नामों पर जमा करा दें।कुल मिला कर बड़ा ही पेचीदा जाल बना हुआ है।
देखिये इसी लेगार्दे लिस्ट को लेकर जर्मनी की सरकार ने टैक्स की चोरी करने वालों को पकड़ा -- फ़्रांस और स्पेन ने भी इसी लिस्ट का सहारा लेकर करवाई की।पर ग्रीस में आकर वह लिस्ट ही गायब हो जाती है -- आखिर क्यों? इसकी सरल सी वजह है कि यहाँ सबलोग इसमें संलिप्त हैं चाहे वे राजनैतिक नेता हों या उद्योगपति व्यापारी ... और तो और पत्रकार भी इस खेल में शामिल हैं।बल्कि यहाँ तो ऐसे कानून बनाये जा रहे हैं जिस से पहले किये गए गोलमाल और गड़बड़ियाँ भी माफ़ की जा सकें -- पर देखिये इन सब के बारे में कोई कुछ नहीं लिख रहा है।
ग्रीस के लोगों को दो साल से इस बात का पता है कि इस लिस्ट में यहाँ के संपन्न नागरिकों के नाम शामिल हैं -- - यह अलग बात है कि उन्होंने यह संपत्ति सही ढंग से इकठ्ठा की या गलत ढंग से --- और ये इतने रसूख वाले लोग हैं कि कोई उनपर हाथ नहीं डाल सकता। वे पूरी तरह कानून की गिरफ्त से बाहर हैं। दूसरी तरफ अधिकांश नागरिक सरकारी कल्याणकारी खर्चों में कटौती की मार झेलने को अभिशप्त हैं ... इस देश का राजनैतिक तंत्र सच्चाई को सालों साल से छुपाता आ रहा है।
यादवेन्द्र