जब सीमा पर फौजी जोखिम भरा कर्तव्य निभाते हैं, यहां कई लोग टीआरपी बटोरने में लगे होते हैं
राजेन्द्र धोड़पकर/ देश का माहौल जो आम तौर पर हास्य कवि सम्मेलन या कॉमेडी सर्कस जैसा रहता है, 15 अगस्त या 26 जनवरी के आसपास वीर रस के कवि सम्मेलन में तब्दील हो जाता है। परिवर्तन इतना तेज नहीं हो पाता इसलिए अक्सर माहौल कुछ कन्फ्यूज्ड सा रहता है, यानी कॉमेडी सर्कस में वीर रस या वीर रस में कॉमेडी सर्कस जैसा। जो लोग आम तौर पर फूहड़ता के मुकाबले में बाजी मारने को जुटे रहते हैं वे वीर रस के जुमलों पर ‘जरा दाद चाहूंगा’ या ‘जरा गौर कीजिएगा, तालियों की आवाज से प्रोत्साहन चाहूंगा’ वाले अंदाज में आ जाते हैं। इस बार 15 अगस्त के कुछ दिन पहले पांच फौजी शहीद हो गए इसलिए यही माहौल कुछ पहले से शुरू हो गया है। सीमा पर फौजी अपना कठिन और जोखिम भरा कर्तव्य निभाते हैं, यहां भाई लोग टीआरपी, तालियां और मलाई बटोरने में लगे होते हैं। सेना के बड़े अफसर कहते रहते हैं भाई जरा हमें शांति से अपना काम करने दीजिए, हम जानते हैं कि हमें क्या करना है। यहां ताली बटोरू ब्रिगेड उनके पीछे लगी होती है- नहीं, नहीं, हम बताएंगे कि तुम्हें क्या करना है, पांच के बदले पचास पाकिस्तानी सैनिकों के सिर लाओ, वगैरह। जैसे भारतीय सेना न हुई, सलीम दुर्रानी हो गए, जो डिमांड पर छक्का मार दें।
देशभक्तों की दिक्कत यह है कि उनकी याददाश्त उसी तरह छोटी है, जैसे गजिनी के आमिर खान की। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या सीमा पर किसी तनातनी के दौर में वह जाग जाती है, लेकिन 48 घंटे से ज्यादा नहीं ठहरती। गजिनी के आमिर खान की तरह ही इन्होंने भी अपनी देशभक्ति उल्टे अक्षरों में लिख रखी है और उसे जगाने के लिए पाकिस्तान के आईने की जरूरत होती है। इससे दिक्कत यही है कि ये लोग शोर बहुत मचाते हैं, खासकर टीवी पर तो ऐसा लगता है कि कुछ लोग टीवी से निकलकर पाकिस्तान पर हमला कर देंगे। वैसे टीवी एंकरों के नेतृत्व में ऐसे देशभक्तों की फौज को एकाध बार सीमा पर भेज देना चाहिए। पाकिस्तान से इससे बड़ा बदला क्या होगा? इसके बाद यह भी संभव है कि इनकी देशभक्ति की याददाश्त थोड़ी बड़ी हो जाए और शोर कुछ कम।
(15 अगस्त 2013 के हिंदुस्तान से साभार )