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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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नफ़रत और अफ़वाहबाज़ी की गिरफ़्त में सोशल मीडिया

तनवीर जाफ़री/ वर्तमान युग में कंप्यूटर -इंटरनेट के सबसे बड़े चमत्कार के रूप में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफ़ार्म्स को देखा जा रहा है। इसके माध्यम से जहां दूरस्थ इलाक़ों की जो ख़बरें व सूचनायें कई कई दिनों बाद ज़िला व प्रदेश मुख्यालयों में पहुंचा करती थीं वे अब बिना समय गंवाये,तत्काल या लाईव पहुँच जाती हैं। कोरोना काल के समय से शुरू हुआ 'वर्क फ़्रॉम होम ' और 'स्टडी फ़्रॉम होम' का चलन भी इसी कंप्यूटर -इंटरनेट तकनीक और इससे संबंधित विभिन्न ऐप की देन है। दुनिया के लाखों लोग जो अपने परिवार से दस -बीस-पचास-साठ वर्ष पूर्व किन्हीं अपरिहार्य परिस्थितिवश बिछड़ गये थे वे फ़ेस बुक जैसे सोशल मीडिया के अन्य चमत्कारिक प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से अपने परिवार से मिल चुके हैं। शिक्षा, व्यवसाय, विद्युत, स्वास्थ्य, प्रशासनिक काम काज, बैंक, सेना, रेल, विमानन, अंतरिक्ष आदि दुनिया का शायद कोई भी क्षेत्र इस समय कंप्यूटर -इंटरनेट और सोशल मीडिया से अछूता नहीं है। परन्तु कभी कभी इसी कंप्यूटर -इंटरनेट पर आश्रित सोशल मीडिया के फ़ेसबुक, ट्विटर व व्हाट्स ऐप जैसे अनेक माध्यमों के होने वाले दुरूपयोग को देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है गोया हमारे वैज्ञानिकों ने बन्दर के हाथ में अस्तूरा थमा दिया है।

इस समय जहाँ सोशल मीडिया सैक्स, ठगी और दूसरे कई साइबर अपराधों की ज़द में आ चुका है और तमाम लोग अपनी नक़ली आई डी बना कर आम लोगों को विभिन्न तरीक़ों से अपने जाल में फंसाने की कोशिश में लगे हुये हैं वहीं  इस माध्य्म का इस्तेमाल बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से नफ़रत और अफ़वाह फैलाने के लिये भी किया जा रहा है।और इन नफ़रत और अफ़वाहबाज़ी का सिर्फ़ एक मक़सद होता है,समाज को धर्म  समुदाय के आधार पर विभाजित करना,उनमें परस्पर एक दूसरे के प्रति नफ़रतपूर्ण उत्तेजना फैलाना और इस प्रदूषित वातावरण को दंगे,फ़साद तथा सामुदायिक हिंसा तक पहुँचाना। कुछ पेशेवर क़िस्म के ख़ाली बैठे लोग जिनका किसी सेवा या रोज़गार से कोई वास्ता नहीं ऐसे लोग ख़ास तौर पर फ़ेसबुक,व्हाट्स ऐप और ट्विटर जैसे विभिन्न प्लेटफॉर्म्स का दुरूपयोग करते रहते हैं और सोशल मीडिया पर मिलने वाले 'कचरा ज्ञान ' को बिना सोचे समझे और उन समाचारों व विषयों की पुष्टि किये बिना कॉपी पेस्ट या फ़ॉरवर्ड करने लग जाते हैं।

इसी क्रम में न जाने कितनी हिंसक वीडिओ जो किसी दूसरे देशों की पुरानी वीडिओज़ होती हैं उन्हें अपने देश की ताज़ी वीडिओज़ बताकर देश का माहौल ख़राब करने की कोशिश की जाती है। इस नफ़रत और अफ़वाहबाज़ी को प्रसारित करने के लिये अनेक लोग व इसी मिशन से जुड़े अनेक संग्ठन,, कंप्यूटर -इंटरनेट के इस दुरूपयोग को 'अभिव्यक्ति ' की स्वतंत्रता का नाम देते हैं। दूसरी ओर कुछ लोग समाज में ऐसे भी हैं जो दूसरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सिर्फ़ इसलिये उंगली उठाते हैं क्योंकि व्यक्त किये गये विचार उनके अपने विचारों व सोच के अनुरूप नहीं होते। इसलिये  दूसरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की क़द्र करने के बजाये स्वयं अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताकर उसका विरोध शुरू कर देते हैं। यही वजह है कि गत दिनों कोलकाता में अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म  समारोह के उद्घाटन के अवसर पर आम तौर पर विवादित विषयों पर ख़ामोश रहने वाले सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि “अब भी नागरिकों की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए जाते हैं।”

अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत और चीनी सैनिकों के बीच गत 9 दिसंबर को हाथापाई होने का समाचार आया था । प्राप्त ख़बरों के अनुसार इस दौरान भारतीय सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देते हुये चीनी सैनिकों को उनकी सीमा की ओर खदेड़ दिया था। बताया जाता है कि चीन के लगभग 300 सैनिक तवांग के यांगत्से में भारतीय पोस्ट को वहां से हटाने के मक़सद से पहुंचे थे। परन्तु भारतीय व चीनी सेना के बीच चली धक्का मुक्की का एक पुराना वीडिओ जोकि पूर्व में होने वाली भारतीय चीनी सेना की झड़प का वीडिओ था उसे इस तवांग की ताज़ी ख़बर के साथ जोड़कर ख़ूब वायरल किया गया। बांग्लादेश के कई साम्प्रदायिक हिंसा व तोड़ फोड़ के वीडिओज़ को बंगाल का बताकर वायरल किया गया। इसी तरह तालिबानों या पाकिस्तान के हिंसा के कई वीडिओज़ कश्मीर की हिंसा के वीडीओ बताकर वायरल किये गये। इसतरह की सैकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों घटनायें हो चुकी हैं।

यहां सोचने और चिंतन करने का मुख्य विषय यह है कि आख़िर जानबूझ कर और एक सुनियोजित नेटवर्क का हिस्सा बनकर नफ़रत और अफ़वाहबाज़ी फैलाने वाले तत्व हमारे देश और समाज को कितना नुक़सान पहुंचा रहे हैं ? जो भारतवर्ष अनेकता में एकता के लिये दुनिया में अपनी मुख्य पहचान रखता था उसी देश की एकता को छिन्न भिन्न करने के लिये,उसी समाज में नफ़रत का ज़हर घोलने के लिये झूठ और अफ़वाहबाज़ी का कितना बड़ा सहारा लिया जा रहा है ? मेरे विचार से ऐसे लोग या ऐसे लोगों द्वारा संचालित नेटवर्क किसी एक व्यक्ति के हत्यारे से भी बड़े दोषी और अपराधी हैं। क्योंकि यह अपने इस नापाक मिशन के माध्य्म से पूरे सामाजिक परिवेश को ही अपराधपूर्ण,हिंसक और ज़हरीला बनाने पर आमादा हैं। और इससे भी बड़े अफ़सोस का विषय यह है कि प्रायः इसतरह का घिनौना काम सत्ता की देख रेख में और उसकी सरपरस्ती में किया जा रहा है। देश में ऐसे कई कई वीडियो व आडियो सामने आ चुके हैं जिनमें पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारों की आवाज़ या इसतरह के कोई अन्य विवादित नारों की आवाज़ पेस्ट कर दी गयी। उसके बाद इसी झूठी सामग्री के आधार पर बाक़ायदा पूरा बवाल काटा जाता है। गोदी मीडिया इन अफ़वाहबाज़ों के साथ खड़ा हो जाता है। स्वयं को राष्ट्रवादी और दूसरों को देशद्रोही प्रमाणित करने की पूरी कोशिश की जाती है। झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने की कोशिशें की जाती हैं।  

ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि जिस सोशल मीडिया से सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों को सकारात्मक ढंग से पेश करने की उम्मीद थी जैसा कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा सोचा भी गया था,क्या अब वही सोशल मीडया नफ़रत और अफ़वाहबाज़ी की गिरफ़्त में आ चुका है ? 

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सम्पादक

डॉ. लीना