तमाम जगह कुणाल घोष और देवयानियों का साम्राज्य, पत्रकारों पर जानलेवा हमला भी
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास / अराजक बंगाल हिंसा से रक्तस्नात, पत्रकारों पर जानलेवा हमला तो आम जनता बारुद के ढेर पर! अदालती निगरानी में पंचायत चुनाव प्रहसन के सिवाय कुछ नहीं है और सुरक्षा इंतजाम हुआ ही नहीं है। चुनाव आयोग बेबस है। आम जनता एकदम असुरक्षित है। विपक्ष को नामांकन दाखिल करने की इजाजत नहीं है। बंगाल में कानून का राज क्या है, उसका नजारा कमिश्नरेट मुख्यालय बैरकपुर में अदालत और थाने से सटे इलाकों में ऋणमूलियों के तांडव और पत्रकारों पर जानलेवा हमले से साफ सामने आ गया है।
देशभर में बंगाल के पत्रकारों की हालत सबसे फटेहाल है। ज्यादातर पत्रकार दिनभर उपहार और पोस्तो बटोरने में लगे रहते हैं और उनकी पहचान पत्रकारिता के लिए नहीं, बल्कि उनकी दलाली में अति सक्रियता के कारण है। कुणाल घोष अकेले नहीं है। तमाम जगह कुणाल घोष और देवयानियों का साम्राज्य है। उनका महत्व कितना ज्यादा है, वह कुणाल के पुनर्वास के लिए मुख्यमंत्री की पहल से साफ जाहिर है। इससे पहले शारदा कांड से उत्तेजित दीदी ने भविष्य में किसी पत्रकर को टिकट न देने का ऐलान किया था। पर हावड़ा संसदीय उपचुनाव में जीत के बाद चिटफंडिया अपराधबोध सिरे से गायब है। जनाधार के अटूट होने और बिना प्रतिद्वंद्विता पंचायत चुनाव में देहात बांग्ला फतह करके वामसत्ता के रिकार्ड को ध्वस्त करने के प्रति आश्वस्त दीदी ने बाकी सांसदों के साथ कुणाल घोष को लेकर राइटर्स में बैठक भी कर ली।
बंगाल के प्रेस क्लब में किसी संपादकीय पत्रकार की सदस्याता निषिद्ध है और तमाम फर्जी पत्रकार सदस्य और पदाधिकारी बने हुए हैं। अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए नय़ी सदस्यता के लिए बाकायदा स्क्रीनिंग की जाती है। वहां गैर पत्रकारों का आशियाना बना हुआ है। दीदी ने हाल में शारदा समूह के दो टीवी चैनल के अधिग्रहण की घोषणा की है। जिसे केंद्र सरकार ने अवैध करार दिया है। दर्जनों अखबार और टीवी चैनल बंगाल में जब तक खुलते और बंद होते रहते हैं। लेकिन सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती। पत्रकार संगठनों में इन्ही बंद अखबारों के कर्मचारी नेता पत्रकारों का ही वर्चस्व है,जो मालिकों और सरकार और सत्तापक्ष और कारपोरेट घरानों की दलाली के सिवाय कुछ नहीं करते। सीमावर्ती इलाकों में तो ऐसे मान्यता प्राप्त पत्रकारों की भरमार है जो प्रेस का स्टिकर लगाकर अपनी गाड़ी से तमाम तरह की तस्करी करते हैं, पत्रकारिता नहीं। इन नेताओं को तमाम सुविधाएं हासिल हैं। पोश इलाकों में उनके बंगले बन गये हैं। लेकिन आम पत्रकारों के लिए राजधानी कोलकाता या और कहीं एक भी प्रेस कालोनी नहीं है, जबकि जिलों में पत्रकार संगठनों और प्रेस क्लबों की भरमार है।इन्हीं परिस्थितियों में ईमानदार पत्रकारों के लिए जान हथेली पर रखकर काम करने के अलावा कोई चारा ही नहीं है। कहां पर भी उनकी पिटाई हो जाती है। इलाके के काउंसिलर से लेकर प्रोमोटर सिंडिकेट तक पत्रकारों को तरह तरह सबक सिखाते रहते हैं। बैरकपुर में कुछ भी नया नहीं हुआ है।
बहरहाल कम से कम एक यूनियन इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (आईजेए) ने बैरकपुर में टेलीविजन पत्रकारों पर हमले की आज निंदा की और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया। एसोसिएशन के अध्यक्ष एस. सबा नायकन ने यहां जारी एक बयान में ड्यूटी पर रहने वाले पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया। इस बीच पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि तृणमूल कांगेस का झंडा लिये लोगों द्वारा तीन मीडियाकर्मियों पर कथित हमला और कुछ नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी द्वारा बुरे कार्यों को छुपाने का एक प्रयास है।
पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा,' यह हमला संसदीय लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत हैं और यह ऐसे समय में हुआ है जब विपक्षी पार्टियां पंचायत चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के दौरान तृणमूल कांग्रेस की ओर से हमले का सामना कर रही हैं।'
निंदा वाममोर्चे और दूसरे राजनीतिक दलों के नेता भी कर रहे हैं। लेकिन बंगाल में सर्वव्यापी हिंसा के माहौल को खत्म करने की पहल किसी ओर से नहीं हो रही है।
घटना का ब्यौरा देखें तो बंगाल के ताजा हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है। पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों और पार्टी समर्थित बदमाशों ने शुक्रवार को एबीपी न्यूज के एक पत्रकार को जिंदा जलाने की कोशिश की जबकि चार अन्य पत्रकारों पर हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। ये पत्रकार हत्या के बाद हुई हिंसा की घटना को कवर करने गए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के दो गुटों के बीच हुए फसाद में एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। बैरकपुर के सिटी पुलिस प्रमुख संजय सिंह ने बताया कि इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बैरकपुर सदर बाजार इलाके में गुरूवार को उस वक्त हिंसा शुरू हुई जब स्थानीय अपराधी जितूलाल हटी मृत मिला। बताया जाता है कि हटी स्थानीय तृणमूल नेता शिबू यादव का करीबी था। वह गैम्बलिंग अड्डा चला रहा था।
हटी की हत्या के बाद स्थानीय गुडों ने स्थानीय तृणमूल पार्षद रबिन भट्टाचार्य के दफ्तर और चैम्बर पर हमला किया। भट्टाचार्य पेशे से वकील हैं। वह स्थानीय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बनने वाले थे। बदमाशों ने भट्टाचार्य के दफ्तर में तोड़फोड़ की और फर्नीचर को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद उन्होंने भट्टाचार्य के साले दुलाल करमाकर के घर पर हमला किया।
गुंडों ने करमाकर और उनके परिजनों की बुरी तरह पिटाई की। रबिन को शिबू यादव के कैम्प के विरोधी के रूप में जाना जाता है। शुक्रवार को कुछ पत्रकार घटनास्थल पर गए जहां रबिन भी मौजूद थे। एक समाचार चैनल से जुड़े अस्तिक चटर्जी ने बताया कि हम लूटे गए रबिन के दफ्तर की शूटिंग कर रहे थे, तभी देखा कि कुछ युवक हाथों में लोहे की रॉड,तृणमूल कांग्रेस का झंडा और लाठियां लिए हमारी ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने हमें घेर लिया। उकसावे की कार्रवाई के बगैर उन्होंने हमें गालियां देनी शुरू कर दी। हमें घटना स्थल से जाने के लिए कहा।
उन्होंने रबिन पर भी हमला करने की कोशिश की जो हमसे बात कर रहे थे। एक अन्य पत्रकार बरून सेनगुप्ता ने बताया कि हमने युवाओं की गैंग का विरोध किया। हमने उन्हें हमारे काम में दखल नहीं देने को कहा। इससे वे उग्र हो गए और उन्होंने लोहे की रॉड और लाठियों से हमला कर दिया। हम जान बचाने के लिए वहां से भागने लगे। बदमाशों की गैंग ने हमारा पीछा किया और अस्तिक को पकड़ लिया।
बकौल अस्तिक उन्होंने मुझे लोहे की रॉड और लाठियों से पीटा। एक बदमाश ने लोहे की रॉड मेरे सिर पर दे मारी। मेरे सिर से खून बहने लगा। मैं जमीन पर गिरा गया लेकिन बदमाश मुझे पीटते रहे। मैं बेहोश हो गया। इस बीच कुछ बदमाशों ने एबीपी न्यूज के बरून सेनगुप्ता को पकड़ लिया। वे उसे पास के ही एक घर में ले गए। उन्होंने बरून को एक कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद बदमाशों ने बरून की पिटाई शुरू कर दी। एक बदमाश ने बरून पर पेट्रोल उड़ेल दिया। वे आग लगाने ही वाले थे तभी कुछ स्थानीय लोग वहां आ गए और उसे बचा लिया।