दैनिक भास्कर लॉंचिंग की तैयारियों में व्यस्त
मनीष/ दैनिक भास्कर लॉंचिंग की तैयारियों में व्यस्त है। आकर्षक प्रचार के बलपर खुद को पाठकों का सच्चा हितैषी होने का दावा कर रहा है तो दूसरी ओर सूबे के बड़े-बड़े अपराधियों और नेताओं के तलवे सहला रहा है। अब यह समझ से परे है की पाठको या सामान्य आदमी के पक्ष में यदि इस बैनर को आवाज उठानी हो तो कैसे मुह से आवाज निकलेगी? क्वालिटी परोसने के वादा के साथ बड़े-बड़े होर्डिंग से पटना को पाट दिया गया है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर ऐसा दिखता नहीं है। हां ! पाठकों को एक फायदा हुआ है कि अखबारों के दाम घाटे है तो मीडियाकर्मियों को नौकरिया मिली है और वेतन बढ़े है।
लेकिन प्रबंधन का कमाल देखिये कि अनन्त सिंह और सुरेंद्रकिशोर को एक घाट का पानी पिला रहा है। लेकिन सबसे बेचैनी में है आर.ई. प्रमोद मुकेश जी .......अगले छह महीने में जीवन की सारी सुविधाएं जुटा लेनी है। प्रभात में घाघ भंडारी पहले ही से बैठे थे, यहां मौका नहीं चूकना है। ताते पर सुल्तान है मत चूको चौहान- की तरज पर।
स्टाफर कि बात छोडिये जिला के स्ट्रिंगरों की बहाली मे भी हाकिम ने स्कोप निकल ली है। तभी तो समस्तीपुर में मदिरा को पेयजल समझनेवाले लक्ष्मी को तो दरभंगा मे संपादक को दही-चुरा पहुचा, झझा मेल बनानेवाले को मौका मिला है। सहारा मोतिहारी से अपने प्रभारी का मोबाइल चुरा कर बेचनेवाले रिपोर्टर को मुजफ्फरपुर जैसे महत्वपूर्ण जगह की कमान सौपी गई है, तो नेपाल में खाद की कालाबाजारी करनेवाले प्रभात खबर के संवाददाता को मोतिहारी में चरने के लिये छोड़ा ग्या है। बेतिया जिला का भी हाल यही है। सीतामढ़ी से आज जैसे डुबे हुये बैनर से सितारा खोजा गया है। अब तो पाठक समझ ही गये होंगे कि ये घिसे-पीटे मोहरे आपको क्या क्वालिटी देंगे?
(मीडियामोरचा को प्राप्त एक ईमेल)