Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

प्रोचै: जल्द आना चाहिए एक नया चैनल

रवीश कुमार/ आवश्यकता है एक प्रोपेगैंडा चैनल की। भारत में माडिया प्रोपेगैंडा का हथियार बन गया है। शेयर बाज़ार के विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि प्रोपेगैंडा का बहुत बड़ा बाज़ार है। बड़ी संख्या में चैनलों को प्रोपेगैंडा मशीन में बदलने के बाद भी बाज़ार का पेट नहीं भरा है। इसलिए युवाओं को आगे आकर प्रोपेगैंडा के क्षेत्र में स्टार्ट अप करना चाहिए। बल्कि बहुत से लोग स्टार्ट अप कर भी रहे हैं। फेक आईडी से लोगों को गाली देना, धमकाना ये सब उसी के तहत आता है। इन सबको देखते हुए एक और नए प्रोपेगैंडा चैनल की आवश्यकता है।

प्रोपेगैंडा चैनल का संक्षिप्त और क्यूट नाम प्रोचै होगा। प्रोचै का लक्ष्य होगा सरकार विरोधी सवालों को ख़त्म करना। राष्ट्रवाद और सेना के सम्मान के नाम पर सवाल पूछने से डराना। प्रोचै का संपादक प्रकृति से निर्लज्ज होना चाहिए। उसका काम गाली देना होगा न कि गाली खाने से विचलित होना होगा।

प्रोचै विपक्ष विरोधी पत्रकारिता को नई धार देगा। व्यवस्था विरोधी पत्रकारिता को ही श्रेष्ठ समझने की प्रवृत्ति समाप्त की जाएगी। पुलित्ज़र जैसे पुरस्कार अब तक समाज और सरकार की व्यवस्था से लड़ने वाली ख़बरों को दिये जाते थे।लेकिन प्रोचै विपक्ष विरोधी पत्रकारिता को सम्मानित करवायेगा।बहुत दिनों बाद व्यवस्था के साथ खुलकर खड़े होने की पत्रकारिता ने ज़ोर पकड़ा है।दुनिया में ऐसा कभी नहीं हुआ।भारत में ऐसा जमकर हो रहा है।

मीडिया और सरकार इतने करीब आ चुके हैं कि आप मीडिया की आलोचना करेंगे तो लोग आपको सरकार विरोधी समझ लेंगे। भारत की जनता को भी इसका श्रेय देना चाहिए। भारत की जनता भी पहली बार व्यवस्था समर्थक पत्रकारिता का साथ दे रही है। जनता भी पत्रकारिता के इस पतन पर ख़ामोश है। वो रोज़ ये तमाशा देख रही है लेकिन उसे पता ही नहीं कि वह इस तमाशे का हिस्सा बन चुकी है।

इसलिए युवा पत्रकारों यही सही समय है। पूरी निर्लज्जता के साथ व्यवस्था समर्थक हो जाएँ। जो टीचर पत्रकारिता के सिद्धांत बताये उनसे कहिये कि मौजूदा संपादकों पत्रकारों से होड़ करते हुए हम युवा पत्रकार कैसे चाटुकार बन पायेंगे, कृपया हमें ये पढ़ायें । व्यवस्था समर्थक होने के गुर जल्दी सीख लें। यह एक बेहतर समय है पत्रकारिता में काला धन को सफेद करने का। जल्दी लाभ उठाइये।आप देखेंगे कि आपका संपादक भी आपसे डरेगा। रोज़ रोज़ स्टोरी फ़ाइल करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। दफ़्तर आने की भी जरूरत नहीं होगी।

व्यवस्था समर्थक पत्रकारिता का यह स्वर्ण युग है। जब पब्लिक व्यवस्था विरोधी पत्रकारिता को देशद्रोही बताने के खेल में शामिल हो जाए तो समझिये वो आपके लिए शानदार मौका बना रही है। जनसरोकार की पत्रकारिता को आप जनसरकार की पत्रकारिता समझिये। जो मिलता है ले लीजिये। जब जनता पत्रकार को दगा दे तो पत्रकार को भी जनता का ख़्याल छोड़ देना चाहिए। सवालबंदी के खेल में सब शामिल हैं। प्रोचै का पत्रकार खुलकर कलमबंदी करेगा।

प्रोचै देश भर में विपक्ष विरोधी पत्रकारिता को प्रतिष्ठित करेगा।विपक्ष को लेकर सवाल करना होगा। विपक्ष नहीं होगा तब भी इधर उधर से विपक्ष खड़ा करना होगा ताकि उसे गरिया गरिया कर अधमरा किया जाए और सरकार महान सरकार महान का जाप किया जाए। विपक्ष विरोधी पत्रकारिता का मूल सूत्र यह है कि हर समय एक ऐसे शत्रु को खड़ा करना जिसके मुक़ाबले सरकार को महान बताते रहने का प्रपंच चलता रहे। रोज़ ऐसे शत्रु को गढ़ना ही होगा।

व्यवस्था विरोधी पत्रकारिता का साहस अब पत्रकारिता संस्थानों में नहीं रहा। बहुत कम है। जहाँ कम है वहाँ भी तरीके से महान वृतांत यानी ग्रैंड नैरेटिव का ही प्रचार हो रहा है। सरकार की बड़ी कमियों को उजागर करने का काम बंद हो गया है। पूरे भारत में इसी तरह की पत्रकारिता हो गई है। राज्यों में भी पत्रकारिता का यही हाल है। खास उद्योगपति और ख़ास नेता पर सवाल बंद हो गया है।

लिहाज़ा निरीह पत्रकार अपना जीवन दाँव पर न लगायें।नियमित गुटखा खायें ताकि आगे चलकर कैंसर से मौत हो। कैंसर से मरने पर किसी को पता नहीं चलेगा कि पत्रकार ज़मीर से ही मर चुका था। आप सरकार और पत्रकारिता संस्थानों के इस गठजोड़ से नहीं लड़ पायेंगे। लड़ना बेकार है क्योंकि जनता भी व्यवस्था समर्थक पत्रकारिता की सराहना करती है। जब उसी का ईमान और ग़ैरत नहीं है तो युवा पत्रकारों तुम अपना ईमान किसके लिए बचाओगे। इसलिए जमकर दलाली करो।

इसलिए प्रोचै में आइये। भारत का अकेला चैनल जो एलानिया प्रोपेगैंडा करेगा। तरफ़दारी के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर देगा। चाटुकारिता ही नई नैतिकता है। प्रोचै एक समय में ही एक ही सरकार का प्रोपेगैंडा करेगा। जब वह बदल जाएगी तभी दूसरी सरकार का प्रोपेगैंडा करेगा।

दुनिया भर की पत्रकारिता अब ऐसी ही होती जा रही है। प्रोचै का एंकर बिजली का करंट लेकर बैठेगा। विरोधी दल या विचार के प्रवक्ताओं के गरदन में झटका देगा। यह भी देखा गया है कि गाली खा खाकर लोग चैनलों में आ रहे है। यक़ीन रखिये ये लोग बिजली का झटका भी खाने आयेंगे। एंकर अब चीख़ेगा चिल्लायेगा नहीं बल्कि सेट पर उसके साथ तगड़े बाउंसर होंगे जो विरोधी दल या विचार को वहीं पर लाइव पटक पटक कर मारेंगे और लोग फिर वहाँ पटकाने के लिए आयेंगे। एंकर सिर्फ इशारा करेगा।

प्रोचै आज की आवश्यकता है। प्रोचै का एक ही मोटो है। विपक्ष नहीं सिर्फ एक पक्ष। सवाल नहीं गुणगान। प्रोचै में हर शनिवार पत्रकारिता का मृत्यु भोज होगा। हर हफ्ते श्राद्ध होगा ताकि अगले हफ्ते के लिए प्रोचै नए जीवन के लिए तैयार रहे। बड़ी संख्या में ऐसे पत्रकार चाहिए जो प्रोचै के योद्धा बन सकें। नव पत्रकार जो पैसे देकर पढ़ रहे हैं। अपने माँ बाप को उल्लू बना रहे हैं,उन मूर्खों को पता ही नहीं कि वे ख़ुद उल्लू बन चुके है।हा हा हा हा।तुम मारे जा चुके हो नवोदित,तुम्हारी धड़कनें किसी के पास उधार हैं।तुम प्रोपेगैंडा करो।प्रोपेगैंडा ही मुक्ति है।नवोदित पत्रकारों तुम्हारी नियति तय है।प्रोचै है तुम्हारी नियति।प्रोचै में वही टिकेगा जो दिल से राष्ट्रवादी होगा। वो आगे चलकर प्रोचैवादी कहलाएगा।

(रवीश कुमार जी के ब्लॉग क़स्बा से साभार )

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना