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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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भारतीय राज्य पर कब्ज़ा ज़माने का भयावह मंसूबा

मीडिया और बुद्दिजीवी-वर्ग, जिसने जनलोकपाल और दिल्ली गैंग-रेप में मध्यम वर्ग की भूमिका का अंधा समर्थन किया, मध्यम वर्ग के युवाओं के साथ मिलकर भारतीय राज्य के खिलाफ एक भयंकर षडयंत्र कर रहा है.

एच एल दुसाध /2011 के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के बाद जब युवाओं ने 2012 के दिसंबर में एकाधिक बार तहरीर चौक के दृश्य की पुनरावृति किया, भारतीय मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग उसकी तारीफ में पहले से कही ज्यादा मुखर हो उठा,जिस युवा वर्ग ने मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग को चमत्कृत किया है वह और कोई नहीं,सवर्णों की वे संताने हैं,जिन्होंने भूमंडलीकरण के दौर के नव-सृजित अवसरों का लाभ उठाकर खुद एक ताकतवर वर्ग में तब्दील कर लिया है.इसके कृतित्व से  अभिभूत एक बुद्धिजीवी ने हाल ही में उसके विषय में कुछ रोचक सूचनाएँ उपलब्ध कराते हुए  कहा है-‘अबतक इस  वर्ग के युवा इसलिए सो रहे थे क्योंकि जानते थे कि कुछ भी करना व्यर्थ होगा,उनकी 2001 तक देश की कुल आबादी में महज 6 फीसदी हिस्सेदारी थी. ऐसे में इस वर्ग के लोग जानते थे कि वे चुनावी नतीजों पर असर नहीं डाल सकते. लेकिन यह सब इतिहास है.

  मध्यम वर्ग ने अभूतपूर्व गति से अपनी तादाद बढ़ाने के साथ यह भांप लिया है कि उसकी राजनीतिक अप्रासंगिकता का दौर अब लद गया है.’नेशनल कौंसिल फॉर एप्लायड इकोनोमी’ की रिसर्च के मुताबिक 2001-2002 में 5.7 फीसदी मध्यम वर्ग था,जो आज देश की कुल आबादी का 15फीसदी है.उम्मीद है कि देश की कुल आबादी में इसकी हिस्सेदारी 2015-16 तक बढ़कर 20.3 और 2025-26 तक 37.2 फीसदी हो जायेगी .ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि मध्यम वर्ग इस तरह का बर्ताव करने लगा है, मानो उसके पर लग गए हों और वह देश के भविष्य को अपने हाथों में लेकर इसे सवारना चाहता है.

  मगर मध्यम वर्ग वास्तव में चाहता क्या है? इसका जवाब पाने के लिए आपको सिर्फ यह देखना है कि वे किस तरह के मसलों पर सडकों पर उतर रहे हैं.पहला और सबसे महत्वपूर्ण ,वे सुदृढ़ कानून –व्यवस्था तथा अपराधमुक्त सड़कें चाहते हैं.वे कानून का राज्य और नेताओं, नौकरशाहों, पुलिसकर्मियों से जवाबदेही की उम्मीद करते हैं. वे चाहते हैं कि भ्रष्टों को दण्डित किया जाय. वे बेहतर लोक सेवायें चाहते हैं. वे उच्च गुणवत्ता शिक्षा चाहते हैं. यह सूची और भी लंबी है. जरा सोचें कि इस सूची की उन चीजों के बीच कितनी विसंगति है, जिनको लेकर अमूमन राजनेता अपना अभियान चलाते हैं. इन चीजों में मुफ्त खैरात(साईकिल,टीवी सेट्स इत्यादि) तथा विभिन्न जातियों और समुदायों के लिए आरक्षण शामिल है...भारतीय राजनीति व्यापक बदलाव की दहलीज पर खड़ी है.नए मध्यम वर्ग को अपनी क्षमताओं का अहसास हो गया है. हालांकि यह अबतक खुद अपनी मुखर आवाज़ नहीं खोज पाया है, लेकिन तलाश जारी है और यह उसे पा भी लेगा . दुनिया भर के अनुभव बताते हैं कि जब मध्यम वर्ग खेल में उतरता है तो लोकतंत्र में मजबूती आती है और शासन भी सुधरता है.’

   तो पाठक बंधुओं! अरब जनविद्रोह के बाद भारतीय मध्यम वर्ग ने भ्रष्टाचार और बलात्कार के नाम पर रह-रह कर जो जनसैलाब पैदा किया है, उसके पीछे उसका अघोषित लक्ष्य देश का नहीं, बल्कि अपने बाल-बच्चों का भविष्य सवारने के लिए सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेना है.वह 2025-26 को ध्यान में रखकर,जब भारत विश्व आर्थिक महाशक्ति बन जायेगा तथा उसकी(मध्यम वर्ग) कुल आबादी में 37.2 प्रतिशत हिस्सेदारी हो जायेगी,छोटे-मोटे मुद्दों पर संगठित होकर सत्ता कब्जाने का पूर्वाभ्यास कर रहा  है.

   भारतीय राज्य पर कब्ज़ा ज़माने का पूर्वाभ्यास कर रहे मध्यम वर्ग कि कुत्सित षड्यंत्रों के तरफ पाठकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मैं 2011 के उस दौर की याद दिलाना चाहूँगा जब हमारा मध्यम वर्ग  इंडिया अगेंस्ट करप्सन वालों के पीछे लामबंद हुआ था. तब टीम हजारे हो या मध्यम वर्ग अथवा मिडिया और बुद्दिजीवी वर्ग,हर किसी को भ्रष्टाचार के खात्मे की एकमेव दवा नज़र आई थी-जनलोकपाल समिति का निर्माण.इनमें किसी ने भी भ्रष्टाचार के पीछे क्रियाशील सामाजिक मोविज्ञान;‘भ्रष्टाचार का जातिशास्त्र’;धन-तृष्णा के पीछे क्रियाशील आकांक्षा-स्तर(लेवल ऑफ एस्पिरेशन) तथा उपलब्धि- अभिप्रेरणा(एचीवमेंट मोटिवेशन) इत्यादि को समझने की कोशिश ही नहीं किया.बहरहाल जनलोकलोकपाल/लोकायुक्त की कवायद के पीछे  भूमंडलीकरण के दौर के सवर्णों का बहुजन प्रधान राजनीति पर सुपर-कंट्रोल स्थापित करना था,यह बात इस कालम में कई बार लिख चुका हूँ, लिहाज़ा इसके विस्तार  में न जाकर दिल्ली गैंग रेप पर आता हूँ.

  जनलोकपाल के अभियान के दौरान मैंने जो आशंका व्यक्त की थी वह दिल्ली गैंग-रेप के खिलाफ युवक-युवातियों की लामबंदी के बाद यकीन में तब्दील हो गयी, जिसे पुख्ता करने में उपरोक्त सूचना ने बड़ा योगदान किया है.इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मध्यम-वर्ग  इसके पीछे क्रियाशील सामाजिक और यौन-मनोविज्ञान की एक बार फिर  पूरी तरह अनदेखी कर, अबिलम्ब जबरन बलात्कारियों  को फांसी या नपुंसक  बनाने  की उग्र मांग उठा रहा है . वैसे ऐसा नहीं है कि वह कठोर कानून की व्यर्थता से नावाकिफ है.वह जबसे कठोर कानूनों की मांग  उठा रहा है, तबसे देश के विभिन्न इलाको में पहले की भांति ही नियमित अंतराल पर दुष्कर्म की घटनाएँ हो रही हैं. बावजूद इसके वह उठा रहा तो इसलिए कि जब एक बार जनदबाव में आकर सरकार उसकी फौरी मांग मान लेती है, वह जनभावना से जुड़े तरह-तरह के मुद्दों के नाम पर सरकार को झुकाता चला जायेगा.इस तरह एक अंतराल के बाद शासन-प्रशासन का मामला अपने हाथ में ले लेगा.

  यदि वह सदिच्छा के साथ दुष्कर्म घटना की तह में जाता तो पता चलता बलात्कार जैसी वैश्विक समस्या हिंदी पट्टी में ही महामारी का रूप धारण की है. इसलिए कि यह इलाका मानव-सभ्यता की दौड में  में 600 साल पीछे है , जहाँ के लोगों में मानवाधिकारों की कोई कद्र नहीं तथा अधिकतम लोग ही यौन-कुंठा के शिकार हैं.ऐसा है इसीलिए इस इलाके में शरत चटर्जी की ‘देवदास’,विमल मित्र की ‘खरीदी कौडियों के मोल’या निमाई भट्टाचार्य की ‘मेमसाब’जैसी कोई साहित्यिक रचना वजूद में नहीं आई.तब वह हिंदी-पट्टी के सर्वोत्तम शहर दिल्ली  में हर साल औसतन साढ़े 500 से ऊपर होने वाली दुष्कर्म की घटनाओं को कोलकाता  के 47 घटनाओं के स्तर पर लाने का उपक्रम चलाता; वह उपलब्धि करता कि दिल्ली रेप के पीछे यदि यौन-कुंठा है तो सुदूर इलाकों में भूरि-भूरि घटनाओं के पीछे उभरते वंचित समाज का मनोबल तोडना है.मुख्यतःहिंदी-पट्टी का यह खुद कुंठित मध्यम वर्ग, यदि महिला अधिकारों के प्रति जरा भी संवेदनशील होता तो इस जनसैलाब का इस्तेमाल वह शक्ति के स्रोतों-आर्थिक,राजनीतिक,धार्मिक-में लैंगिक विविधता के प्रतिबिम्बन की मांग उठाता,ताकि भारत महिला सशक्तिकरण के मोर्चे पर बांग्लादेश देश जैसे पिछड़े राष्ट्र से पीछे रहने के कलंक से निजात पा सके .लेकिन ऐसा न करके उसने इच्छाकृत रूप से नारी-अशक्तिकरण के बजाय बलात्कार को नारी-जाति की सबसे बड़ी समस्या के रूप में स्थापित कर दिया है.इससे महिला सशक्तिकरण का मामला सालों पीछे चला गया है.बहरहाल मेरा मानना है कि मीडिया और बुद्दिजीवी-वर्ग ,जिसने जनलोकपाल और दिल्ली गैंग-रेप में मध्यम वर्ग की भूमिका का अंधा समर्थन किया,मध्यम वर्ग के युवाओं के साथ मिलकर भारतीय राज्य के खिलाफ एक भयंकर षडयंत्र कर रहा है.अगर उसमें  सत-साहस है तो उसे मुझ जैसे 51  किताबों के लेखक को भ्रांत प्रमाणित करने के लिए सामने आना चाहिए.अगर नहीं करता है तब मान लिया जाएगा कि वह षड्यंत्र रच रहा है.(ये लेखक के अपने विचार है )।

-लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं                                         

 

 

 

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डॉ. लीना