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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मीडिया भी इसी परसंतापी समाज का हिस्सा

कृष्ण कांत/ मीडिया यह तो छापता है कि फलाने कोरंटाइन सेंटर में कौन लोग मटन मांग रहे थे, कौन बिरयानी मांग रहे थे, लेकिन उसी उत्साह और सनसनी के साथ यह नहीं छापता कि कोरंटाइन में अखबार पर खाना परोसा गया और दाल बह गई, क्योंकि इसमें उन्माद नहीं है. मीडिया उन्माद बेचता है. 

मीडिया यह नहीं पूछता कि अखबार पर परोसा गया खाना खतम होने से पहले अखबार तो गल गया होगा, क्या इस व्यक्ति के खाने में मिट्टी नहीं आई होगी? क्या अखबार में दाल चावल खाने को देना, जानवरों को जमीन पर चारा डाल देने जैसा नहीं है? 

लेकिन हमारे दिमाग में डाला जा रहा है कि सवाल पूछना देशद्रोही काम है. हमें सिखाया जा रहा है कि जिनसे सवाल करना चाहिए, उनकी पूजा करते रहना ही हमारा धर्म है. इसलिए हम एक दूसरे से भी कहने लगे हैं कि सवाल क्यों करते हो? 

इसलिए हम यह नहीं पूछ पाते कि जिस सरकार ने कुंभ मेले के समय सबसे बड़े बसों के काफिले का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था, जिस राज्य के पास बसों का सबसे बड़ा परिवहन बेड़ा है, उस राज्य में दो महीने तक कामगार भूखे प्यासे पैदल क्यों चलते रहे? 

भारत का समाज मूलत: परसंतापी समाज है. हम लोग अगर यह सुन लें कि कोई सुखी है तो हमें दुख होता है, षडयंत्र सूझता है. दूसरे के दुख से हम सुखी होते हैं. नोटबंदी में हम सिर्फ इसलिए सुखी थे कि अमीरों का दिमाग सही हो गया. उस सच्चाई से हमने आंख मूंद ली कि पौने चार करोड़ लोग बेरोजगार हो गए. 

हम परसंतापी हैं, लेकिन असल अत्याचारी को भगवान मान लेते हैं. इसलिए यह सवाल नहीं करते कि जब देश की आर्थिकी डूब गई तो तीन चार लोगों की संपत्ति दोगुनी कैसे हो गई? हम सब लूट और भ्रष्टाचार को आदर्श मानते हैं. कॉरपोरेट और राजनीति की लूट को मौन समर्थन देते हैं. 

मीडिया भी इसी परसंतापी समाज का हिस्सा है. वह भी परसंतापी लोगों से भरा है. इसलिए मीडिया का चरित्र गरीब विरोधी और धनपशुओं का समर्थक है. 

पिछले दो महीने में गरीब जनता पर जिस तरह का ऐतिहासिक अत्याचार हुआ है, मीडिया की भी उसमें सहभागिता है. भागते हुए लोगों की खबर छाप देना एक बात है, लेकिन सरकार को उसकी करतूतों के लिए असहज कर देना दूसरी बात है. मीडिया ने यह काम छोड़ दिया है, क्योंकि उसकी लगाम सरकार और कॉरपोरेट के हाथ में है. 

यह भी कम हैरानी की बात नहीं है कि जनता हर उस कारनामे से खुश है, जो उसके विरोध में रचा जा रहा है. 

फोटो: पत्रकार आलोक पुतुल की ट्विटर वॉल से

(फेसबुक वाल से साभार )

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सम्पादक

डॉ. लीना