अभिमनोज/ प्रिंट मीडिया के हाथ से मीडिया की सत्ता की डोर छुटती जा रही है... पीएम नरेन्द्र मोदी की मोबाइल को लेकर भाजपाइयों को दी गई सलाह का भावार्थ तलाशेंगे तो यह बात साफ हो जाएगी कि मोबाइल मीडिया सारे मीडिया पर लगातार भारी पड़ता जा रहा है!
पीएम ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले उन राज्यों के सांसदों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए युवाओं पर फोकस करने को कहा है, जहां बीजेपी की सरकार नहीं है. पीएम मोदी ने नाश्ते पर बैठक में सांसदों से कहा कि डिजिटल एक नई भाषा है और मोबाइल एक नया कम्युनिकेटर है! खबरें हैं कि... पीएम ने सांसदों को कहा है कि वे युवाओं तक पहुंचने के लिए मोबाइल टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करें!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना था कि... अगले आम चुनावों में राजनेताओं और मतदाताओं के बीच मोबाइल फोन सबसे बड़ा इंटरफेस होगा! पीएम ने यहां तक कहा कि... अगला लोकसभा चुनाव मोबाइल पर लड़ा जाएगा! उन्होंने कहा कि जब तक सोशल प्लेटफॉर्म पर भाजपा के सांसदों की मौजूदगी नहीं होगी, तब तक वह चुनावों के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे!
दरअसल, यह बदलाव ठीक वैसा है जैसा चिट्ठी पत्री के जमाने में ईमेल की एंट्री हुई थी और... जल्दी ही चिट्ठी पत्री से लोग ईमेल पर आ गए!
देश के भावी रीडर... युवा, दैनिक अखबारों को कितना महत्व दे रहे हैं? अगर प्रिंट मीडिया इस दिशा में सोचेगा और समझेगा तो प्रिंट मीडिया की दशा और दिशा स्वत: ही स्पष्ट हो जाएगी!
इस वक्त मोबाइल मीडिया की सबसे बड़ी कमजोरी विश्वसनीयता को लेकर है लेकिन जैसे ही विश्वसनीय मोबाइल मीडिया स्थापित होते जाएंगे... मीडिया की सारी समीकरणें बदलती जाएंगी!
मोबाइल मीडिया की सबसे बड़ी ताकत... हर जगह, हर वक्त पहुंच और जीरो खर्च है! जहां प्रिंट मीडिया में प्रोडक्शन कॉस्ट, डिस्ट्रिब्यूशन कॉस्ट और एडवर्टाइजमेंट रेट, लगातार बढऩे हैं वहीं मोबाइल मीडिया इन दबावों से मुक्त है इसलिए समय रहते सच्चाई से आंखें मूंदने के बजाय प्रिंट मीडिया के प्रभावी वजूद को बनाए रखने में मोबाइल मीडिया कैसे सहयोगी हो सकता है? इस दिशा में सोचा जाना चाहिए!
* लेखक वरिष्ठ पत्रकार और इंटरनेट समाचार-पत्र पलपलइंडियाडॉटकॉम के प्रधान संपादक हैं
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