कैलाश दहिया / दलित चिंतन को ले कर प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में लगातार बहसों का सिलसिला जारी है। नवीनतम अभिव्यक्ति का माध्यम बने फ़ेसबुक पर भी यह विमर्श जोरों-शोरों से जारी है। यहाँ व्यक्ति के दिमाग की एक-एक नस पकड़ में आ रही है। यहाँ भी ‘द्विजों के चाकर दलित’ अपने मुखौटों के साथ मौजूद हैं। ऐसा ही मुखौटा लगाए यजवीर सिंह विद्रोही बुरी तरह से पकड़ा गया है। फ़ेसबुक पर ‘जमींदार का लौंडा’ के नाम से कुख्यात हो चुके द्विजों के इस चाकर ने जारकर्म के समर्थन में अपना सामंती चेहरा सबको दिखा दिया है। यह “सामंत के मुंशी : प्रेमचंद” से लड़ने की बजाय हम से लड़ रहा है। जबकि, बुधिया को जारकर्म में सामंत के मुंशी ने धकेला है। इसी संदर्भ में बताया जा सकता है कि ‘जारिणी दृष्टि’ ने जमींदार के लौंडे को पैदा किया है।
बताया जाए, मैंने दिनांक 15 जुलाई 2016 को फ़ेसबुक पर एक पोस्ट डाली, जिसमें लिखा गया था, “पिछले दिनों राजस्थान के वरिष्ठतम आइएएस दलित अधिकारी ने अपने साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। साथ ही वे धर्म- परिवर्तन कर के मुसलमान हो गए थे।
अभी ऐसी ही खबर मध्य प्रदेश से आई है। राज्य के एक वरिष्ठ दलित आइएएस अधिकारी ने आरोप लगाते हुए कहा है, 'उन्हें बार-बार प्रताडित कर वैसे ही हालात पैदा कर रहे हैं जिन हालात में दलित छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या की थी।' उन्होंने आगे कहा कि, 'ये चाहते हैं कि मैं रोहित वेमुला जैसे आत्महत्या करूं...।'(देखें, आत्महत्या के हालात पैदा किए जा रहे हैं : थेटे, जनसत्ता, नई दिल्ली, शुक्रवार, 15 जुलाई 2016, पृष्ठ 1 और 8 पर )
अब बताना यह है कि हर दलित को द्विज अछूतता की नजरों से देखता है, चाहे वह कितने ही ऊंचे पद पर क्यों न हो। डॉ. अंबेडकर तक इस से बच नहीं पाते। जिस की आंखों में गीड़ आ गया है वह उसे साफ कर ले।
इस में अगली बात यह बतानी है कि द्विज हर दलित स्त्री को जारकर्म की निगाहों से देखता है। उस के इस देखने में बलात्कार की धमकी छुपी रहती है। तभी तो बताया गया कि बुधिया के साथ बलात्कार हुआ था। असल में, महान आजीवक चिंतक डॉ. धर्मवीर ने बुधिया की इज्जत और सम्मान को बचाया है। जबकि, सामंत के मुंशी ने बात को छुपा कर बुधिया को मरवाया है। यह बताने में कैसी झिझक कि बुधिया के साथ बलात्कार हुआ था ?
जो हमारा विरोध कर रहे हैं, उन से बुधिया को मरवाने का कारण पूछा जा सकता है? असल में, ये वो लोग हैं जो अपने जारकर्म को छुपाने के लिए बुधिया के हितैषी होने का ढोंग रचते हैं। अगर ये ऐसे ही हितैषी हैं तो 'जमींदार के लौंडे' और 'सामंत के मुंशी' को सजा के लिए लड़ें।
बताना यही है कि बुधिया शत -प्रतिशत जारकर्म में थी।“ ( देखें, मेरी फ़ेस बुक वाल पर )
मेरी इस पोस्ट पर अच्छी-ख़ासी बहस चली। इस पोस्ट पर विद्रोही का जामा ओढ़े जमींदार के लौंडे ने 18 जुलाई 2016 को अपनी वाल पर जो लिखा उसे यहाँ ज्यों का त्यों रखा जा रहा है,- “मनु के मुंशी कैलाश दहिया मुझसे कहते हैं कि जार कर्म के ऊपर कोई लम्बा चौडा लेख लिखकर किसी पत्रिका में छपबाऊं और जमींदार के लौंडे का सजा दिलबाऊं।
दहिया को ध्यान हो हमने सबसे पहले जमींदार के लौंडे को जेल भिजवाने की बात कही थी।जिससे इन मनु के मुंशियों में भग्गी मच गयी थी।क्योंकि आज तक इन मुंशियों ने केवल स्त्री को ही शत प्रतिशत दोषी माना है।बलात्कारी का कोई दोष नहीं होता,ऐसा इनका कहना है।
अब मैं दहिया के गुरु धर्मवीर का "धर्मवीर का स्त्रीविरोधी चिंतन" पर कुछ तथ्य पाठको के समक्ष रख रहा हूँ,........
१:सबसे पहले तो धर्मवीर शादी को अनिवार्य मानते हैं और ये भी कहते हैं कि स्त्री अपना पेट खुद भरे,वो पति के ऊपर निर्भर न रहे।
२:औरत के निठल्लेपन से समाज का व सभ्यता का दम घुटता है और औरत पुरुष को बदनाम करने पर तुली है।पुरुष किस लोभ में इतना बोझ उठाये जा रहा है,.......।
३:सबसे बडे दुख की बात है कि दुनिया की तमाम मादाओं में पुरुष की मादा ही इतनी कमजोर है कि वो कई बार अपनी योनि बेचकर अपना पेट भरती है।
४:नारी को घर में निठल्ली रखकर नारी जीवन की गुलामी समाप्तनहीं की जा सकती।ऐसी औरत पुरुष के जीवन में जहर ही घोल सकती हैं।
गृहणियों के बारे में धर्मवीर लिखते हैं कि
५:स्त्रियां घर में खाना बनाने को काम कहती हैं।न कमाने वाली ये औरतें डायनासुर बनकर मनुष्यकी नस्लों को धरती से नष्ट करना चाहती हैं।कामिनी बनने के चक्कर में इन्होनेअपना सम्मान तक बेच दिया है।
६:पुरुष क्या गलती करता है।वह शादी करता है और मिलकर अपने बच्चे पैदा करता है।लेकिन औरत जब चाहे वैश्या बनकर उसके बसे बसाये घर को उजाड देती है।क्योंकि औरत घर में ठाली है।इसलिए औरत को सेक्स नहीं बल्कि चौबीस घंटे सेक्स की बकवास चाहिए।
ये तो मात्र बानगी भर है।आगे फिर लिखूंगा।
अब पाठक अंदाजा लगा सकतेहैं कि स्त्रियों के बारे में इन मनु के मुंशियों का कितना बाहियात चिंतन है।क्या ऐसे गद्दार जमींदार के लौंडों को सजा देने देंगे।जबकि इनका बाहियात लेखन जमींदारों के पक्ष में लिखा पडा है।“ ( देखें, यजवीर सिंह विद्रोही की फ़ेस बुक वाल पर )
बताया जाए, जमींदार का लौंडा अपनी छाती पर हाथ मार कर कह रहा है- “हमने (जमींदार के लौंडे) सबसे पहले जमींदार के लौंडे (यानी बुधिया के जार) को जेल भिजवाने की बात कही थी। जिससे इन मनु के मुंशियों में भग्गी मच गई थी।“ बताइए, जारकर्म के विरुद्ध लड़ाई हम लड़ रहे हैं, जिस पर जमींदार का लौंडा हम से लड़ रहा है और दावा कर रहा है जमींदार के लौंडे को जेल भिजवाने का ? मेरा इस से साफ शब्दों में कहना है कि ये सामंत के मुंशी के खिलाफ लेख लिखे और किसी पत्रिका में छपवाए, क्योंकि बुधिया को जारकर्म में सामंत के मुंशी ने धकेला है। ये है कि हमें मनु का मुंशी बताने में लगा है। इसे कहते हैं ब्राह्मण का गुलाम।
दरअसल, सामंत के मुंशी ने बुधिया को प्रसव में ही मरवा दिया था, अन्यथा उस के जो जारज औलाद पैदा होती वह बिलकुल ‘अक्करमाशी’ यानी जमींदार के लौंडे जैसे होती। ऐसी औलादें खुद को विद्रोही विद्रोही कहती फिरती हैं। न-मालूम ये कौन सा विद्रोह करती हैं? अब शरण कुमार लिंबाले ने ऐसा क्या कर दिया जो उसे विद्रोही की संज्ञा दी जाए ? पूछा जाए, अगर बुधिया ने बच्चे को जन्म दे दिया होता तो उस की परवरिश कौन करता ? बुधिया को प्रसव में मरवा कर सामंत के मुंशी ने अपने चहेते जमींदार और जमींदार के लौंडे को बचाया है। बताया जाए, हमारे विट्ठल कांबले ने बुधिया बनी जारिणी मसायी को तलाक दे दिया था, तब क्या हणमंता राव लिंबाले ने और बाकी के उस के जारों ने अपनी जारकर्म की औलादों का भरण-पोषण किया? असल में, कोई जार अपनी जारज औलादों के भरण-पोषण को तैयार नहीं। उधर, सामंत के मुंशी को पता चल गया था कि ‘घीसू-माधव’ तो जारकर्म की पैदाइश को पालेंगे नहीं, इसी लिए उन्होंने बुधिया को प्रसव में ही मरवा दिया।
जाना जाए, गुलाम क़ौमों की स्त्रियाँ अक्सर उच्छृखल हो जाती हैं। वे मालिकों से मिल जाती हैं और उन से गर्भा हो कर अपने निरीह पति से सामंतों की औलाद को पलवाती हैं। उन औलादों में से कुछ जो पढ़ना-लिखना सीख जाते हैं वे अपने “जैविक पिता” की खोज में आत्मकथा लिखते हैं। इतनी हिम्मत तो उन में भी नहीं होती कि वे जैविक जार बाप को सजा दिलवा सकें। बताइए जमींदार का लौंडा उर्फ तथाकथित विद्रोही ‘जमींदार के लौंडे यानी बुधिया के जार’ को सजा दिलवाएगा? सजा के नाम पर यह इतना जरूर कर सकता है कि उस के हाथ-पाँव दबाने लगे। यह जान चुका है कि जमींदार के लौंडे की सजा का समय आ गया है, इस पर यह बुरी तरह बौखला गया है। बुधिया का जार इस का कुछ न कुछ लगता ही है। ऐसे में इस की परेशानी समझ में आती है, लेकिन इस का यह कहना की यह जमींदार के लौंडे को सजा दिलवाएगा, सोच कर हंसी आती है। इस से पूछा जा सकता है, यह किस कोर्ट में और क्या सजा दिलवाएगा?
यहाँ पुनः बताया जा रहा है , अगर बुधिया के बच्चा पैदा होने दिया जाता तो वह बिल्कुल जमींदार के लौंडे जैसा होता और उस कि मानसिक दशा भी बिल्कुल ऐसी ही होती। असल में, इसे गलतफहमी हो गई है कि यह बुधिया के जार को सजा दिलवाएगा ! बताया जा सकता है कि आज तक यही काम नहीं हुआ और न ही आगे कोई जारज औलाद इस काम को अंजाम देने वाली। अक्करमाशी शरण कुमार लिंबाले तक अपने जार बाप की शरण के लिए गुहार लगा चुके हैं, तब इस की क्या बिसात? एन.डी.तिवारी का केस क्या किसी को याद दिलवाने की जरूरत है? असल में, जार बाप को सजा केवल “आजीवक विमर्श” में ही दी जा रही है। सजा है, बुधिया को तलाक। तलाक के बाद बुधिया के पास जमींदार के दरवाजे पर बैठने के सिवाय कोई विकल्प नहीं, वह भी जमींदार की जारज औलाद के साथ। इसी सजा से जमींदार, जमींदार का लौंडा और सारे द्विजों में भय व्याप्त हो गया है। अब जरा हम भी देख लें कि इस के सिवाय जमींदार का लौंडा क्या सजा दिलवाएगा?
जमींदार के लौंडे में इतनी हिम्मत नहीं कि यह सामंत के मुंशी के खिलाफ लेख लिख कर छपवाए, बताइए हम से लड़ रहा है। हमारे पास तो इस की साहित्यिक माँ बुधिया को तलाक के सिवाय कुछ नहीं मिलने वाला। इस पर और अधिक विस्तृत रूप देते हुए किताब लिखी जा सकती है। वैसे महान आजीवक चिंतक डॉ. धर्मवीर ने ‘मातृसत्ता, पितृसत्ता और जारसत्ता’ सीरीज के अंतर्गत दस किताबें पहले ही लिख रखी हैं। जिसमें “दूसरों की जूतियाँ” से इस जमींदार के लौंडे ने अपने मन -मुताबिक प्रक्षिप्त कथन लिखे हैं। ‘दलित विमर्श’ का एक मोर्चा प्रक्षिप्त के खिलाफ भी है। सभी पाठक “दूसरों की जूतियाँ” के अध्याय परिशिष्ट-VII से ‘हिन्दू विवाह की तानाशाही” को पढ़ कर जमींदार के लौंडे के झूठ को पकड़ सकते हैं। फिर भी ‘अक्करमाशी’ यानी जमींदार के लौंडे की झूठ यानी प्रक्षिप्त कथनों पर बताया जा रहा है...
इसे ‘शादी की अनिवार्यता’ पर एतराज है ! क्या इस से पूछा जा सकता है कि इस ने शादी की है या नहीं ? ज्यादा न कह कर बताया जा सकता है कि शादी न करने वालों के लिए महान आजीवक कबीर साहेब कह गए हैं- ‘काम जराय जोगी होय गैलै हिजरा।‘ अब ये जाने इस के दिमाग में क्या है ! यह जरूर कहा जा सकता है कि कोई जारकर्म की पैदाइश ही विवाह-संस्था का विरोध कर सकती है। यह भी बताया जा सकता है, विवाह नामक संस्था कोई दो दिन में तो पैदा नहीं हो गई। इस का लंबा इतिहास है। अभी भी केवल और केवल जार ही है जो विवाह अर्थात शादी का विरोध करता है। फिर, जमींदार का लौंडा तो विवाह का विरोध करेगा ही, क्योंकि कोई जार कब अक्करमाशी को अपनी संतान मानने को तैयार होता है? अगर बुधिया के बच्चा पैदा हो जाता तो क्या जमींदार का लौंडा उसे अपनी औलाद मानता ?
यहाँ बताया जा सकता है कि संतान चार तरह से पैदा होती है, सर्वप्रथम, विवाह से संतान पैदा होती है। इसे सारी दुनिया में कानूनी मान्यता मिली हुई है। शेष तीन तरीके हैं- जारकर्म, बलात्कार और वेश्यावृति। यूं, बताया जाए, जारकर्म से जमींदार के लौंडे अर्थात अक्करमाशी पैदा होते हैं। बलात्कार से ठहरे गर्भ को तो न्यायालय ने भी गिराने की बात कही ही है। फिर ऐसी पैदाइश तो कूदे के ढेर पर पाई जाती हैं। जहां तक वेश्या से की औलाद की बात है तो सब उसे भाड़ू कहते हैं। आज के नए जुमले “लिव इन रिलेशनशिप” की पैदाइश भी इसी श्रेणी में आती है।
फिर कोई जमींदार के लौंडे से पूछे, इस में गलत क्या कहा जा रहा कि ‘स्त्री अपना पेट खुद भरे, वो पति के ऊपर निर्भर न रहे।‘ असल में, किसी पर निर्भर स्त्री ही क्यों पुरुष को भी किसी की गलत बात को मानना पड़ता है। अगर स्त्री अपने पैरों पर खड़ी होगी तो अपने जार पति अर्थात जमींदार के लौंडे को लात मार कर अपने स्वतंत्र निर्णय पर खड़ी हो जाएगी। आज आत्मनिर्भर स्त्री ही नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है।
यहाँ एक बात और बताई जा सकती है, विवाह का विरोध कर रहा जमींदार का लौंडा फ़ेसबुक पर अपने एक मित्र को उस के 31वें जन्मदिन पर उसे विवाह करने की सलाह दे रहा था।
यह अकाट्य तथ्य है कि ‘निठल्लेपन से समाज का व सभ्यता का दम घुटता है’ फिर चाहें वह स्त्री हो या पुरुष। निठल्ली औरत हो या निठल्ला आदमी ये मानव सभ्यता पर कलंक हैं। ये परजीवी होते हैं। यह भी सही है कि पुरुष को निठल्ली औरत का बोझ कतई नहीं उठाना चाहिए। सड़क पर काम करने वाली आत्मनिर्भर स्त्री जार पति को बर्दाश्त क्यों करेगी भला ?
इस बात से कोई कैसे इंकार कर सकता है,- “दुनिया की तमाम मादाओं में पुरुष की मादा ही इतनी कमजोर है कि वो कई बार अपनी योनि बेचकर अपना पेट भरती है।“ पूछा जाए, वेश्यावृति क्या जानवरों में भी पाई जाती है ? आदिवासी समाजों में भी वेश्यावृति देखने को नहीं मिलती।
जमींदार का लौंडा समझता है कि वह बात को रला देगा, लेकिन इसे पता रहना चाहिए, इन सवालों पर रमणिका गुप्ता, प्रभा खेतान, मैत्रेयी पुष्पा और बहुत सी दलित और गैर दलित स्त्रियाँ कहीं की नहीं रही यह आया है स्त्री का पक्षधर बन कर ? फिर, यह पूछा जा सकता है, ‘तलाक’ के सवाल पर भरण-पोषण के नाम पर क्या स्त्री अपनी योनि की कीमत नहीं मांगती ? अपने पैरों पर खड़ी मोरल स्त्री जार पति के लात मार कर अपने रास्ते बढ़ जाती है।
यह सही है कि ‘नारी को घर में निठल्ली रखकर नारी जीवन की गुलामी समाप्त नहीं की जा सकती।‘ असल में निठल्ला और निठल्ली मानव सभ्यता पर कलंक हैं। जमींदार का लौंडा बताए, नारी को घर में निठल्ली रख कर यह उस से क्या करवाना चाहता है? और, यह दुनिया का आठवाँ आश्चर्य होगा कि निठल्ली स्त्रियाँ नारी की गुलामी खत्म करेंगी। जमींदार का लौंडा जरा एकाध निठल्ली औरत का नाम बता दे जिस ने स्त्री की स्वतन्त्रता के लिए कुछ किया हो?
चूंकि, जमींदार के लौंडे ने सारे कथन प्रक्षिप्त कर के लिखे हैं इसलिए इस की पोल खोलता एक पूरा वाक्य ही यहां रखा जा रहा है, ताकि पढ़ने वालों को इन जैसों के झूठ का पता रहे। महान आजीवक चिंतक डॉ. धर्मवीर ने लिखा है- “कोई प्रश्न उठा सकता है कि जब औरत को कोई कमाने नहीं देता तो वह क्या करे ? इसका जवाब यह है कि वह न कमाने के लिए लड़ती है, वैसे ही वह कमाने के लिए भी लड़े। लेकिन यहाँ उस स्थिति की बात कही जा रही है जहाँ नारी को कमाने के लिए कहा जा रहा है, पर वह किसी हालत में कमाने को तैयार नहीं। उल्टे वाचाल हो कर कई औरतें जो कुछ करती है, उसी को काम कहती हैं। मसलन वे इसे भी काम कहती हैं कि उन्होंने रोटी खाई और इसे उन्होंने काम कह कर सारी दुनिया के सामने गा-बजा रखा है कि उन्होंने रोटी बनाई। वे घर में वीडियो फिल्म के सामने बैठी हैं या पलंग पर पड़ी सो रही हैं- उनके घर में काम करने को नौकरानी है जिसे वे अपने पति की अतिरिक्त पत्नी न मानने देने के लिए नारी मुक्ति के आधुनिक आंदोलन में सम्मिलित हो रही हैं। न कमाने वाली ये औरतें डायनासोर बन कर मनुष्य की नस्ल को धरती से नष्ट करना चाहती हैं। कामिनी बनने के चक्कर में इन्होंने अपना सम्मान बेच दिया है।“ (देखें, दूसरों की जूतियाँ, डॉ. धर्मवीर, परिशिष्ट-VII, वाणी प्रकाशन, 21-ए, दरियागंज, नयी दिल्ली- 110002, प्र.163 -164) पाठक देख सकते हैं कि जमींदार के लौंडे ने किस प्रकार प्रक्षिप्त का सहारा लिया है। ऐसे ही महान आजीवक कबीर साहेब की लेखनी के साथ किया गया है।
अगर पुरुष ने विवाह नामक संस्था का आविष्कार किया है तो इसमें गलत क्या किया गया है? पुरुष अगर विवाह से बच्चे पैदा करता है तो इसमें भी क्या गलत करता है? दरअसल स्त्री जब चाहे वेश्या अर्थात जारिणी बन कर पुरुष का घर उजाड़ देती है। जारिणी को सेक्स नहीं बल्कि चौबीस घंटे सेक्स की बकवास चाहिए। जारिणी बच्चे किसी से पैदा करती है और पलवाना उन्हें पति से चाहती है। जारिणी के ऐसे ही बच्चे जमींदार के लौंडे के नाम से कुख्यात हो कर विवाह का विरोध करते हैं। असल में, भाड़ू विवाह का विरोध करेगा ही, अन्यथा उसे वेश्यावृति से होने वाली कमाई से हिस्सा कैसे मिलेगा।
असल में, जमींदार के लौंडे ने यह सारे उदहरण डॉ. धर्मवीर की किताब “दूसरों की जूतियाँ” के अध्याय परिशिष्ट-VII के ‘हिन्दू विवाह की तानाशाही” नामक अध्याय से तोड़-मरोड़ कर रखे हैं। लेख को पढ़ने पर सभी को पूरी बहस का पता लग जाएगा। इस से जमींदार के लौंडों जैसों की सारी चालाकी पकड़ में आ जाती है। ऐसे लोग ब्राह्मण के गुलाम कहे जा सकते हैं, क्योंकि ब्राह्मण की तरह ये भी बात को प्रक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते हैं। बात को प्रसंग से काट कर उस के स्थान पर अपने शब्द रख दिये जाते हैं या आधे-अधूरे कथन के साथ बात बताई जाती है। कंवल भारती जैसे भी इसी श्रेणी में आते हैं। यह हाल तो तब है जब डॉ. धर्मवीर का साहित्य उपलब्ध है। कोई भी मूल लेख या वाक्य को पढ़ कर इन जैसों की धूर्तता को पकड़ सकता है। सोचा जा सकता है कि कबीर साहेब की लेखनी के साथ कैसा सुलूक किया गया है।
जमींदार ले लौंडे के रूप में यजवीर सिंह विद्रोही ने ‘मनु का मुंशी’ नाम की रात लगा रखी है। इस से पूछा जा सकता है कि यह मनु कौन है और किस खेत की खर-पतवार है ? इसके लिए यही कहा जा सकता है कि इधर-उधर की बकवास करने की बजाय यह सामंत के मुंशी के खिलाफ लेख लिख कर छपवाए। यही सामंतों की सजा होगी। इस काम में अगर मदद चाहिए तो वह की जा सकती है, लेकिन जमींदार का लौंडा यानी अक्करमाशी इसके लिए इतनी हिम्मत कहाँ से लाएगा ? वैसे अगर जमींदार के लौंडे का इशारा छूतवंशी वर्णवादी द्विज मनु की तरफ है तो बता दिया जाए, इस मनु के बारे में हमारे बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर बता चुके है,- "यदि मनु का कोई अस्तित्व रहा है तो वह एक ढीठ व्यक्ति रहा होगा। ...... वह एक शैतान की तरह जिंदा है, किंतु मैं नहीं समझता कि वह सदा जिंदा रह सकेगा।" (देखें, बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर, सम्पूर्ण वाङ्मय, खंड 1, पाँचवाँ संस्करण : 2013, डॉ. अंबेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली- 110001,पृ. 28-29) असल में, जमींदार के लौंडे ऐसे ही ढीठ होते हैं। इन जैसों को अगर बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर भी समझाने आ जाएं तो ये उन की भी कहाँ सुनने वाले हैं।
असली बात यह है कि जमींदार का लौंडा सोच रहा है कि यह जारिणी 'बुधिया' और इसके जार 'जमींदार के लौंडे' को सजा से बचा लेगा। लेकिन, इसे खबर रहनी चाहिए कि "आजीवक विमर्श" ने बुधिया को तलाक की सजा सुना दी है। इस पर किसी की नहीं सुनी जानी। बुधिया ने जमींदार के लौंडे के साथ मिल कर जिस अपराध को अंजाम दिया है, उस की सजा केवल और केवल तलाक होती है। अब दोनों जार-जारिणी रहें एक साथ। विवाह करें या मसायी की तरह रहें, दलितों को इस बात से कुछ भी नहीं लेना-देना। यहाँ बताया जाना है कि साहित्य में इस केस के निर्णय के लिए न्याय की कुर्सी पर किसी दलित को ही बैठना है। जमींदार का लौंडा किस गुमान में है? (लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक- वरिष्ठ आलोचक और जाने माने कवि है .