एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास / एक और पर्दाफाश। रिलायंस पर केजरीवाल के खुलासे से कारपोरेट राज की परतें खुलने लगीं तो हिंदुत्व की ताकतें प्रेम प्रसंगों की सनातन कथानक में पंसाने लगी हमें। स्त्री की अस्मिता का सवाल प्रमुख हो गया। भ्रष्ट मंत्रियों की जगह कैमरे का रुख शशि थरूर और नरेंद्र मोदी के निजी जावन की तरफ मुड़ गया। रिलायंस बम फिस्स हो गया इस तरह।
और अब जनता पार्टी के प्रमुख सुब्रह्मण्यम स्वामी ने गुरुवार को सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर फिर निशाना साधा और नेशनल हेराल्ड अखबार का प्रकाशन करने वाली कंपनी के अधिग्रहण पर सवाल खड़े किए। इस कंपनी को कांग्रेस ने 90 करोड़ रुपये से ज्यादा का ऋण दिया। वहीं, सुब्रह्मण्यम स्वामी के आरोपों को 'पूरी तरह से झूठा, निराधार और मानहानिपूर्ण' बताते हुए राहुल गांधी ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की धमकी दी। सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल की ओर से सवाल उठाए जाने के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरों पर दबाव देखने को मिल रहा है।
लेकिन बाकी देश पर इसका क्या असर हुआ? कोलकाता में मीडिया ने तो इस खबर को लगभग ब्लैक आउट कर दिया। यहां हल्दिया उत्सव के तहत सिंगुर और नंदीग्राम प्रतिरोध का मातम मनाया जा रहा है। आनंद बाजार ने रिलायंस की सफाई के साथ भीतर खबर दी तो टेलीग्राफ को कोई जगह नहीं मिली इस खबर के लिए। यह है मीडिया का मिशन!
सत्तावर्ग के भ्रष्टाचार के एक के बाद एक खुलासे के बीच आर्थिक नीतियों के जरिये आम आदमी का आखेट बदस्तूर जारी है। बल्कि पर्दाफाश के इस घनघोर बवंडर में नीति निर्धारण और नीतियों के कार्यान्वन की खबरें सिरे से गायब है। ध्यान बंटाने के लिए सनसनी की कोई कमी नहीं है। राजनीतिक वर्ग का जो चेहरा खुलने लगा है, उससे तो हर भारतवासी को या तो मारे शर्म के आत्महत्या कर लेनी चाहिए या फिर क्रोध में इतना पागल हो जाना चाहिए कि खुले बाजार का खुल्ला खेल तुरंत बंद हो जाये। पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। क्या हम नपुंसकों और अंधों के देश में मर मरकर जी रहे हैं? समाजसेवी अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल के बारे में कहा है कि वह सत्ता के भूखे हो सकते हैं। गुरुवार को उन्होंने कहा कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) के सदस्य अरविंद केजरीवाल कभी अमीर नहीं बनना चाहते हों लेकिन ऐसा नहीं है कि वह सत्ता लोभ से बचे रह सकें। अन्ना ने केजरीवाल के एक के बाद एक पर्दाफाश करने के मामलों पर सवाल उठाया। अन्ना ने अपने इंटरव्यू में कहा कि आप एक ही समय पर हर किसी को नहीं पकड़ सकते। आपको हर किसी को एक-एक करके निशाने पर लेना चाहिए। मैंने छह मंत्रियों को इस्तीफा देने पर मजबूर किया और यह सब रणनीति के तहत हुआ। केजरीवाल को भी ऐसा ही करना चाहिए।
अन्ना ने केजरीवाल द्वारा सियासी पार्टी बनाने की घोषणा के बाद उनका साथ छोड़ा था। जब अन्ना हजारे ने जनलोकपाल विधेयक को लेकर सरकार के खिलाफ मुहिम शुरू की थी, तब केजरीवाल उनके सबसे सक्रिय सहयोगी थे।