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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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वीआईपी कवरेज के दौरान पत्रकारों के मोबाइल प्रयोग पर रोक?

(राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष)

संजय कुमार/ राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर पत्रकार मित्रों को बधाई! लेकिन कहीं सम्मान तो कहीं बेरूखी का समाना करना पड़ता है। खासकर वीआईपी एवं वीवीआईपी कवरेज में। 

प्रिट मीडिया से निकल कर इलेक्ट्रोनिक फिर सोशल, वेब, यूट्यूब मीडिया का जलवा जहाँ उफान पर है वहीं मोबाइल पत्रकारिता ने भी अपनी पकड़ बना ली है। बडे़ - बड़े कैमरे की जगह बेहतर मोबाइल से फोटो/टीवी पत्रकारिता के साथ सभी मीडिया के आयामों ने डिजिटलीकरण को अपना लिया है। 

घटना या समारोह या प्रेस वार्ता स्थल से तुंरत मोबाइल के जरिये फोटो या वीडिया शूट कर लोगों तक पहुँचाने का काम हो रहा है। इसमें सभी मीडिया घराने शामिल हो चुके हैं। अब वह दौर नहीं रहा कि घटना या समारोह या प्रेस वार्ता स्थल से कवर कर दफ्तर जाकर स्टोरी बनाया जायेगा। हालांकि आज भी दफ्तर जाकर संवाददाता स्टोरी बनाते हैं, लेकिन घटना या समारोह या प्रेस वार्ता स्थल से तुरंत फोटो/वीडियो क्लीप/ स्टोरी संक्षिप्त में मोबाइल से भेजनी पड़ती है।

डिजिटल और ई-माध्यम के दौर में व्यापक बदलाव को मीडिया और आयोजको ने स्वीकार कर लिया है। लेकिन वीवीआईपी आयोजन में यह अस्वीकार है। 

सुरक्षा के मद्देनजर जहाँ आमजनों को मोबाइल ले जाने नहीं दिया जाता है। वहीं पत्रकारों पर भी भंवे तन जाती है। आयोजक द्वारा पत्रकारों को मोबाइल साइलेंट मोड में ले जाने की घोषणा की जाती है लेकिन सुरक्षाकर्मी नहीं मानते है। जबकि प्रवेश के दौरान ही जबर्दस्त सुरक्षा व्यवस्था से गुजरना पड़ता है। पत्रकारों को भी सुरक्षा पास के बिना प्रवेश नहीं दिया जाता है । तमाम मीडिया यंत्रों की जांच होती है। स्थानीय सरकारी जनसंपर्क अधिकारी होते हैं जो अमूमन सभी पत्रकारों को जानते है। लेकिन सुरक्षाकर्मी से तू -तू , मैं -मैं हो ही जाती है। टी वी पत्रकार को लाइव के दौरान स्टूडियो, ओबी वैन और कैमरामैंन से मोबाइल फोन के सहारे ताल मेल बैठाना होता है ।

आज के दौर डिजिटल और ई-माध्यम को सरकार खुद बढ़ावा दे रही है। लगभग हर काम मोबाइल से हो रहा है। वहीं पत्रकारों को अपने काम से रोका जाता है। जबकि सरकार चाहे तो सुरक्षा व्यवस्था में मोबाइल जांच की व्यवस्था सुनिश्चित कर सकती है बल्कि करनी ही चाहिये। कम से कम पत्रकारों के मोबाइल को विशेष सुरक्षा व्यवस्था से गुजार कर वीवीआईपी कवरेज में अनुमति दी जानी चाहिये। देखा जाये तो पत्रकारों से भला किसे खतरा हो सकता है उलटे पत्रकारों को ही निशाना बनाया जाता रहा हैं।

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना