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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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सच को सच कह दोगे अगर तो फांसी पर चढ़ जाओगे

पत्रकार और समाजसेविका गौरी लंकेश की हत्या के बाद निर्मल रानी का लिखा आलेख

निर्मल रानी/ कट्टरपंथ के विरोध तथा धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में निरंतर उठने वाली एक और आवाज़ हमेशा के लिए खामोश कर दी गई। 55 वर्षीय मुखर महिला पत्रकार गौरी की गत् मंगलवार को बैंगलोर में हत्या कर दी गई। समाचारों के अनुसार निहत्थी महिला पत्रकार मंगलवार की शाम को बैंगलूरू के  राजेश्वरी नगर में जब अपने घर का दरवाज़ा खोल रही थी उसी समय आक्रमणकारियों ने उनके सिर व छाती पर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग़ीं। परिणामस्वरूप नरेंद्र दाभोलकर, डा०एमएम कलबुर्गी तथा पंसारे जैसे शहीद विचारकों की श्रेणी में गौरी लंकेश का नाम भी एक शहीद विचारक के रूप में शामिल हो गया। ठीक इसी अंदाज़ से डा० कुलबर्गी को भी उनके घर के दरवाज़े पर ही घर के बाहर घात लगाए बैठे हत्यारों ने मार डाला था। इस हत्या ने एक बार फिर उसी सवाल को जि़ंदा कर दिया है कि क्या भारत में कट्टरपंथी विचारों की आलोचना करना गुनाह है? क्या सर्वधर्म संभाव, सांप्रदायिक सौहार्द या धर्मनिरपेक्ष विचारों की पैरवी करना या इनके पक्ष में खड़े होना अपराध है? क्या भारतीय लोकतंत्र में अपने स्वतंत्र विचार रखने वालों का यही हश्र होता रहेगा? और इन सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या इस प्रकार की कायरतापूर्ण हत्याएं कट्टरपंथी  व दक्षिणपंथी ज़हरीले विचारों के विरुद्ध उठने वाले स्वरों को दबा सकेंगी? क्या लेखक समाज या स्वतंत्र सोच-विचार व्यक्त करने वाला समाज इन हत्याओं से भयभीत होकर अपनी आवाज़ें बुलंद करना बंद कर देगा?

गौरी, लंकेश नामक एक पत्रिका की संचालक थीं। यह पत्रिका उनके पिता द्वारा चार दशक पूर्व शुरु की गई थी। वे विभिन्न समाचार पत्रों में अपने बेबाक विचार व्यक्त करती रहती थी। 2002 में गुजरात में भडक़ी अल्पसं यक विरोधी हिंसा पर आधारित पुस्तक ‘गुजरात फाईल्स’ जिसकी लेखिका पत्रकार राणा अयूब हैं, और जिस पुस्तक को देशके अनेक प्रमुख प्रकाशकों ने केवल इसलिए प्रकाशित करने का साहस नहीं किया था क्योंकि इस पुस्तक में गुजरात हिंसा से जुड़े कई सत्य उजागर किए थे और कई प्रमुख दक्षिणपंथी नेताओं के ऐसे स्टिंग आप्रेशन प्रकाशित किए गए थे जोकि वर्तमान राजनीति के मुंह पर काले धब्बे के समान हैं। गौरी ने इस पुस्तक यानी गुजरात फाईल्स का कन्नड़ संस्करण अनुवादित तथा प्रकाशित करने का साहस किया था। गौरी के लेखों तथा उनके विचारों की एक और विशेषता यह भी थी कि वे दक्षिणपंथी विचार रखने वालों का विरोध कम करती थीं जबकि उन्हें समझाने-बुझाने तथा उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव व सामाजिक सौहाद्र्र के गुण सिखाने की कोशिश ज़्यादा करती थीं। बड़ा आश्चर्य है कि गौरी के यह विचार लोगों के गले से नहीं उतर सके और गौरी के विचारों से भयभीत लोगों ने इस निहत्थी महिला की हत्या कर डाली। जबकि कोई भी धर्म या नीति किसी मर्द को इस बात की इजाज़त नहीं देती कि वह एक महिला पर हमला करे और वह भी किसी निहत्थी महिला पर जानलेवा हमला?

यहां एक सवाल और भी उठ रहा है कि आखिर इस प्रकार के स्वतंत्र विचार रखने वाले लेखकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला क्योंकर अनवरत जारी है? दाभोलकर, पंसारे व कुलबर्गी के बाद हत्यारों के हाथ गौरी लंकेश तक पहुंचने की नौबत कैसे आई? इस प्रश्र के जवाब में हमें यही दिखाई देता है कि इन लोगों की हत्या के बाद न तो हत्यारों को अब तक सज़ा दी जा सकी है न ही इस हत्यारी विचारधारा का राष्ट्रीय स्तर पर विरोध किया गया। हां इतना ज़रूर है कि समय-समय पर इस प्रकार की हिंसक वारदातों को समर्थन देने वाली शक्तियां ज़रूर मुखरित होते हुए दिखाई देती हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण इन दिनों सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों में साफतौर पर देखा जा सकता है जबकि कोई भी सही व कड़वी बात कहने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे कट्टरपंथी ताकतें हाथ धोकर पड़ जाती हैं। यह शक्तियां निचले दर्जे के सभी हथकंडे इस्तेमाल करती हैं। पहले यह ताकतें गाली-गलौच कर,अपमानजनक बातें कहकर और बाद में डरा-धमका कर ऐसी आवाज़ों को बंद करना चाहती हैं। सामाजिक एकता की विरोधी यह शक्तियां अपनी कट्टरपंथी सोच तथा अपनी अंध आस्था के चलते यह भी नहीं देखतीं या सोचतीं कि जिसपर वे लेाग हमलावर हो रहे हैं वह कोई स मातिन व्यक्ति है, बुद्धिजीवी है, शिक्षक है अथवा कोई बुज़ुर्ग या महिला है। और यही सिलसिला आखिरकार हत्या तक का रूप ले लेता है।

भारत जैसे अमनपरस्त समझे जाने वाले लोकतंत्र में इस प्रकार की घटनाएं निश्चित रूप से पूरे देश को कलंकित करने वाली घटनाएं हैं। जो कट्टरपंथी शक्तियां अपनी आलोचना नहीं बर्दाश्त कर सकतीं या जिन्हें धर्म व समाज में एकता व सद्भाव रास नहीं आता इन शक्तियों के पास भी अनेक ऐसे लेखक,विचारक, वक्ता,शिक्षक तथा राजनेता हैं जो अपने ज़हरीले व आक्रामक स्वरों से समाज को तोडऩे तथा एकतरफा संवाद स्थापित करने में लगे रहते हैं। निश्चित रूप से यह उनकी कोशिशों का ही परिणाम है जो आज देश में इस प्रकार के हत्यारे घूमते-फिरते तथा दिनदहाड़े पत्रकारों व बुद्धिजीवियों की हत्याएं करते दिखाई दे रहे हैं। परंतु शांति व सद्भाव की बात करने वालों में ऐसे ज़हरीले व कट्टरपंथी विचारकों का कभी भी इस स्तर तक विरोध नहीं किया कि किसी की हत्या हो जाए या उसे गाली-गलौच कर अपमानित किया जाए। सामजिक सद्भाव तथा धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर लोग हमेशा रक्षात्मक मुद्रा में रहकर केवल अपनी बात कहने तथा दूसरों को समझाने-बुझाने जैसा काम ही करते रहे हैं। इस विचारधारा के लोगों के पास गांधी, नेहरू व लोहिया की बताई गई सत्य, शांति व अहिंसा की शिक्षा तो ज़रूर है परंतु इनके पास लाठी, त्रिशूल, भाला, तलवार, गंडासी रखने या इसे वितरित करने अथवा इन शस्त्रों की पूजा करने या इन्हें संग्रह करने जैसा कोई मिशन नहीं है।

इन दिनों फेसबुक, व्हाट्सएप तथा ट्विटर पर तरह-तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं। जो लोग इन अफवाहों को अपनी मरज़ी के मुताबिक देखते हैं वे इन्हें और आगे प्रसारित करते हैं। परिणामस्वरूप एक झूठी खबर या अफवाह देखते ही देखते देश के बड़े हिस्से में फैल जाती है। इस प्रकार की अफवाहों के प्रसार के परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं। गौरी लंकेश ने अपनी शहादत से पहले जो दो आिखरी ट्वीट किए उन्हें पढक़र भी इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि गौरी दरअसल कितनी सुलझी हुई पत्रकार थीं और विचारों के टकराव से दूर रहकर केवल अपनी बात कहने पर ही विश्वास करती थीं। गौरी ने अपने आिखरी ट्वीट में लिखा था कि-‘हम लोग फर्जी पोस्ट शेयर करने की गलती करते हैं। आईए एक-दूसरे को चेताएं और एक-दूसरे को बेनकाब करने की कोशिश न करें। इसके अगले व अंतिम ट्वीट में गौरी ने लिखा कि- ‘मुझे ऐसा क्यों लगता है कि हम में से कुछ लोग अपने-आप से ही लड़ाई लड़ रहे हैं। हम अपने सबसे बड़े दुश्मन को जानते हैं। कृपया क्या हम सब इसपर ध्यान लगा सकते हैं’। अफसोस कि ऐसी सुलहपसंद महिला पत्रकार की अमनपसंद बातों को दक्षिणपंथी ताकतें सहन नहीं कर सकीं।

एक ओर देश के अमनपसंद लोग जहां गौरी लंकेश की अचानक की गई कायराना हत्या से गहरे सदमे में हंै तथा इन घटनाओं को देश के लोकतंत्र व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार के रूप में देख रहे हैं वहीं दुर्भाग्यवश कुछ शक्तियां ऐसी भी हैं जो सोशल मीडिया पर गौरी की हत्या को सही ठहरा रही हैं। गोया इनका संदेश साफ है कि

 झूठ   सलीके  से   बोलोगे  तो   सच्चे    कहलाओगे।

सच को सच कह दोगे अगर तो फांसी पर चढ़ जाओगे।।

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सम्पादक

डॉ. लीना