Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

सामाजिक न्याय है हमारा अधिकार

“21वीं सदी में सामाजिक न्याय का घोषण पत्र” सेमिनार उठे वंचितों के मुद्दे, सामाजिक न्याय की हुई वकालत

संजय कुमार/ पटना । भारतीय मीडिया पर दलित मुद्दों की अनदेखी का आरोप तो लगता ही रहा है। अब इसमें पिछड़े भी शामिल हो गये  हैं। सात फरवरी को बिहार की राजधानी पटना में सामाजिक संस्था “बागडोर” की ओर “21वीं सदी में सामाजिक न्याय का घोषण पत्र” विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें देश के नामी-गिरामी पत्रकार शामिल हुए। आयोजन की खबर को कुछ अखबारों ने तरजीह दी तो कुछ ने नजरअंदाज किया। इसमें राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र भी शामिल रहे। बहरहाल, सेमिनार में वंचितों के मुद्दे खुल कर सामने आये और सामाजिक न्याय की लड़ाई की वकालत हुई।

सेमिनार को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि स्टेट की लड़ाई में जब तक सामाजिक न्याय की ताकतों का कब्जा नहीं होगा तब तक कारपोरेट ही इसे संचालित करेंगे। क्योंकि स्टेट पावर पर डेमोक्रेशी का राज नहीं है। उन्होंने कहा कि प्राइमरी और माध्यमिक कक्षाओं में समान स्कूल प्रणाली इक्कीसवीं सदी के समाज की सबसे बड़ी जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऊंच शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण बंद होना चाहिए। उन्होंने देश में समान शिक्षा प्रणाली की जरूरत पर बल किया। 

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि सामाजिक न्याय के सिद्धांत को राष्ट्र निर्माण के सिद्धांत से जोड़ने की जरूरत है। इसके पीछे तर्क देते हुये उन्होंने कहा कि  जब आप वंचित जातियों के हितों की बात करेंगे तब आपके विरोधी आपको जातिवादी ठहराकर राष्ट्र की बात करने लगेंगे। श्री मंडल ने कहा कि जो लोग शासन और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बहुजनों की सामाजिक हिस्सेदारी और आरक्षण का विरोध कर रहे हैं वह राष्ट्र विरोधी हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञान की सत्ता डेढ़ से दो प्रतिशत लोगों के हाथों में ही है। इस कारण हम एक अप्रतियोगी माहौल में लोग जी रहे हैं।

वहीं, बाबू जगजीवन राम संसदीय शोध संस्थान,पटना के निदेशक और पत्रकार  श्रीकांत ने कहा कि देश में सरकारी नौकरियों के समानांतर ठेका व्यवस्था चल रहा है साथ ही धन और ज्ञान का फासला बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसका खामियाज़ा बहुजन समाज उठाना को उठाना पड़ रहा है। सेमिनार को संबोधित करते हुए समाजशास्त्री प्रोफेसर कांचा इलैया ने कहा कि ब्रह्मणवाद ने इस देश को हमेशा यथा स्थितिवाद में फंसाये रखा। उन्होंने लोगों से पढ़ने लिखने और लड़ने की अपील की। 

 साहित्यकार डाक्टर पे्रम कुमार मणि ने कहा कि इक्कीसवीं सदी ज्ञान केन्द्रित सदी है, बहुजन समाज को आगे बढ़ाने के लिये ज्ञान के क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनानी होगी। सेमिनार को  महेन्द्र सुमन, डाक्टर शांति यादव, मनीष रंजन, मृगांग शेखर, भरत मंडल समेत कई अन्य संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ इतिहासकार डाक्टर ओपी जायसवाल ने की जबकि धन्यवाद ज्ञापन राकेश यादव ने। 

इस दौरान रोहित वेमुला की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया। साथ ही बागडोर की त्रैमासिक पत्रिका  ‘सबाॅल्टर्न’ के प्रवेशांक का संयुक्त रूप से विमोचन किया गया। 

21वीं सदी में सामाजिक न्याय का घोषण पत्र” विषय पर सेमिनार का भले ही मीडिया कवरेज़ भरपूर न मिला हो लेकिन कार्यक्रम के दौरान सभागार में मौजूद श्रोताओं की उपस्थिती जबरदस्त थी।

-----

 

 

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना