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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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सज़ा के पात्र हैं वेद प्रताप वैदिक

बी.पी. गौतम / भारत के सब से बड़े दुश्मनों में से एक हाफ़िज़ सईद से मिलने वाले पत्रकार वेद प्रताप वैदिक कई तरह की दलीलें दे रहे हैं, जो सब निरर्थक ही महसूस हो रही हैं। उनका कहना है कि वह साक्षात्कार लेने के उद्देश्य से हाफ़िज़ सईद से मिले, जबकि सोशल मीडिया पर जारी होने वाली विवादित तस्वीर से पहले उन्होंने हाफ़िज़ सईद का कोई साक्षात्कार नहीं लिखा और न ही उन्होंने मुलाक़ात को लेकर कहीं कोई चर्चा की, जिससे स्पष्ट है कि उनकी मुलाक़ात को एक पत्रकार की मुलाक़ात नहीं माना जा सकता।

वेद प्रताप वैदिक बतौर पत्रकार मिले होते और मुलाक़ात के बाद मुलाक़ात पर उन्होंने कुछ भी लिखा होता, तो विवाद की जगह वह प्रशंसा के पात्र होते, लेकिन तस्वीर पर बवाल शुरू होने के बाद भी वह स्पष्ट नहीं बता पा रहे कि हाफ़िज़ सईद से मुलाक़ात करने का उनका उद्देश्य क्या था? सरकार की ओर से राज्यसभा और लोकसभा में स्पष्ट कर दिया गया है कि वेद प्रताप वैदिक की  हाफ़िज़ सईद से हुई मुलाक़ात में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। अरुण जेटली ने तो मुलाक़ात को लेकर “दुस्साहस” शब्द का प्रयोग किया है, इसलिए और भी कई सवाल उत्पन्न हो गये हैं। सब से बड़ा सवाल फिलहाल यही है कि वह हाफ़िज़ सईद से मिले ही क्यूँ? देश हित में मिलने गये, तो ‘स्वयं-भू राजदूत’ क्यूँ बन गये? उन्होंने इस संबंध में सरकार के जिम्मेदार लोगों से चर्चा कर अनुमति क्यूँ नहीं ली?

वेद प्रताप वैदिक पहले दिन ही यह मान लेते कि उन्हें कुख्याति और ख्याति में अंतर समझ नहीं आता, इसलिए किसी भी तरह चर्चित व्यक्ति से मिलना उनके स्वभाव का हिस्सा है। उनके यह कहने भर से समूचा विवाद थम जाता। हालांकि अब अधिकांश लोग उनके चरित्र को जान गये हैं, फिर भी वह ऐसा मानने को अभी भी तैयार नहीं हैं। भले ही नासमझी हो, उनसे अब वैधानिक तौर पर पूछताछ होनी ही चाहिए। उनके विरुद्ध संबंधित धाराओं के अंतर्गत कार्रवाई होनी ही चाहिए, क्योंकि वेद प्रताप वैदिक की प्रवृत्ति को दुस्साहसिक मान कर यूं ही भूल जाने का अर्थ भविष्य के लिए और बड़ी मुसीबत को दावत देने जैसा ही होगा। आने वाले दिनों में कोई भी हाफ़िज़ सईद और दाऊद इब्राहिम जैसे आतंकियों से मिल आयेगा और खुलासा होने पर कह देगा कि वह तो यूं ही मिलने गया था या देश हित में गया था या किसी समाचार पत्र/एजेंसी आदि से संबंद्ध होने का पत्र दिखाते हुये कहेगा कि वह पत्रकार है और पत्रकार की हैसियत से मिला था।

पत्रकार को कोई विशेष अधिकार नहीं दिये गये हैं। जनसेवक होने के नाते पत्रकार के लिए एक आचार संहिता भी है, जिसका उसे आम आदमी की तुलना में अतिरिक्त पालन करना होता है। हालांकि पत्रकार को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता, पर एक पत्रकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि व्यक्ति के अपराधी और राज्य के अपराधी में विशाल अंतर होता है। कटरी में जाकर डाकुओं का साक्षात्कार लेने जैसी घटना नहीं है यह। हाफ़िज़ सईद अलगाववादी नहीं है। वह दुर्दांत अपराधी है। और अपराधी भी किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि राष्ट्र का अपराधी है। मुंबई स्थित छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन, दक्षिण मुंबई पुलीस मुख्यालय, लियोपोल्ड कैफ़े, कोलाबा, ताजमहल पैलेस एंड टॉवर होटल, ऑबेराय ट्रिडेन्ट होटल, मज़गाँव डॉक, नरीमन हाउस, विले पार्ले उपनगर, उत्तर मुंबई, गिरगाँव चौपाटी और ताड़देव में 26/11 को एक साथ हमला हुआ था। हथगोले फेंके जा रहे थे, गोलीबारी हो रही थी, लोग बंधक थे, चारों ओर अफवाहें फैली हुई थीं, उस दिन समूचा हिंदुस्तान दहशत में था और सरकार के विशेषज्ञ भी सकते में थे कि यह सब अचानक क्या हुआ और इस सबसे कैसे निपटा जाये, उस डर और उस दर्द का कोई बदला नहीं हो सकता। 26/11 हमले के मास्टर माइंड साबित हो चुके हाफ़िज़ सईद से मुलाक़ात करने वाले वेद प्रताप वैदिक स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे होंगे। राज्य सभा और लोकसभा में उनके कुकृत्य पर हंगामा हो रहा है, इस पर भी उन्हें लाज आने की जगह महानता की ही अनुभूति हो रही होगी, क्योंकि शायद, वे यह भूल गये हैं कि इस हमले में आतंक विरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, मुठभेड़ विशेषज्ञ उप निरीक्षक विजय सालस्कर, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे, राष्ट्रीय सुरक्षा बल के मेजर कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन, निरीक्षक सुशांत शिंदे, सहायक उप निरीक्षक नाना साहब भोंसले, सहायक उप निरीक्षक तुकाराम ओंबले, उप निरीक्षक प्रकाश मोरे, उप निरीक्षक दुदगुड़े, कांस्टेबल विजय खांडेकर, जयवंत पाटिल, योगेश पाटिल, अंबादोस पवार तथा एम.सी. चौधरी जैसे जाबांजों के साथ बच्चे, बुजुर्ग, जवान और महिलाओं सहित 137 लोगों को भारत खो चुका है, उनके परिवार ता-उम्र इस दर्द को झेलेंगे, उनके आश्रितों का जीवन बर्बाद हो चुका है। उनकी पत्नी, उनके बच्चे, उनके माता-पिता आज भी बेहाल हैं, ऐसी हृदय विदारक घटना को अंजाम दिलाने वाले हाफ़िज़ सईद से यूं ही मुलाक़ात करने वाला राष्ट्र द्रोही भले ही न हो, पर राष्ट्र भक्त भी नहीं हो सकता।

देश-विदेश के चर्चित लोगों से संबंध बनाने में माहिर वेद प्रताप वैदिक की निष्ठा समयानुसर व्यक्ति और दलों के प्रति बदलती रही है। वह राजनैतिक-अराजनैतिक, धार्मिक-अधार्मिक, सामाजिक और असामाजिक क्षेत्रों के शीर्ष पर बैठे लोगों के बगल में खड़े दिखते रहे हैं, ऐसे में यह मान लिया जाये कि उसी प्रकृति के अंतर्गत वेद प्रताप वैदिक खुंखार आतंकी हाफ़िज़ सईद से भी मिले होंगे, तो भी उन्हें क्षमा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी प्रकृति के चलते राष्ट्र की गरिमा के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता। वेद प्रताप वैदिक की नासमझी से भारत की छवि को आघात पहुंचा है, क्योंकि भारत आतंकवादी हाफ़िज़ सईद और दाउद इब्राहिम को लेकर अमेरिका सहित विश्व समुदाय के माध्यम से पाकिस्तान पर आतंकियों को सौंपने का दबाव बना रहा है, लेकिन वेद प्रताप वैदिक की मुलाक़ात से विश्व भर में यही संदेश गया है कि भारत आतंकियों से बात कर रहा है, जिससे विश्व समुदाय में भारत की स्थिति कमजोर हुई है। पाकिस्तान पर दबाव कम हो गया है। हाफ़िज़ सईद सहित अन्य सभी मोस्ट वांटेड आतंकी आज बेहद खुश होंगे। भारत की विश्व समुदाय में स्थिति खराब कर आतंकियों को लाभ पहुंचाने वाले वेद प्रताप वैदिक के विरुद्ध कार्रवाई होनी ही चाहिए।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)
बी.पी. गौतम , स्वतंत्र पत्रकार
8979019871

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सम्पादक

डॉ. लीना