संकट बस तब तक है, जबतक मीडिया संकट बनाये रखता है
पलाश विश्वास/ हम न ब्राजील है और न हम भारत हैं, हम तो खुले बाजार में मीडिया के गुलाम हैं! हमारे कप्तान कूल महेंद्र सिंह धोनी लंदन में चैंपियन कप जीतकर विश्वेविजेता और सर्वकालीन श्रेष्ठ भारतीय कप्तान बन गये। रातोंरात आईपीएल मिक्सिंग, फिक्सिंग और सेक्सिंग का पाप धुल गया। रोज रोज जिस मीडिया के पर्दाफाश और गर्मागर्म सुर्खियों से आम जनता का गुस्सा उबाल खा रहा था, वहीं मीडिया धोनी की टीम को आसमान पर चढ़ा रही है। हमारा सारा गुस्सा काफूर हो गया। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के वर्षाबाधित फाइनल में सिर्फ 129 रन बनाने के बाद भारतीय कप्तान महेंद्रसिंह धोनी ने अपने खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें विश्व चैंपियन की तरह खेलकर कम स्कोर पर भी मैच जीतना है।
यह ठीक वैसा है कि जैसे राष्ट्रशक्ति की दमनकारी मशीनरी क रुप में देशभर में नस्ली भेदभाव के शिकार प्रकृति से जुड़ी मनुष्यता पर बर्बर अत्याचार करने वाली भारतीय सेना को केदार बदरी में फंसे श्रद्धालुओं को निकालने की युद्धस्तरीय तत्परता से हमारी राष्ट्रीयता की भावना उमड़ने घुमड़ने लगी है और हिमालय के संकट को समझने की कोशिश किये बिना मीडिया की सूचनाओं के मुताबिक राजनीतिक समीकरण में उलझने लगे हैं हम। नरेंद्र मोदी वहा केदारनाथ मंदिर बनवाने की इजाजत मांग रहे हैं जबकि बाढ़ में बह गये साठ गांवों के लोगों की खबर लेने वाला कोई नहीं।
सैन्य दमन अगर दंडकारण्य में बेदखली का माहौल बनाता है तो प्राकृतिक आपदा पहाड़ों में कारपोरेट कब्जा मजबूत करती है। केदार नाथ मंदिर के अलौकिक तरीके से बच जाने की सर्वत्र चर्चा हो रही है, लेकिन विपदजनक नदी किनारे नदी पथ को बाधित करने वाले असुरक्षित अवैध बहुमजिली कंक्रीट के जंगल पर हम खामोश है। हम देवभूमि के तमगे के साथ हिमालय की चर्चा उसी तरह करते हैं जैसे कि लातिन अमेरिका की चर्चा फुटबाल के मद्देनजर ही होती है। विपर्यस्त रक्त मांस की मनुष्यता हमारे ध्यान मे ही नहीं आती। हम टिहरी के डूब में गायब पुरानी टिहरी, उत्तरकाशी घाटी और भिलंगना घाटी, सैकड़ों गावों की त्रासदी पर विचार कर ही नहीं सकते। क्योंकि मीडिया हमें अपने सनसनीखेज मनोरंजक कवरेज से उबरने का मौका ही नहीं देता।
संकट बस तब तक है, जबतक मीडिया संकट बनाये रखता है। घोटाल तब तक घोटाला है जबतक मीडिया उसे घोटाला बनाये रखता है। सरकारें तो घोटालों को दफा रफा करने में वक्त भी लगाती है! मीडिया के लिए नई खबर पर्याप्त बहाना है। अब सवाल ये है कि सरकार और मीडिया की प्राथमिकता से वो आदमी कहां गायब है, जो इन इलाकों का मूल निवासी थी...वो आदमी जिसने अपने नुकसान के बीच तीर्थ यात्रियों की भी मदद की...वो 4000 खच्चरवाले कहां गए...वो जो छोटी दुकानें चला कर परिवार पाल रहे थे...वो जो आस पास के गांवों में रहते थे...वो जो लोगों का सामान पीठ पर लाद कर पहाड़ चढ़ जाते थे..वैसे ऋषिकेश और हरिद्वार में भी बहुत से गांव पानी की चपेट में हैं...उनके बारे में ख़बर कौन ले रहा है...सोचिएगा कि आखिर सरकार और मीडिया की सूची में से उत्तराखंड..खासकर गढ़वाल के ग्रामीण और स्थानीय लोग क्यों गायब हैं...ज़रा जाकर पूछिए, वो विस्थापन मांग रहे हैं...वो बांध का विरोध कर रहे हैं...वो फैक्ट्रियों का विरोध कर रहे हैं...जो तीर्थयात्री नहीं करते...इसलिए उनका सामने आना अच्छा नहीं है...उनकी लाशें बह कर बांध में मिल जाएंगी...जंगलों-मलबों में सड़ जाएंगी...उत्तराखंड में आपदा के वक्त सिर्फ तीर्थयात्री थे...वहां स्थानीय लोग रहते ही कहां थे...
हम राष्ट्रमंडल खेल को भूल गये। अब ओलंपिक के आयोजन का सपना देख रहे हैं। इसके विपरीत ब्राजील में फुटबॉल वर्ल्ड कप के खिलाफ करीब 10 लाख लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतरे, वह देश में फैले भ्रष्टाचार और खराब सार्वजिनक यातायात से नाराज हैं। 80 शहरों में लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सबसे बड़ा प्रदर्शन रियो दे जनेरो में गुरुवार को हुआ। जहां तीन लाख लोग विरोध प्रदर्शन के लिए आए। एक ही दिन पहले शहर के मेयर ने लोगों की मांग मानते हुए सार्वजनिक यातायात का किराया कम करने की घोषणा की। ब्राजील की राजधानी ब्राजिलिया में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। यहां करीब 20 हजार लोगों ने कांग्रेस के सामने विरोध प्रदर्शन किया। भीड़ को संसद की इमारत में चढ़ने से रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड लगाए. प्रदर्शनकारी विदेश मंत्रालय की इमारत में घुस गए थे।
देखते देखते हम आईपीएल घोटाला भूल गये। घोटाला अधिराज श्रीनिवासन अब आईसीसी में भी भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे और पुनर्वास हो जायेगा ललित मोदी का भी। जैसकि शशि थरुर का हुआ। ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रुसेफ ने जापान दौरा रद्द कर दिया है। वह 26 से 28 जून को जापान यात्रा पर जाने वाली थीं। सप्ताह की शुरुआत में उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शनकारियों का संदेश समाज और नेताओं तक और साथ ही सरकार के सभी धड़ों तक पहुंच गया है। लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
हमारे रगों में खून नहीं दौड़ता। दौड़ता है पानी। जो थोड़ा सा तापमान पाकर उबाल खाने लगता है फिर जलवायु परिवर्तन के साथ ठंडा पड़ जाता है।