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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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हर ओर यहां खबरों की दुकानें!

सिवनी में औसतन देश के सबसे ज्यादा पत्रकार, ना जाने कितने पत्रकार संगठन भी अस्तित्व में !

लिमटी खरे /  जो भी अधिकारी सिवनी में तैनात होता है एक माह बाद ही वह यहां के ‘खबरों के दुकानदारों‘ से बुरी तरह परेशान हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि औसतन सिवनी में देश के सबसे ज्यादा पत्रकार हैं। इनमें वास्तविक कितने हैं और फर्जी कितने हैं इस बारे में कहना मुश्किल ही है। मजाक में लोग कहने लगे हैं कि यार एक पत्थर उठाकर उछालो जिसे लगे उससे पूछना क्या करते हो, तपाक से वह बोले उठेगा -‘क्या बात करते हो पत्रकार हूं भई।‘ सिवनी में पत्रकारिता को लोगों ने लाभ का ‘धंधा‘ बना लिया है।

ना जाने कितने पत्रकार संगठन सिवनी में अस्तित्व में हैं। आज ये संगठन पत्रकारों के हित संवंधर्न की दिशा में कितने सजग हैं यह बात वे स्वयं ही जानते होंगे। फरवरी में कर्फ्यू लगा, अखबार नहीं बटे, मीडिया घरों में कैद रहा, पर पत्रकार संगठन आश्चर्यजनक तौर पर मौन ही साधे रहे, क्या इस बात का जवाब है उनके पास कि प्रशासन की इस बेजा हरकत पर उन्होंने मुंह क्यों सिले रखा? चाय पान ठेले वाले, आरटीओ के दलाल, सब्जी विक्रेता, परचून की दुकान वाले, होटल किराना वाले, टेक्सी संचालक सभी आज इन संगठनों के सदस्य बताए जाते हैं। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी स्थान से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक अखबार की पच्चीस कापी (औसतन पांच रूपए प्रति कापी) लाकर पत्रकार बनता है तो साल भर में उसे कम से कम साढ़े छः हजार रूपए खर्च करना होगा, पर इस तरह के संगठनों की सदस्यता महज सौ से पांच सौ रूपए प्रतिवर्ष में मिल जाती है। साथ ही साथ मिल जाता है प्रेस लिखा एक आईडी कार्ड, जिसे चमका कर वह ‘गैर पत्रकार‘ वास्तविक पत्रकारों की छवि पर बट्टा लगाता दिखता है। इतना ही नहीं, वाहनों में प्रेस लिखने का फैशन दिन ब दिन बढ़ गया है। आज जो अपना नाम भी ठीक से नहीं खिल सकते वे भी पत्रकार का तमगा लगाए घूम रहे हैं। देखा जाए तो यह पत्रकारिता धर्म के एकदम खिलाफ है।

बीते दिनों श्रमजीवी पत्रकार संघ की एक बैठक में हमने साफ तौर पर कहा था कि पत्रकारों के लिए पत्रकारिता मां के समान है और कोई भी पत्रकार अपनी मां को कोठे पर कतई नहीं बिठाएगा, अगर पत्रकारिता को बदनाम किया जा रहा है तो यह काम वे ही कर सकते हैं जो . . .। साथ ही साथ पीत पत्रकारिता या पत्रकारिता को धंध बनाने वालों को मशविरा दिया था कि बेहतर होगा कि वे लोग पत्रकारिता छोड़कर परचून की दुकान खोल लें, पर पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को बदनाम ना करें। एक पत्रकार मित्र ने हमसे कहा कि कहीं आपकी ईमानदारी के चक्कर में हमारा नुकसान ना हो जाए, कोई पत्रकार यह कहता पाया जा रहा है कि वे तो हमारे ‘आदमियों‘ को चुन चुन कर नंगा कर रहे हैं। हमारा कहना महज इतना है कि कोई किसी का आदमी नहीं होता। क्या किसी ठेकेदार, नेता या व्यक्ति पर कोई पत्रकार सील लगा सकता है कि वह उसका आदमी है? जाहिर है नहीं। जब काले काम करने वाले सफेद पोशों को नंगा करने की जवाबदेही से बचकर उन्हें महिमा मण्डित करने का काम कथित मीडिया मुगल करने लगें तो ईमानदार पत्रकार क्या करें? आज आवश्यक्ता इस बात की है कि पत्रकारिता पेशे को लाभ का धंधा बनाने के बजाए अपनी मां का दर्जा दिया जाए, ताकि पत्रकारिता के प्रतिमान स्थापित किए जा सकें।

‘हमें क्या करना है?‘, ‘विज्ञापन पार्टी है बब्बा!‘, ‘अरे ऐसा मत लिखो, . . . नाराज हो जाएगा, दाल रोटी बंद हो जाएगी‘, ‘मकान बनाना है, मदद कौन करेगा‘, शादी करना है खर्चा बहुत है‘, ‘उपर से आदेश है, इनके खिलाफ नही छापना है‘, ‘झाबुआ पावर तो अपनी दुकान है‘ जिसको विज्ञापन चाहिए हमसे संपर्क करे, जैसे जुमलों से पत्रकारिता रूपी माता का आंचल छलनी ही होता है। गत दिवस मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के शीर्ष अधिकारी मेंहदीरत्ता ने कहा कि उन्होंने सिवनी के पत्रकारों के विज्ञापन के देयक आना पाई से बिचौलियों के हाथों भेज दिए हैं। अगर किसी को नहीं मिला हो तो प्रकाशन की तारीख, संस्थान का नाम और राशि लिखकर उन्हें 9977802499 पर एसएमएस किया जा सकता है, ताकि उन्हें यह पता लग सके कि पूरा भुगतान करने के बाद भी कितनी देनदारी अभी झाबुआ पावर की बाकी है।

लोग अक्सर कहा करते हैं कि सिवनी से प्रकाशित होने वाले अखबारों का कुछ करो भई। हमारा कहना है कि हम क्या कर सकते हैं, समाचार पत्र का शीर्षक लेने के लिए अनुविभागीय दण्डाधिकारी के माध्यम से भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक तक जाना होता है। भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक द्वारा शीर्षक आवंटन कर जिला दण्डाधिकारी को सूचित किया जाता है। जिला दण्डाधिकारी के अधीन जनसंपर्क विभाग का एक कार्यालय कार्यरत होता है। जनसंपर्क विभाग का काम ही जिला प्रशासन और पत्रकारों के बीच समन्वय बनाने के साथ ही साथ शासन प्रशासन की जनकल्याणकारी नीतियों को जनता तक मीडिया के माध्यम से पहुंचाने का होता है।

इन परिस्थितियों में प्रश्न यही पैदा होता है कि आखिर वो कौन है जो सिवनी में मीडिया की हालत को सुधारेगा। जाहिर है जिला दण्डाधिकारी ही जनसंपर्क अधिकारी के माध्यम से मीडिया की स्थिति को सुधारने का काम करेंगे। वस्तुतः जनसंपर्क विभाग भी अपनी जवाबदेही से पीछे हटता आया है। अगर कोई समाचार पत्र का प्रकाशन नियमित ना होकर कभी कभार हो रहा है तो उस पर जिला जनसंपर्क अधिकारी को चाहिए कि इसकी जानकारी लिखित रूप से भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय को दें, और उस पर कार्यवाही सुनिश्चित करवाए।

समाचार पत्रों की आवधिकता दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, छःमाही या वार्षिक होती है। पर सिवनी में एक और आवधिकता दिखाई पड़ती है और वह है ‘एक्छिक‘ अर्थात जब मन चाहा कर दिया प्रकाशित। पंद्रह अगस्त, 26 जनवरी, होली, दीपावली तो मानो एक पर्व होता है अखबारों के लिए। सरकारी नुमाईंदो, विशेषकर वन विभाग के रेंजर्स, पीडब्लूडी, आरईएस, सिंचाई, पीएचई आदि विभागों के सब इंजीनियर या एसडीओ के कार्यालयों में सैकड़ों की तादाद में विज्ञापन के बिल पहुंच जाते हैं। अधिकारी हैरान परेशान हो उठते हैं, वे भी आखिर करें तो क्या?

आज सिवनी में आरएनआई में ‘‘डीब्लाक‘‘ (समाचार शीर्षक के अस्थाई सत्यापन के दो वर्ष के अंदर अगर स्थाई नहीं किया जाता है तो वह स्वतः ही निरस्त हो जाता है) हो चुके शीर्षकों के नाम पर समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं, जिनका अस्थाई पंजीयन समाप्त हो गया है वे भी सीना तानकर अखबार का प्रकाशन कर रहे हैं। नगर पालिका प्रशासन सहित सरकारी विभाग अखबारों को मनमर्नी के रेट पर बिलों का भुगतान कर रहे हैं।

जिन समाचार पत्रों का घोषणा पत्र सिवनी जिला दण्डाधिकारी के पास नहीं जमा है उन्हें भी ‘लोकल‘ की श्रेणी में रखा जा रहा है। आयुक्त जनसंपर्क मध्य प्रदेश या डीएव्हीपी दिल्ली के द्वारा दिए गए रेट्स को दरकिनार कर उससे दस से पचास गुना ज्यादा दरों पर हो रहा है भुगतान, ना आडिट विभाग आपत्ति ले रहा है और ना ही कोई और। कुल मिलाकर सिवनी जिले में लूट मची हुई है। दुख और चिंता का विषय तो यह है कि इस लूट में अब नेता अधकारी और पत्रकारों का ‘त्रिफला‘ बन चुका है।

इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी न जाने कितने समाचार चेनल्स की आईडी (माईक पर लगा चेनल का लोगो) दिखाई पड़ जाते हैं पत्रकार वार्ता में। एक बार सिवनी से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र (हिन्द गजट नहीं) ने लिखा था आखिर कहां दिखाई जाती हैं इलेक्ट्रानिक मीडिया द्वारा इतनी सारी ली गई बाईट्स)।

सूचना के अधिकार एक्टिविस्ट अधिवक्ता दादू निखलेंद्र नाथ सिंह ने नगर पालिका से विज्ञापन की सूची निकलवाई जिसमें पता नहीं किन किन अखबारों के नाम हैं जिनका नाम कभी सुना ही नहीं गया, कुछ तो समाचार पत्र वितरण एजेंसी को भी विज्ञापन जारी किया जाना दर्शाया गया है। अखबारों में सब प्रकाशित हुआ, विपक्ष में बैठी कांग्रेस और उसके उपाध्यक्ष राजिक अकील भी मुंह सिले हुए हैं, आखिर क्या कारण है? आखिर क्या वजह है कि शिवराज सिंह चौहान को पानी पी पी कर कोसने वाले कांग्रेस के प्रवक्ता ओम प्रकाश तिवारी, जेपीएस तिवारी और रामदास ठाकुर सदा ही नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी, श्रीमति नीता पटेरिया, नरेश दिवाकर, डॉ.ढाल सिंह बिसेन, कमल मस्कोले, श्रीमति शशि ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ अपनी कलम रेत में गड़ा देते हैं। जाहिर है ये कहीं ना कहीं भाजपा के इन नेताओं से उपकृत ही हैं, वरना और क्या वजह हो सकती है इनकी खामोशी की!

बहरहाल, किसके खिलाफ बोलना किसके खिलाफ नहीं, यह पार्टी की अंदरूनी नीति का मसला है, इससे हमें ज्यादा लेना देना नहीं है, पर जनता को भरमाईए तो मत। सिवनी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। शिवराज सिंह चौहान को कोसने के लिए प्रदेश में मुकेश नायक हैं और भाजपा की ओर से देश में मनमोहन सिंह को कोसने के लिए प्रकाश जावड़ेकर हैं, उनकी रोजी रोटी मच छीनिए सिवनी के प्रवक्ता महोदयों। आपके कंधे पर सिवनी की जवाबदेही सौंपी गई है आप सिवनी की ही चिंता करें तो बेहतर होगा।

जिला कलेक्टर भरत यादव ने अप्रेल माह में जिला जनसंपर्क अधिकारी को ताकीद किया था कि वास्तविक पत्रकारों को चिन्हित किया जाए। उसके बाद उन्होंने दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों से आरएनआई पंजीयन और घोषणा पत्र की कापी चाही है। यह एक स्वागत योग्य कदम है, किन्तु इसमें पाक्षिक और मासिक समाचार पत्रों को क्यों छोड़ दिया गया है। साथ ही साथ सिवनी से बाहर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र और इलेक्ट्रानिक चेनल्स के संवदादाताओं से भी समय सीमा में उनके संपादकों से उनकी नियुक्ति का प्रमाणपत्र बुलवाया जाए। हो यह रहा है कि सालों पहले एक नियुक्ति पत्र जमा करवाने वाले व्यक्ति द्वारा सालों साल उसके ही दम पर अपनी धाक जमाई जाती है। चिंताजनक पहलू तो यह भी सामने आ रहा है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग अब मीडिया की आड़ लेने लगे हैं।

वस्तुतः यह जवाबदेही जिला प्रशासन और जिला जनसंपर्क अधिकारी की है कि वह मीडिया में बढ़ रहे फर्जीवाड़े को नियंत्रित करे। जिला जनसंपर्क अधिकारी को चाहिए कि अगर उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है (किसी भी आवधिकता वाले समाचार पत्र के नियमित प्रकाशन का प्रमाण पत्र आरएनआई किसे मानती है, या अखबार से संबंधित अन्य जानकारियां जिससे कि वह समाचार पत्र नियमित माना जाए) तो वे बाकायदा आरएनआई को पत्र लिखकर इसकी जानकारी मांग सकते हैं। डीएम और पीआरओ का एक सख्त कदम सिवनी में पत्रकारिता के क्षेत्र में बिखरी गंदगी को धोने में वाकई मील का पत्थर ही साबित होगा, आशा तो है कि संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे।

साथ ही साथ चुनाव के मौसम में कम से कम पेड न्यूज के बारे में सविस्तार उदहारणों के साथ अगर गाईड लाईन मीडिया तक लिखित रूप में पहुंचाई जाती तो यह मीडिया के लिए सुलभ हो जाता कि वह अपने आप को पेड न्यूज की लक्ष्मण रेखा से दूर ही रखती, वस्तुतः जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी गाईड लाईन में स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है।

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सम्पादक

डॉ. लीना