अंबेडकर जयंती, 14 अप्रैल पर विशेष, बाबा साहेब की पत्रकारिता
लोकेन्द्र सिंह/ भारतीय संविधान के शिल्पकार डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर ने समाज में व्याप्त जातिभेद, ऊंच-नीच और छुआछ…
अंबेडकर जयंती, 14 अप्रैल पर विशेष, बाबा साहेब की पत्रकारिता
लोकेन्द्र सिंह/ भारतीय संविधान के शिल्पकार डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर ने समाज में व्याप्त जातिभेद, ऊंच-नीच और छुआछ…
कई आग लगाऊ चैनल्स का समाज को विभाजित करने का एजेंडा इस महामारी के दौर में भी बेशर्मी के साथ जारी
तनवीर जाफ़री/ वैसे तो समूची प…
कृष्ण कान्त/ फर्जी खबरों का दुश्चक्र भारत को कोरोना से बड़ा नुकसान पहुंचाने जा रहा है. समाज का अपने ही लोगों के प्रति अविश्वास से भर जाना किसी महामारी में नहीं होता. कोरोना के बहाने भारत के नफरत के कारोबारियों ने अपना कारोबार आपात स्तर पर तेज कर दिया है.…
सरकार आर्थिक मदद करे
आदित्य कुमार दूबे/ अभी देशव्यापी लाक-डाउन के दो ही दिन हुए हैं कि प्रिंट मीडिया पर कोविड-19 का कहर साफ नजर आने लगा है। अखबारों के पन्ने कम हुए हैं, उनका वितरण बाधित हुआ है और विज्ञापन नदारद हो गए हैं। जो अखबा…
(‘मूकनायक’ के 100 साल- 31 जनवरी, 2020 पर विशेष)
संजय कुमार/ डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर किसी परिचय के मोहताज नहीं है, संविधान निर्माता और दलितों के मसीहा के तौर विख्यात हैं। डॉ. अम्बेडकर के परिचय में एक सफल पत्रकार एवं संपादक शब्…
(‘मूकनायक’ के 100 साल- 31 जनवरी, 2020 पर विशेष)
संजय स्वदेश/ बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ने 31 जनवरी 1920 को मराठी पाक्षिक ‘मूकनायक’ का प्रकाशन प्रारंभ किया था. सौ साल पहले पत्रकारिता पर अंग्रेजी हुकूमत का दबाव था. दबाव से कई …
(‘मूकनायक’ के सौ साल- 31 जनवरी, 2020 पर विशेष)
डॉ. विद्या शंकर विभूति/ डॉ.भीमराव अंबेडकर प्रशिक्षित अर्थशास्त्री एवं बैरिस्टर थे, पत्रकारिता से उनका कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन काल और परिस्थितियों की वजह …
(‘मूकनायक’ के सौ साल- 31 जनवरी, 2020 पर विशेष)
मनोज कुमार/ प्रकाशन का नाम ‘मूकनायक’ था लेकिन आवाज इतनी बुलंद की आज गुजरते सौ वर्ष में भी ‘मूकनायक’ का डंका बज रहा है। ‘मूकनायक’ डॉ. भीमराव अम्बेडकर की पत्रकारिता के सौ साल का…
मनोज कुमार/ शब्द सत्ता की शताब्दी मनाते हुए हम हर्षित हैं लेकिन यह हर्ष क्षणिक है क्योंकि महात्मा गांधी जैसे कालजयी नायक के डेढ़ सौ वर्षों को हम चंद महीनों के उत्सव में बदल कर भूल जाते हैं, तब सत्ता को आहत करने वाली पत्रकारिता की जयकारा होती रहे, यह कल्पना से बाहर है। इन सबके बावजू…
लिमटी खरे/ कानून और व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने की आशंकाओं को देखकर धारा 144 को लागू करना लाजिमी है पर लंबे समय तक इस धारा का प्रयोग कैसे किया जा सकता है! देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इस बारे में ऐतराज जताते हुए कहा है कि सीआरपीसी की धारा 144 (निषेधाज्ञा) को लंबे समय या अनिश्चित क…
रिंकी राउत/ रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) ने 18 अप्रैल, 2019 को पत्रकारों के प्रति बढ़ती हिंसा को दर्शाते हुए वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 जारी किया। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 140वां स्थान पाया है। भारत की रैंक 2018 में 138वें स्थान से गिर…
जिस वक्त रिपोर्टिंग की ज़रूरत है, .... उस वक्त मीडिया अपने स्टुडियो में बंद है
रवीश कुमार/ “अगर मीडिया नहीं दिखाएगा तो हमें ही पूरे भारत को दिखाना होगा। इसे वायर…
एक सर्वे के अनुसार देश के आधे से ज्यादा दर्शक अब टीवी देखने से परहेज ही करते हैं
लिमटी खरे/ परिवर्तन प्रकृति का अटल सत्य है। कोई भी चीज स्थित नहीं है। हर च…
मनोज कुमार/ समाज में जब कभी सहिष्णुता की चर्चा चलेगी तो सहिष्णुता के मुद्दे पर मीडिया का मकबूल चेहरा ही नुमाया होगा. मीडिया का जन्म सहिष्णुता की गोद में हुआ और वह सहिष्णुता की घुट्टी पीकर पला-बढ़ा. शायद यही कारण है कि जब समाज के चार स्तंभों का जिक्र होता है तो मीडिया को एक स्तंभ मा…
डिजिटल माध्यमों से मिल रही हैं प्रिंट मीडिया को गंभीर चुनौतियां
प्रो. संजय द्विवेदी/ दुनिया के तमाम प्रगतिशील देशों से सूचनाएं मिल रही हैं कि प्रिंट मीडिया पर …
प्रो. संजय द्विवेदी/ ‘मोबाइल समय’ के दौर में जब हर व्यक्ति कम्युनिकेटर, कैमरामैन और फिल्ममेकर होने की संभावना से युक्त हो, तब असल खबरें गायब क्यों हैं? सोशल मीडिया के आगमन के बाद से मीडिया और संचार की दुनिया के बेहद लोकतांत्रिक हो जाने के ढोल पीटे गए और पीटे जा रहे है…
पेरियार रामास्वामी की जयंती (17 सितम्बर ) पर विशेष
संजय कुमार / दलितों की कोई नयी मांग नहीं है कि उनका अपना मीडिया हो। व्यवसायिकता और व्यापकता के साथ भारतीय मीडिया पर द्विज काबिज है और हाशिये पर हैं द…
आखिर यह कौन तय कर रहा है कि किसे सुर्खियों में लाना है ?
तारकेश कुमार ओझा / डयूटी के दौरान लोगों के प्रिय - अप्रिय सवालों से सामना तो अमूमन रोज ही होता है। लेकिन उस रोज आंदोलन पर बैठे ह…
आलोक श्रीवास्तव/ एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए किसी देश के संस्थानों की निष्पक्षता की आवश्यकता होती है -- एक स्वतंत्र प्रेस, एक स्वतंत्र न्यायपालिका, और एक पारदर्शी चुनाव आयोग जो उद्देश्यपूर्ण और तटस्थ हो।…
तनवीर जाफ़री/ माना जाता है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत वर्ष की बुनियाद चार मज़बूत स्तम्भों पर टिकी हुई है। यह चार स्तम्भ हैं विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया (प्रेस)। लोकतंत्र की सफलता के लिए इन चारों स्तंभों का मज़बूत होना बेहद ज़रूरी है । मज़बूती का अर्थ यही है क…
डॉ. लीना