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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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विदेशी मीडिया में भी छाया लेखकों का मुद्दा

संदर्भ- विरोधस्वरूप पुरस्कार वापसी का 

सोशल मीडिया में भी बहस

इस बीच 20 अक्टूबर को नई दिल्ली में साहित्यकारों का प्रतिरोध सम्मलेन आयोजित 

नयी दिल्ली। देश के इतिहास में कलमकारों के प्रतिरोध की घटना में अब तक विभिन्न राज्यों में पचास से अधिक साहित्यकार पुरस्कार लौटा चुके हैं और खबर है कि आने वाले दिनों में कुछ और लेखक पुरस्कार लौटा सकते हैं। क्योंकि कई लेखक साहित्य अकादमी की 23 अक्टूबर को होने वाली आपात बैठक के फैसलों का इंतजार कर रहे है जिसके बाद वे कोई कदम उठाएंगे।

इस बीच 20 अक्टूबर को नई दिल्ली में साहित्यकारों का प्रतिरोध सम्मलेन आयोजित किया गया है। छह संगठनों की ओर से आयोजित इस सम्मलेन में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक केदारनाथ सिंह और कुंवर नारायण के अलवा साहित्य अकादमी की फेलो एवं 90 वर्षीय प्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती तथा बुकर पुरस्कार से सम्मानित मशहूर लेखिका अरुंधति राय तथा अकेडमी पुरस्कार लौटाने की शुरुआत करने वाले लेखक उदय प्रकाश तथा मंगलेश डबराल को भी आमंत्रित करने कि खबर है।  

इस घटना की गूंज अब अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सुनाई देने लगी है और न्यूयार्क टाइम्स, गार्डियन तथा डान जैसे विदेशी अखबारों में भी इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट छपी है। अमेरिकी समाचार एजेंसी एपी ने भी विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस बीच फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर लेखकों के पुरस्कार लौटाने के पक्ष एवं विरोध में पिछले एक सप्ताह से जबर्दस्त बहस छिड़ी हुई है। लेखक दो धड़ो में विभाजित हो गए हैं।

इन लेखकों में 35 लेखक ऐसे हैं जिन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाएं हैं जबकि एक ने पद्मश्री लौटाया है शेष ने राज्यों की अकादमियों के पुरस्कार लौटाये हैं, वहीं पांच लेखक सहित्य अकादमी से त्यागपत्र दे चुके हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल के 166 लेखकों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर देश में बढ़ती सांप्रदायिकता और असहनशीलता का विरोध किया है जबकि कोंकणी लेखक संघ से जुड़े लेखकों ने अपना आंदोलन शुरू करने की बात कही है ।

इस बीच दिल्ली में लेखकों और पत्रकारों से जुड़े छह संगठनों ने 20 अक्टूबर को प्रतिरोध सम्मेलन करने का निर्णय लिया है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के दो कवियों केदारनाथ सिंह और कुंवरनारायण के अलावा अंग्रेजी के मशहूर लेखक विक्रम सेठ और अमिताभ घोष ने भी पुरस्कार लौटाने वालों का समर्थन किया है। विक्रम सेठ ने तो ये भी कहा है कि अगर अकादमी का रवैया इसी तरह बना रहा तो वे भी अपना पुरस्कार लौट देंगे।

हालांकि बंगला की विवादास्पद लेखिका तस्लिमा नसरीन ने पुरस्कार लैटाने वाले लेखकों की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि इस्लामिक कट्टराता के खिलाफ ये लेखक आवाज नहीं उठाते और इस मामले में उनका दोहरा नजरिया है। अंग्रेजी के मशहूर लेखक सलमान रश्दी ने जब इन लेखकों के समर्थन में बयान दिया तो उन्हें नफरत भरे दस हज़ार सन्देश मिल चुके हैं।

केंद्रीय मंत्रियों द्वारा भी लेखकों पर हमले जारी हैं। विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह भी इसमें शामिल हो गए हैं। इससे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली, संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद तथा कलराज मिश्र पहले ही लेखकों पर हमले कर चुके हैं। श्री जेटली ने इसे कागजी क्रांति बताया है जिसके विरोध में हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में रहने वाले काशी नाथ सिंह अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौट चुके हैं।

सोशल मीडिया पर भी लेखकों के पुरस्कार लौटाने को लेकर बहस छिड़ी है। कोई लेखकों के इस कदम का विरोध कर रहा है तो कोई समर्थन । इस तरह दो धड़े बन गए हैं।कुछ लेखक अभी मौन है और वे चुपचाप पूरे घटनाक्रम को देख रहे हैं। पटना, लखनऊ, इलाहाबाद और भोपाल के कई लेखक भी पुरस्कार लौटाने वालें लेखकों के समर्थन में आगे आये हैं । कर्नाटक , महाराष्ट्र और पंजाब तथा गोवा के लेखकों मे असंतोष और आक्रोश अधिक है।

कुछ लेखकों का कहना है कि दादरी की घटना के विरोध में उत्तर प्रदेश के लेखकों को पुरस्कार लौटाने चाहिए तो कुछ ने आरोप लगाया है कि बिहार के लेखकों ने न तो अकादमी पुरस्कार लौटाए और ना ही राज्य सरकार के पुरस्कार। इस तरह साहित्य जगत में अच्छा खास विवाद भी खड़ा हो गया है । हिंदी के चर्चित कवि विष्णु खरे का कहना है क़ि पुरस्कार लौटाने का कोई परिणाम नहीं निकलेगा जबकि कुछ लेखक इस लड़ाई को आगे ले जाने के पक्ष में हैं।

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सम्पादक

डॉ. लीना