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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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कामरेड वासुदेव पाण्डेय की पहली बरसी पर सेमिनार

कौशल किशोर / कामरेड वासुदेव पाण्डेय ने पिछले साल 6 जनवरी 2012 को हमारा साथ छोड़ा। उस वक्त उनकी उम्र अस्सी के पास थी। जो लोग भी प्रदेश के श्रमिक आंदोलन के इतिहास तथा बासुदेव पाण्डेय के व्यक्तित्व और आंदोलन में उनके योगदान से परिचित हैं, उनके लिए कामरेड पाण्डेय का निधन अत्यन्त दुखद और पीड़ा दायक रहा है। एक दौर था जब कानपुर के टेक्सटाइल, जूट, चमड़ा से लेकर प्रदेश की चीनी मिलों, कताई मिलों, बिजली, सीमेंट उद्दयोग, राज्य निगमों, राज्य कर्मचारियों, संगठित असंगठित क्षेत्रों में मजदूर संगठनों की अच्छी स्थिति थी। न सिर्फ मजदूरों के बीच वामपंथी विचारधारा का खासा प्रभाव था बल्कि एस एम बनर्जी, राम आसरे, हरीश तिवारी जैसे जुझारू व समर्पित श्रमिक नेताओं की टीम थी। बासुदेव पाण्डेय उसी टीम में शामिल थे।

बासुदेव पाण्डेय की यह विशेषता थी कि प्रदेश के छोटे से बड़े आंदेालनों में हर जगह वे मौजूद रहते थे। श्रमायुक्त कार्यालय या किसी मिल गेट पर धरना प्रदर्शन हो, विधानसभा के सामने रैलियाँ हो, बिजली मजदूरों के आंदोलन हो, स्कूटर्स इण्डिया व राज्यनिगमों के निजीकरण के विरुद्ध संघर्ष हो, बासुदेव पाण्डेय जुलूस में नारे लगाते, सभा को संबोधित करते, लाठी खाते या जेल जाते मिल जाते। नई आर्थिक नीति के खिलाफ प्रदेश में जो आंदोलन चला उसमें बासुदेव पाण्डेय ने केन्द्रक की भूमिका निभाई। वे वामपंथी विचारधारा तथा एटक जैसे वामपंथी ट्रेड यूनियन के नेता थे लेकिन उनके अन्दर कोई वैचारिक संकीर्णता नहीं थी। वे मजदूर आंदोलन की व्यापक एकता के पक्षधर थे। इसके लिए कांग्रेस के मजदूर संगठन इंटक तथा भाजपा की विचारधारा के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ से एकता बनाने में भी उन्हें हिचक नहीं थी।

बासुदेव पाण्डेय की स्कूली शिक्षा ज्यादा नहीं थी। उनकी पाठशाला श्रमिकों का संगठन व संघर्ष था। सामाजिक शिक्षा व जीवन ज्ञान उन्हें यहीं मिला। बासुदेव पाण्डेय के अन्दर बचपन से सामाजिक सवालों पर पहलकदमी लेने की प्रवृति थी। यही खूबी उन्हें मजदूर आंदोलन की ओर ले आई। इसी आंदोलन के दौरान मजदूरों की मुक्ति के सपने देखने उन्होंने शुरू किये। इसी प्रक्रिया में माक्र्सवाद और कम्युनिस्ट पार्टी तक पहुँचे। उनकी राजनीतिक यात्रा का आरम्भ बोल्”ोविक पार्टी से हुआ था। बाद में इस पार्टी का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विलय हो गया। इस विलय के साथ वे भी कम्युनिस्ट पार्टी में आ गये और सारी जिन्दगी वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे।

बासुदेव पाण्डेय 1956 में बिजली विभाग की सेवा में आये। बिजली विभाग से अपनी नौकरी की शुरुआत की थी। वे हाइड्रो इलेक्ट्रिक इंपलाइज यूनियन के निर्माणकर्ताओं में थे। उन दिनों बिजली कर्मचारियों के ख्याति प्राप्त नेता हरीश तिवारी थे। वे बिजली कर्मचारी संघ के अध्यक्ष थे। तिवारी जी के साथ मिलकर बासुदेव पाण्डेय ने बिजली कर्मचारियों को नये सिरे से संगठित किया। उसे प्रदेश स्तर पर विस्तार दिया। वे इस संघ के कार्यवाहक अध्यक्ष, अध्यक्ष, महामंत्री जैसे पदों पर कार्य किया।

बासुदेव पाण्डेय को बिजलीकर्मचारियों के आंदोलन में भाग लेने की वजह से 1963 में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। बाद में उनकी बहाली हुई लेकिन तब तक मजदूर आंदोलन में वे बहुत आगे निकल चुके थे। फिर से बिजली विभाग की सेवा करने की जगह मजदूर आंदोलन के लिए काम करना उन्होंने ज्यादा जरूरी समझा और अपना सारा जीवन संगठन व आंदोलन को समर्पित करते हुए पूरावक्ती कार्यकर्ता बन गये। ट्रेड यूनियन दफतर, बिजली कर्मचारीसंघ का कार्यालय व मजदूरों का घर ही उनका घर हो गया। अपने अन्तिम सांस तक वे कम्युनिस्ट पार्टी व श्रमिक आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता व नेता बने रहे। निधन के समय वे बिजली कर्मचारी संघ के महामंत्री तथा एटक के प्रदेश अध्यक्ष थे। उनकी उम्र अस्सी को पार कर गई थी, स्वास्थ्य भी उनका साथ नहीं देता था लेकिन अपनी परवाह किये बिना संगठन के काम में वे लगे रहते थे।
का0 वासुदेव पाण्डेय की पहली बरसी पर लखनऊ में सेमिनार का आयोजन हुआ। विषय था ‘भूमण्डलीकरण का वर्तमान दौर और श्रमिक आंदोलन के समक्ष चुनौतियां’। कार्यक्रम लखनऊ के यू0 पी0 प्रेस क्लब में बीते इतवार को वासुदेव पाण्डेय मेमोरियल फाउण्डेशन की ओर से आयोजित किया गया। अध्यक्षता बैंक कर्मचारियों के नता व इप्टा के प्रदेश महामंत्री राकेश ने की। सेमिनार को यू0 पी0 टी0 यू0 सी0 के प्रदेश अध्यक्ष अरविन्द राज स्वरूप तथा गिरि संस्थान के समाज विज्ञानी हिरण्मय धर ने संबोधित किया। संचालन ओ0 पी0 पाण्डेय ने किया। उदघाटन करते हुए एटक के राष्ट्रीय सचिव सदरुद्दीन राना ने कहा कि कामरेड वासुदेव पाण्डेय श्रमिक आंदोलन के समर्पित नेता व कार्यकर्ता थे। उनका सपना शोषणविहीन समाज का निर्माण था। अपनी सारी जिन्दगी उन्होंने इसी सपने को साकार करने के लिए संघर्ष किया। आज श्रमिक आंदोलन के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। ऐसे वक्त कामरेड वासुदेव पाण्डेय कों याद करने का मतलब उनके सपने और ंसंघर्ष की विरासत को जिन्दा रखना है। आज का दिन हमारे लिए संकल्प का दिन है।  

वक्ताओं का कहना था कि निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण की इस व्यवस्था ने आम आदमी  के जीवन व देश के लिए संकट को बढ़ाया है। समाज में विषमता बढ़ी है। सत्ता  के जिस भी कोने को देखिए वहां भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है। श्रम कानूनों का सीधे उलंघन हो रहा है। संगठित क्षेत्रों को असंगठित बनाया जा रहा है। बेरोजगारों की फौज खड़ी हो रही है। श्रमजीवी जनता को संगठन बनानें के बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। एफडीआई जैसे कानून बनाये जा रहे हैं। पूछा जाना चाहिए कि इनसे किनका भला होने वाला है। लोकतंत्र खतरे में पड़ा है। लूट व दमन इस भूमंडलीकरण की संस्कृति है। इसे भूमंडलीकरण की जगह अमेरीकीकरण कहना ज्यादा सही होगा। यह पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था का सबसे क्रूर, जनविरोधी व नवीनतम रूप है। वहीं, धर्म, जति व नकली सवालों पर मजदूरों को विभाजित किया जा रहा है।

वक्ताओं का यह भी कहना था कि इस भूमंडलीकरण ने श्रमिक जनता के सामने नई चुनौतियां खड़ी की हैं। इसने उनके अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। ऐसे में उनके पास संघर्ष के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है। आगामी 21 व 12 फरवरी को राष्ट्रव्यापी हड़ताल होने जा रही है। ऐसे संघर्षों के द्वारा ही श्रमिक जनता अपना प्रतिरोध दर्ज कर सकती है। हालत कितनी बुरी है कि आज कांग्रेस व भाजपा से जुड़े संगठनों को भी इन नीतियों का विरोध करना पड़ रहा है और संघर्ष में उतरना पड़ रहा है। यह नई व स्वागतयोग्य बात है।

एफ - 3144, राजाजीपुरम, लखनऊ - 226017
मो - 8400208031



 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना