प्रतिरोध का सिनेमा जनता के सुख दुख और उसके संघर्ष का सिनेमा
लखनऊ/जनसंस्कति मंच के तत्वावधान मे संगीत नाटक अकादमी के बाल्मीकि रंगशाला में आज दोपहर पांचवा लखनऊ फिल्म फेस्टिवल शुरू हुआ। फेस्टिवल का
उद्घाटन जन संस्कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्ण ने किया। इस
मौके पर उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश
है कि सिनेमा जैसा जन माध्यम किसानों, मजूरों, स्त्रियों, आदिवासियों के आंदोलन जो
कि भूमण्डलीकरण, निजीकरण के खिलाफ हैं उन सबकी अभिव्यक्ति का मंच बने। उन्होंने कहा कि हम इस समय
सांस्कृतिक संकट के दौर से गुजर
रहे हैं जो राजनीतिक और आर्थिक संकट का ही प्रतिफलन है। सरकार अमरीकी और बहुराष्टीय कम्पनियों के दबाव में प्राकृतिक संसाधनों के लूट के खिलाफ संघर्षरत जनता का भीषण दमन कर रही है। आने वाले
दिनों में यह दमन और तेज होगा।
उन्होंने कहा कि वाम आंदोलन और संस्कृति के क्षेत्र में प्रगतिशील तहरीक अनेक धाराओं के बाद भी एक है। हमारी विरासत एक है। हममें
जो आपसी बहस है वह सही रास्ते की तलाश को लेकर है। हमारे
फिल्म फेस्टिवल साहित्य, रंगमंच, संगीत, चित्रकला इन सभी विधाओं की अभिव्यक्ति का भी मंच है।
गोरखपुर फिल्म सोसाइटी के सयोजक एवं जन संस्कृति मंच के प्रदेश सचिव मनोज कुमार सिंह
ने प्रतिरोध का सिनेमा की वर्ष 2006 से शुरू हुई यात्रा की चर्चा करते हुए कहा कि
प्रतिरोध का सिनेमा जनता के सुख दुख और उसके संघर्ष का सिनेमा है।
फिल्मकार नकुल स्वाने ने कहा कि मुख्यधारा के सिनेमा के नायक औैर
उसके पात्र आज आम जनता नहीं
अनिवासी भारतीय है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वालीबुड पूरी तरह पूंजी की गिरफत में आ गया है। अध्यक्षता कर रहे संस्कृति कर्मी
आरके सिन्हा ने भूमण्डलीकरण के दौर में सांस्कृतिक चुनौतियों की
चर्चा करते हुए कहा कि आज का सिनेमा सत्ता की संस्कृति का पोषण कर रहा है जिसका मुकाबला जन प्रतिरोध की संस्कृति से ही हो सकता है।
उद्घाटन सत्र के बाद पटना से आई प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था हिरावल के संतोष झा, समता राय, डीपी सोनी, अंकुर, राजेन्द्र ने फैज अहमद फैज की नज्म, मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह, दिनेश कुमार शुक्ल की कविताओं की शानदार सांगीतिक प्रस्तुति दी।
पहले दिन के तीसरे सत्र में पहली फिल्म के बतौर देवरंजन सारंगी की वीडियो रिपोर्ट विजिट टू वासागुडा दिखाई गई। यह वीडियो रिपोर्ट जून माह में छतीसगढ़ के वासागुडा में सीआरपीएफ द्वारा 17 आदिवासियों की हत्या के बाद मौके पर गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दल के दौरे के दौरान तैयार की गई थी। यह रिपोर्ट आदिवासियों पर सुरक्षा बलों के अत्याचार का खुलासा करती है। इसके बाद रंगमंच और सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री जोहरा सहगल पर अनंत रैना की डाक्यूमेंटरी दिखाई गई। यह फिल्म बहुत रोचक तरीके से जोहरा सहगल के जीवन, थियेटर और फिल्म के सफर और संघर्ष को बयां करती है।
फिल्म का परिचय एपवा की उपाध्यक्ष ताहिरा हसन ने प्रस्तुत किया। आज अंतिम फिल्म के बतौर एमएस सथ्यू की मशहूर फिल्म गर्म हवा दिखाई गई। विभाजन की त्रासदी पर बनी यह फिल्म एक मुस्लिम परिवार के आत्मसंघर्ष की दास्तां है। (लखनऊ से कौशल किशोर की रिपोर्ट )