25 मार्च 2013 तक चलेगा सफ़र का यह पांचवां पड़ाव
मऊ फिल्म सोसायटी का गठन 2008 के एक सम्मेलन के दौरान हुई बातचीत के चलते हुआ, जब साथी अरविन्द ने इस दिशा में सक्रिय कदम उठाते हुए 23 मार्च 2009 को अन्यऊ साथियों के साथ मिलकर अपने गांव साहूपुर में पहला मऊ फिल्म उत्सव आयोजित किया। इस तरीके से मऊ फिल्म उत्सव की शुरुआत हुई। यह आयोजन शाम को शुरू होकर देर रात तक चलता है जिसमें सार्थक फिल्मों के जरिये आम लोगों से संवाद कायम करने की कोशिश की जाती है। पहले फिल्म उत्सव के दौरान आनंद पटवर्धन की फिल्म 'जंग और अमन' के प्रदर्शन के दौरान साझी विरासत के दुश्म नों ने पत्थरबाज़ी की थी जिससे हमें और ताकत मिली व अपने अभियान में हमारा विश्वाैस मज़बूत होता गया।
मऊ का अपनी साझी विरासत का शानदार इतिहास रहा है, लेकिन साम्प्ररदायिक ताकतें यहां की आबोहवा में मज़हबी ज़हर घोलने की साजिश में लगातार लगी रहती हैं। इन तमाम अवरोधों के बावजूद गांवों से शुरू हुआ यह सफर लगातार आगे बढ़ता जा रहा है और आज यह अपने पांचवें साल में प्रवेश कर गया है। गांव में उत्सव की पुरानी परम्परा को सहेजते हुए इस बार मऊ जिले के देवकली, पतिला और सलाहाबाद में तीन दिवसीय आयोजन इतिहास का गवाह बनने जा रहा है, जहां 'शहादत से शहादत तक' नामक आयोजन 23 से 25 मार्च 2013 के बीच होने जा रहा है। यह तीन दिवसीय आयोजन शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के शहादत दिवस से गणेश शंकर विद्यार्थी के शहादत दिवस तक हो रहा है। इस बार का आयोजन इरोम शर्मिला के अथक संघर्ष को समर्पित है।
मऊ फिल्म उत्सव में शामिल होने के लिए देश भर से हमारे पास हर रोज़ फोन आ रहे हैं जिससे हमारा हौसला बढ़ा है। हम आप सभी को खुले दिल से आमंत्रित करते हैं।
इस ढांचे को और बेहतर बनाने की ज़रूरत है। अपने ऊर्जावान और उत्साही साथियों की मदद से यह कारवां अपने शुरुआती तेवर के साथ दिन-ब-दिन आगे बढ़ता जा रहा है। इस सफ़र से जुड़ने के लिए हमें और नये साथियों की ज़रूरत है। उनका रास्ता खुला हुआ है, वे जब और जैसे आएं, हम उनका तहेदिल से स्वाचगत करते हैं। (विज्ञप्ति)