इस्लामाबाद/ पाकिस्तान के एक प्रख्यात पत्रकार ने अमेरिका से आग्रह किया है कि आतंकवाद को समर्थन देने के मामले में उसे दोषी ठहराने की बजाए आतंकवाद से लडने में अमेरिका को पाकिस्तान की मदद करनी चाहिए।
फ्रीलांस स्तंभकार मलिक मुहम्मद अशरफ ने दैनिक समाचार पत्र ‘ द नेशन’ में आज कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी ‘अफगानिस्तान- दक्षिण एशिया नीति’ का खुलासा करते हुए स्पष्ट किया है कि अफगानिस्तान में अब अमेरिका इस समस्या के शांति पूर्ण समाधान पर विचार नहीं करेगा और अब से सैन्य लक्ष्यों को हासिल करने पर जोर दिया जाएगा। अब अमेरिकी सैनिक वहां सिर्फ लड़ाई के लिए संघर्ष करेंगें और विजयी होने की स्पष्ट परिभाषा तय की जाएगी।
उन्होंने अमेरिका के विदेश मंत्री रैक्स टिलेरसन के उस बयान का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि अगर तालिबान के खिलाफ अमेरिकी अभियान में पाकिस्तान सहयोग नहीं करता है तो उसे गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान और अमेरिकी हित बहुत ही स्पष्ट हैं और हमें पाकिस्तान को आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगार बनने से रोकना होगा तथा यह भी सुनिश्चित करना होगा कि परमाणु हथियार किसी भी आतंकवादी समूह के हाथों में न आ जाएं। अगर ऐसा होता है तो ये आतंकवादी इनका इस्तेमाल हमारे खिलाफ या विश्व में कहीं भी कर सकते हैं।
लेख में कहा गया है कि अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को अरबों डालर की सहायता मिल रही है और अब सही समय आ गया है जब पाकिस्तान को मानवता शांति और स्थिरता की खातिर कुछ प्रतिबद्वता दिखानी होगी । अगर पाकिस्तान ने आतंकवाद के मामले में अपने रूख में कोई बदलाव नहीं किया तो वह अमेरिका के गैर नाटो सहयोगी के तौर पर विशेष दर्जे को गवां देगा। अफगानिस्तान के मामले में भारत को शामिल किए जाने को उन्होंने एक बड़ी आपदा करार देते हुए कहा कि यह तालिबान को स्वीकार नहीं होगा और इस क्षेत्र में पाकिस्तानी हितों के प्रतिकूल होगा। यह घटनाक्रम वाकई पाकिस्तान के लिए बहुत ही गंभीर होगा और पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राष्ट्रपति के इन सभी आरोपों को हताशाजनक बताया है कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगार बना हुआ हैं।
उन्होंने कहा कि इस तरह के आरोपों को लगाने के बजाए आतंकवाद से निपटने में अमेरिका को पाकिस्तान की मदद करनी चाहिए क्योंकि अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया के बारे में अमेरिकी नीति पक्षपात पूर्ण और अवास्तविक है। इस नीति को अमेरिका और उसके सहयोगियों के वाणिज्यिक हितों के आधार पर बनाया गया है।
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