सीड की अपील, टायर, प्लास्टिक व थरमोकोल जलाने से स्वास्थ्य पर पड़ सकता है गंभीर असर
पटना/ शहर में होलिका दहन की तैयारियाँ शुरू होते ही सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) ने शहर में जलने वाली होलिकाओं में प्रयोग होने वाले हानिकारक पदार्थों पर एक सर्वे किया है, जिसके परिणामस्वरुप यह पता चला है कि कुल 25 अलाव ढेरों में 16 ढेर ऐसे हैं जिनमें लकड़ी के अलावा कचरा, प्लास्टिक के बैग, पुराने टायर, रबर के पदार्थ, चमड़े के टुकड़े तथा अन्य छोटे-मोटे रद्दी के सामान का प्रयोग हुआ है |
सीड की सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर, अंकिता ज्योति ने पटनावासियों से आग्रह किया कि "वे पर्यावरण के अनुकूल ही होलिका दहन मनाएं | ज्योति ने कहा कि “होलिका दहन बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत को दर्शाता है | हालांकि प्लास्टिक व अन्य हानिकारक पदार्थों को जलाकर हम आज के दौर की सबसे बड़ी बुराई को जन्म देते हैं और वह है प्रदूषण |”
पटना में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को ध्यान में रखते हुए, पर्यावरण के प्रति जागरूक इस विशेषज्ञ दल ने यह सर्वे लगभग 65 किलोमीटर के विस्तार में आयोजित करवाया जिसके तहत पटना के सभी महत्त्वपूर्ण इलाकों का सर्वेक्षण किया गया | यह सर्वे न सिर्फ होलिका जलाने में प्रयोग होने वाले विभिन्न हानिकारक पदार्थों पर ध्यान केंद्रित करता है, बल्कि उन पदार्थों से जन स्वास्थ्य व पर्यावरण पर होने वाले संभावित प्रभावों को भी दर्शाता है | शायद हमें ज्ञात न हो पर ऐसे पदार्थों को खुले में जलाने के कारण हवा में प्रदूषकों की मात्रा में उत्सर्जन होता है | इन प्रदूषकों में डाइऑक्सिन और फ्यूरन सबसे अधिक हानिकारक माने जाते हैं | IARC की एक रिपोर्ट के अनुसार “डाइऑक्सिन” कैंसर का एक महत्त्वपूर्ण कारण है तथा इसके अल्पकालिक संपर्क में आने से त्वचा को क्षति पहुँच सकती है जैसे कि क्लोरैकनी, त्वचा में कालापन तथा लीवर में खराबी होने की संभावना होती है | इसके अलावा सीड ने पिछले वर्ष होली के दौरान पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) के संकेन्द्रण में वृद्धि की भी जांच की | जांच द्वारा पता चला कि उस अवधि में परिवेश की वायु गुणवत्ता में पार्टिकुलेट मैटर की गिनती में अचानक से वृद्धि हुई; मार्च 2016 में होली के ठीक 2 दिन पहले पाए गए संकेन्द्रण की तुलना में यह 3 गुना अधिक पाया गया |