स्मृतियों में खो गये थे पत्रकार हरिवंश
पटना में हर रविवार चलता है संस्मरण सुनने-सुनाने का सिलसिला
पटना/ बाढ़ की लहर से लेकर मीडिया की त्रासदी, सब कुछ देखा है प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश जी ने। इसी कारण वह अनायास कह पड़ते हैं कि व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं होता है। महत्वपूर्ण होता है उसका अनुभव। यही अनुभव वह अन्य व्यक्तियों के साथ साझा करता है
पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में हर रविवार को होने वाले थ्री डी (डिबेट, डायलॉग व डिस्कशन) बूथ कार्यक्रम में उन्होंने अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने बचपन में बाढ़ की लहरों के साथ और पत्रकारिता में धर्मयुग के संपादक धर्मवीर भारती के साथ बिताये लम्हों को याद कर सबको को रोमांचित कर दिया। जीवन के आनंद और जीवन के संघर्ष समेत जीवन के विविध पक्षों पर उन्होंने प्रकाश डाला। उन्होंने सिन्हा घाट से लेकर श्मशान घाट तक के अपने अनुभव सुनाए। अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि सरयू व गंगा के संगम पर बसा उनका गांव है सिताब दियारा। वहां बिताये बचपन की घटनाएं, स्मृतियां और अनुभूतियों को भुलाना संभव नहीं है। नदियों की बाढ़, बाढ़ की लहर और बाढ़ के जीवन बचाने का संघर्ष को झेलना और देखना आज दोनों अविश्वसनीय लगता है।
कार्यक्रम का आयोजन वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत व अमर नाथ तिवारी के प्रयास से होता है। पिछले पांच माह से लगातार यह आयोजन हो रहा है। मैं स्वयं (वीरेंद्र यादव) सिताबदियारा गया था और उनके गांव दलजीत टोला की सीमा तक पहुंच गया था। इस कारण सिताब दियारा से जुड़े उनके अनुभव को सुनना मुझे ज्यादा रोचक लग रहा था। जेपी का घर, गांव, बांध, दूर-दूर तक बिखरे बालू सबकुछ आंखों के सामने घूम रहा था।
अपने संस्मरणों को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सिताब दियारा में जीवन के लिए संघर्ष का जज्बा आज भी चुनौतियों से मुकाबले के लिए प्रेरणा देता है। उनका सिताब दियारा उत्तर प्रदेश व बिहार के तीन जिलों आरा, बलिया और छपरा की सीमाओं में बंटा है। इस कारण इसे लोग एबीसी भी कहते हैं। उन्होंने अपने सामाजिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कहा कि पारिवारिक बंटवारे के बाद भी परिजनों से मिलने वाले स्नेह, अपनापन में कोई अंतर नहीं पड़ा। भावनाओं का बंटवारा नहीं हुआ। भिखारी भाई की चर्चा करते हुए कहते हैं कि वह परिवार के सभी बच्चों के अभिभावक थे और बच्चों से जुड़ी छोटी-छोटी जिम्मेवारियों को पूरी तरह निभाते थे। शाम को बच्चे पढ़ने बैठ जाएं, यह उनकी बड़ी जिम्मेवारी थी।
गांव की सामाजिकता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बेटी की शादी और मौत जैसी घटनाओं पर पूरा गांव एक साथ रहता था। जिनसे मनमुटाव हो, वह भी इन मौकों पर साथ नजर आते थे। उन्होंने किसानों की जीवटता की चर्चा करते हुए कहा कि कई फसलों के बर्बाद होने के बाद भी किसान जीवन के लिए संघर्ष करते रहते थे और कर्ज व उधार लेकर भी जिदंगी को गढ़ने में जुटे रहते थे। करीब 14-15 वर्ष की उम्र में बनारस से रिविलगंज तक की अकेली यात्रा का जिक्र करते हुए वह रोमांचित हो जाते हैं और कहते हैं कि इस यात्रा के बाद लगा कि हम अकेले यात्रा भी कर सकते हैं। इसके बाद अंदर से एक आत्मविश्वास भी आया। उन्होंने जयप्रकाश नारायण के साथ जुड़े अनुभवों को भी सुनाया और कहा कि जेपी की सादगी और आत्मीयता भरा व्यवहार आज भी प्रेरणा देता है। हरिवंश जी ने पत्रकारिता से जुड़े अपने लंबे अनुभवों को सुनाया और कहा कि धर्मवीर भारती से मिले संस्कार, कार्यशैली और समर्पण की भावना ही आज भी हमें पत्रकारिता के क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने का साहस देती है। उन्होंने इस बात पर अफसोस भी जताया कि आज पत्रकारों को गढ़ने वाला कोई नहीं है। करीब दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में पत्रकार अजय कुमार, दीप नारायण, इर्शादुल हक समेत बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद थे।