नाट्य लेखन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए राजेश कुमार को अकादमी पुरस्कार
लखनऊ/ उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने 13 फरवरी, 2020 को संत गाडगे जी महाराज प्रेक्षाग्रह में आयोजित सम्मान समारोह में वर्ष 2009 से 2019 तक दिए जाने वाले 128 कलाकारों का सम्मान मुख्य अतिथि राज्यपाल आनंदी बेन पटेल द्वारा ताम्रपत्र, अंगवस्त्र व सम्मान राशि से किया। हर वर्ष दिया जानेवाला यह सम्मान पिछले कई वर्षों से किन्हीं कारणों से लंबित था। संगीत नाटक अकादमी के यह पुरस्कार कला के विभिन्न क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, गायन, नाटक, कला उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया जाता है। नाटक के क्षेत्र में जिन विभूतियों को यह सम्मान प्राप्त हुआ, उनमें प्रमुख थे, देवेंद्र राज अंकुर, रंजीत कपूर, पूर्वा नरेश, विभांशु वैभव, सलीम आरिफ, डिंपी मिश्रा, विधु खरे, जरीफ मलिक आनंद, राजा अवस्थी, टीकम जोशी, पुरूषोतम भट्टाचार्य और अम्बरीश बॉबी।
इन नामों के बीच एक नाम राजेश कुमार का है , जिन्हें नाट्य लेखन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए 2014 का अकादमी पुरस्कार दिया गया है। नाट्य लेखन के रूप में जब राजेश कुमार के पुरस्कार की घोषणा हुई तो रंगमंच की दुनिया में काफी खलबली सी दिखाई दी। दबी जुबान में कइयों ने कहा भी कि राजेश कुमार का नाम कैसे आ गया? राजेश कुमार के अधिकतर नाटक सत्ता प्रतिरोधी व सत्ता विरोधी हैं जिसे पचाना सत्ता के लिए आसान नहीं है। अभी पिछले दिनों पहले ही उनके नाटक ‘गाय’ को शाहजहांपुर में मंचन को स्थानीय प्रशासन ने रोक दिया था। यह नाटक गाय को लेकर इनदिनों राजनीतिक दलों द्वारा जिस तरह का साम्प्रदायिक खेल खेला जा रहा है, केंद्र में रख कर हास्य - व्यंग्य के माध्यम से रखा गया है। बसपा के शासन काल में भी इनके नाटक ‘ सत भाषे रैदास ‘ जो मध्यकालीन कवि रैदास के वर्णवादी व्यवस्था के खिलाफ एक कलात्मक प्रयास था और जिसे 2008 में दिल्ली प्रशासन द्वारा सर्वश्रेष्ठ नाट्य लेखन हेतु ‘ मोहन राकेश सम्मान ‘ प्राप्त हुआ था, मंचन के कुछ घंटे पूर्व पंचम तल के आदेश से यह कहकर रोक दिया गया था कि इस नाटक से सरकार की सोशल इंजीनियरिंग प्रभावित होने की संभावना है। कुछ महीने पूर्व ‘तफ्तीश’ नाटक को लेकर भी मुम्बई में प्रशासन का यही रवैया रहा था। नाटककार राजेश कुमार के अधिकतर नाटक समाज में रह रहे दबे - कुचले मजदूर - किसान - बेरोजगार युवक पर हो रहे जुल्म - शोषण के विरुद्ध चल रही लड़ाई, संघर्ष पर हैं। वर्ग और वर्ण के आधार पर हाशिये के लोगों को मुख्यधारा में लाना ही इनके रंगकर्म का उद्देश्य है। अल्पसंख्यकों पर जिस तरह शक किया जा रहा है, जाति के नाम पर दलितों पर जुल्म ढाया जा रहा है, ऐसे विषय राजेश कुमार के नाटकों के विषय रहे हैं। ‘तफ्तीश’, ‘गर्द हवाओं का गुबार’, ‘खेल खत्म’ जैसे लिखे नाटक इन्हीं सवालों को लेकर हैं, जिनसे अधिकतर नाटककार इनदिनों बचने की कोशिश करता है। राजेश कुमार इन सवालों से टक्कर लेते हुए नज़र आते हैं। उनके अन्य नाटक जैसे ‘घर वापसी’, ’अम्बेडकर और गांधी’, ‘ हवनकुंड’, ’श्राद्ध’, ‘सुखिया मर गया भूख से’ भी इसी तेवर, मिजाज के हैं जो राजेश कुमार को नाटककारों की उन पंक्तियों से अलग करता है जो सत्ता से गलबहियां करते हुए सामाजिक यथार्थ से टकराने से बचने की कोशिश करते हैं।
इस पुरस्कार के संबंध में नाटककार राजेश कुमार का कहना है कि यह सम्मान सत्ता की खुशामदी करने की वजह से नहीं मिला है, बल्कि हाशिये के समाज का पक्षधर होने के नाते हासिल हुआ है। पुरस्कार दे कर कोई सत्ता यह सोचती है कि नाटककार की कलम का रुख अपनी तरफ मोड़ देने में सफल होगी, तो ये उसका भ्रम है। नाटककार राजेश कुमार से पुरस्कार मिलने के बाद पूछा कि कैसे लग रहा है तो जवाब में कहा कि पुरस्कार मिलने के बाद जिम्मेदारी और बढ़ गयी है। सत्ता को सावधान करने के प्रति और भी सचेत कर दिया है। आलोचना को और तेज करने के लिए उद्दत कर दिया है। नाटक पर हो रहे दमन के विरुद्ध लामबंद होने के लिए प्रतिबद्ध कर दिया है। संभवतः आनेवाले नाटक सत्ता को और चुनौती देनेवाला साबित हो।