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कोविड से किताबों को खतरा

प्रमोद रंजन / कोविड : 19 ने  किताबों के बाजार को गहरा धक्का पहुंचाया है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि  वैश्विक स्तर पर 2019 में किताबों का बाजार $ 92.8 बिलियन डालर का था | 2020 में इसके घटकर $ 75.9 बिलियन  डालर रह जाने की उम्मीद है।

पिछले साल तक किताबों के बाजार में बड़ी बढ़ोत्तरी की उम्मीद जताई जा रही थी। नए-नए प्रकाशक, नए विचारों और नए प्रयोगों के साथ बाजार में आ रहे थे, इंटरनेट की दुनिया से भी हमें बहुत उम्मीदें थीं। कुल मिलाकर किताबों का, विचारों के संचार का परिदृश्य बहुत आशान्वित करने वाला था।

कोविड : 19 ने इस पूरे परिदृश्य को विपरीत दिशा में मोड़ दिया है और हमारा ध्यान कुछ अब तक अदेखे रहे खतरों की ओर दिलाया है।

अब तक अनुभव बताता है कि संकट-काल में दुनिया भर में किताबों की मांग बढ़ती है। लॉकडाउन के दौरान भी ई-बुक्स और ऑडियो बुक्स की बिक्री में इज़ाफा हुआ है। लेकिन इस बार समस्या अलग प्रकार की है। पिछले वर्षों में  किताबों के बाजार पर अमेज़न का कब्ज़ा घनीभूत हो गया है। न सिर्फ उनके मनमाने नियम और शर्तें प्रकाशकों को नुकसान पहुंचाने वाले हैं, बल्कि अमेजन के वर्चस्व के कारण विचारों की आजादी भी खतरे में पड़ गई है।

हाल ही मैंने अपने एक लेख में बताया था कि किस प्रकार अमेजन ने कोविड की भयवाहता और लॉकडाउन के बारे में अलग राय रखने वाले न्यूर्याक टाइम्स के पत्रकार रहे एलेक्स बेरेनसन की ई-बुक को बैन कर दिया था। जैसे-जैसे ई-बुक का प्रचलन बढ़ेगा, कथित तौर पर खतरनाक विचारों को पूरी तरह से खत्म कर देना संभव होता जाएगा।

प्रिंट माध्यम की किताबें एक बार प्रकाशित होकर पाठक तक पहुंच जाने के बाद उनकी थाती हो जाती हैं। किताबों के पाठक तक पहुंच जाने के बाद उस पर लगाया गया प्रतिबंध बेमानी हो जाता है, लेकिन अमेजन (व ऐसी अन्य ईकामर्स कंपनियों) के ई-बुक और ऑडियो बुक के मामले में ऐसा नहीं है। जिन इलैक्ट्रॉनिक किताबों को हम “खरीदते” हैं, वे हमारी संपत्ति नहीं होतीं, बल्कि प्रकारांतर से हमें किराए पर दी जाती हैं। जैसे ही अमेजन किसी किताब को प्रतिबंधित करता है, वह हमारी लाइब्रेरी से भी गायब हो जाती है। यह एक प्रकार से ऐसा है, जैसे हम किसी विक्रेता से कोई किताब खरीदते हैं और अचानक किसी दिन पाते हैं कि वह हमारी सेल्फ से गायब है। हमें अपनी सेल्फ में उस किताब की जगह कुछ रूपए और एक चिट्ठी रखी मिलती है। उस चिट्ठी को पढ़कर हम जानते  हैं कि किताब का विक्रेता बिना हमारी अनुमति के हमारे घर में “अपनी” किताब वापस लेने आ घुसा था। वह किताब लेकर जा चुका है और किताब के लिए हमारे द्वारा चुकाए गए रूपए एक चिट्ठी के साथ सेल्फ पर रख गया है। जहां वह किताब थी, वहां अब कुछ रूपए और एक चिट्ठी है।

2019 में ई-बुक का वैश्विक मार्केट शेयर (बिक्री से होने वाली आय) कुल किताबों की बिक्री का 18 प्रतिशत था, जबकि संख्या के हिसाब से कुल बिकी किताबों में से 36 प्रतिशत ई-बुक्स थीं। आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली अलग-अलग संस्थाओं के अनुसार ई-बुक्स में से 67 से 83 प्रतिशत का शेयर अकेले अमेजन (किंडल) का था। 2019 में ई-पुस्तकों का बाजार 18.13 बिलियन अमरीकी डॉलर था, 2025 तक इसके 23.12 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। मौजूदा परिस्थितियों और तकनीक के अधिक सुगम होते जाने के कारण मुद्रित किताबों के खत्म हो जाने की उम्मीद है। “मुद्रित” किताबों का खत्म हो जाना, अपने आप में कोई बड़ा संकट नहीं है, हमें इसे परिवर्तन के सामान्य नियम की तरह देखना चाहिए।

लेकिन उपरोक्त नई परिस्थितयों में यह आवश्यक है कि हम मुद्रित पुस्तकों को कम से कम तब तक बचाने की कोशिश करें, जब तक इस एकाधिकारवादी व्यापार का कोई लोकतांत्रिक हल न निकल जाए। हालांकि यह सिर्फ इंतजार करने से संभव नहीं होगा। यह एक लंबे और आक्रामक संघर्ष की मांग करेगा।

दूसरी ओर, भारत में लंबे लॉकडाउन ने छोटे और मंझोले स्तर के प्रकाशकों की कमर तोड़ दी है। हिंदी के तो प्राय: बड़े कहे जाने वाले प्रकाशकों की भी बुनियाद हिल गई है। दुनिया के अनेक देशों ने लॉकडाउन के दौरान किताबों को अपरिहार्य वस्तुओं में शामिल करते हुए इनकी दुकानों को खुला रखने की अनुमति दी, लेकिन “विश्व-गुरू” भारत में न ऐसी छूट थी, न ही इसकी कोई मांग हमारी ओर से उठी।

स्कूल-कॉलेजों के बंद होने के कारण भी किताबों की बिक्री बहुत कम हो रही है। इसके अलावा, भारत में जिस प्रकार से बेरोजगारी बढ़ी है, और लोगों की क्रय शक्ति कम हुई है, उसका किताबों की खरीद पर क्या असर पडेगा, यह अभी कहना कठिन है। दूसरी ओर, अब आर्थिक संकट से जूझती सरकारें भी किताबों की खरीद बहुत कम करेंगी।

दलित-बहुजन विषयक व अन्य वैकल्पिक विचारों की पुस्तकें प्रकाशित करने वाले संस्थानों के लिए यह संकट और भी पेचीदा और बड़ा है। अमेज़न की मनमानी अपनी जगह है। अनेक महानगरों में किताबों की प्रतिष्ठित दुकानों के बंद होने की सूचनाएं आ रही हैं। वितरण के चैनल ध्वस्त हो रहे हैं।

इसलिए आवश्यक है कि जो सक्षम हैं, वे किताबों की खरीद जारी रखें। प्रिंट किताबों को प्राथमिकता दें। कोशिश करें कि किताबें अमेज़न की बजाय सीधे प्रकाशक से मंगवाई जाएं, या उनकी अपनी वेबसाइट से खरीदी जाएं, ताकि  इस संकट की घड़ी में हमारे द्वारा खर्च किए गए रूपयों का अधिकाधिक अंश सीधे अच्छी किताबें प्रकाशित करने वाले प्रकाशकों तक पहुंच पाए।

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सम्पादक

डॉ. लीना