अंशु शरण की दो कवितायें....
मीडिया
जुबाँ खुलने से पहले
कलम लिखने से पहले
अख़बार छपने से पहले ही
बिकी हुयी है |
और इनके बदौलत ही
सरकार और बाजार की छत
लोकतंत्र के इस स्तम्भ पर
संयुक्त रूप से
टिकी हुयी है |
सारथी संपादक साहब
वैतनिक और गुलाम कलमों के सारथी संपादक साहब
आपके इस बौद्धिक रथ पर
क्यों एक राजनैतिक वीर सवार है |
जिसने झूठ के तीरों से
शुरू की एक ऐसी मार है
जिसकी एक बड़ी आबादी शिकार है
संपादक साहब
क्या आपका राष्ट्रवादी जागरण रथ
चाटुकारिता की रेस में दौड़ने को
आपको राज्य सभा छोड़ने को
तैयार है |
अंशु शरण
वाराणसी
9415362110