हिंदी पर विलाप नहीं, संभावनाओं पर विचार
भोपाल /मीडिया एवं सिनेमा की शोध पत्रिका समागम का ताज़ा अंक हिंदी एवं बोलियों पर केन्द्रित है। इस अंक में हिंदी की संभावनाओं पर विचार किया गया है।
अब तक हिंदी दिवस पर विलाप करने की
परम्परा रही है। नेट युग में हिंदी को नई पहचान मिली है। अंग्रेजी के प्रकाशन
हिंदी में आने को बेताब है। हिंदी किताबो से निकल कर अब बाज़ार की भाषा बन चुकी
है। इस अंक में उर्दू पर भी बात की गयी है। हिंदी सिनेमा का भाषाओ को
बचाने में योगदान का भी ज्रिक है। साथ में बोलियों पर एक आलेख भी प्रकाशित
किया गया है. नियमित रूप से शोध पत्र का प्रकाशन भी किया गया है। हिंदी
दिवस पर समागम की यह विन्रम प्रस्तुति है।