दो युवा भाइयों द्वारा बनायी गयी छोटी सी फ़िल्म "कंडोम लीड”
यादवेन्द्र / 8 जुलाई से मिस्र और इस्राइल के बीच सैंडविच बनी हुई छोटी सी पर दुनिया की सबसे ज्यादा घनी आबादी वाली गाज़ा पट्टी अखबारों की सुर्ख़ियों में है और तमाम मानवीय अपीलों को धता बताता हुआ इस्राइल मकानों और हरियाली समेत असहाय इंसानों को टैंकों के नीचे रौंद रहा है। पिछले छह सालों में गाज़ा पर यह तीसरा इस्राइली हमला है। अपनी शक्ति भर वहाँ के स्थानीय लोग इनका प्रतिकार कर रहे हैं पर इस गैर बराबर युद्ध में आधुनिकतम हथियारों से लैस फ़ौज के सामने निहत्थे इंसान की क्या बिसात। ऐसे समय में सांस्कृतिक प्रतिरोध के अनेक स्वर भी उभरे हैं -- उनमें से एक है दो युवा भाइयों द्वारा बनायी गयी छोटी सी फ़िल्म "कंडोम लीड"।
एक विवाहित जोड़ा अपने कमरे के एकांत में अंतरंग होने की कोशिश कर रहा था कि अचानक उनकी निजी बातचीत के तमाम शब्दों और ध्वनियों को रौंदता हुआ एक सैनिक विमान कानफोड़ू शोर के साथ सिर के ऊपर से गुज़र जाता है .... ज़ाहिर है ऐसे में उनकी सारी शक्ति किसी तरह जान बचाने की होती है। उसके कुछ मिनटों बाद पति अपनी पत्नी को चूमने को आगे बढ़ता है कि सामने बम आ कर गिरता है -- पास पहुँचते पहुँचते दो जोड़ी होंठ घबराहट में दूर जाकर धड़ाम से गिरते हैं। थोड़ा हट कर सोयी हुई उनकी छोटी सी मासूम बेटी इन सब शोर शराबे में जग जाती है और जोर जोर से रोने लगती है -- पत्नी बेटी को थपकी देकर सुला देती है और पति की ओर लौटती है कि जहाज फिर से उनको डराता धमकाता ऊपर से गुजारता है। हताश होकर बिस्तर पर बैठे बैठे पत्नी अपने पैर पति के पैरों से छूती है कि धाँय से एक बड़ा सा बम का गोला उनके घर के एकदम पास गिर कर फटता है …बच्ची चौंक कर जग जाती है और डर से रोने लगती है। पत्नी बच्ची को गोद में लेकर हौसला देने लगती है …… किंकर्तव्य विमूढ़ होकर पति कंडोम में मुँह से हवा भर कर गुब्बारे बनाने लगता है …… पूरे कमरे में गुब्बारे ही गुब्बारे भर जाते हैं। पति बालकनी में निकलता है तो देखता है आसपास के सभी घरों में वैसे ही कंडोम के गुब्बारे दिखायी दे रहे हैं और घरों से निकल कर ये गुब्बारे गाज़ा की हवा में तैरने लगे हैं।
2008 - 2009 में गाज़ा पर इस्राइली हमले( जिसको इस्राइली शासन ऑपरेशन कास्ट लीड कहता है) के बाइसवें दिन की रात की घटना निहायत अपारम्परिक शैली में बयान करने वाली फ़िल्म "कंडोम लीड" ( ऑपरेशन कास्ट लीड पर तंज कसते हुए ) गाज़ा के दो युवा जुड़वाँ भाइयों अरब और टारजन नासेर( असली नाम अहमद अबु और मुहम्मद अबु नासेर) ने बनायी है और 66 वें कान फ़िल्म महोत्सव के लघु फ़िल्मों के वर्ग में शामिल की गयी थी।इसका आइडिया गाज़ा के ही एक अन्य फ़िल्मकार ख़लील अल मोजियाँ में युवा निर्देशकों को दिया ,पर फ़िल्म बनाने के पर्याप्त प्रबंध और उपकरण गाज़ा में न होने के कारण मौका मिलते ही वे जॉर्डन गए और सिर्फ़ चौबीस घंटों में और सात हज़ार डॉलर की पूँजी से फ़िल्म पूरी की। दो तीन साल पहले तक गाज़ा पट्टी से कभी बाहर न निकले और थियेटर में जाकर कोई फ़िल्म न देखने वाले नासेर बंधुओं का कहना है कि प्यार किसी भी इंसान का बुनियादी हक़ है और इसको दुनिया के नक़्शे से नहीं मिटाया जा सकता है -- दर असल ऐसी कठिन स्थितियों में प्रेम करना अलग पर अपने ढंग का प्रतिरोध है …शारीरिक अंतरंगता कई बार युद्ध की विभीषिका के बरक्स सुरक्षा का भावनात्मक कवच प्रदान करती है।
नासेर भाई अपनी फ़िल्म को "क्रूर और विभाजक दुनिया में अंतरंग होने और प्यार करने की उम्मीद का ख़्वाब" कहते हैं।