Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

पत्रकारिता ने चलाया गो-संरक्षण का आंदोलन

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती, 4 अप्रैल पर विशेष

लोकेन्द्र सिंह/ पंडित माखनलाल चतुर्वेदी उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी हैं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण प्रतिभा को राष्ट्रीयता के जागरण एवं स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। अपने लंबे पत्रकारीय जीवन के माध्यम से माखनलाल जी ने रचना, संघर्ष और आदर्श का जो पाठ पढ़ाया वह आज भी हतप्रभ कर देने वाला है। आज की पत्रकारिता के समक्ष जैसे ही गो-हत्या का प्रश्न आता है, वह हिंदुत्व और सेकुलरिज्म की बहस में उलझ जाता है। इस बहस में मीडिया का बड़ा हिस्सा गाय के विरुद्ध ही खड़ा दिखाई देता है। सेकुलरिज्म की आधी-अधूरी परिभाषाओं ने उसे इतना भ्रमित कर दिया है कि वह गो-संरक्षण जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय को सांप्रदायिक मुद्दा मान बैठा है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गो-संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है, इस बात को समझना कोई टेड़ी खीर नहीं। हद तो तब हो जाती है जब मीडिया गो-संरक्षण या गो-हत्या को हिंदू-मुस्लिम रंग देने लगता है। गो-संरक्षण शुद्ध तौर पर भारतीयता का मूल है। इसलिए ही ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से विख्यात महान संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी गोकशी के विरोध में अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी पत्रकारिता के माध्यम से देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर देते हैं। गोकशी का प्रकरण जब उनके सामने आया, तब उनके मन में द्वंद्व कतई नहीं था। उनकी दृष्टि स्पष्ट थी- भारत के लिए गो-संरक्षण आवश्यक है। कर्मवीर के माध्यम से उन्होंने खुलकर अंग्रेजों के विरुद्ध गो-संरक्षण की लड़ाई लड़ी और अंत में विजय सुनिश्चित की।

1920 में मध्यप्रदेश के शहर सागर के समीप रतौना में ब्रिटिश सरकार ने बहुत बड़ा कसाईखाना खोलने का निर्णय लिया। इस कसाईखाने में केवल गोवंश काटा जाना था। प्रतिमाह ढाई लाख गोवंश का कत्ल करने की योजना थी। अंग्रेजों की इस बड़ी परियोजना का संपूर्ण विवरण देता हुआ चार पृष्ठ का विज्ञापन अंग्रेजी समाचार-पत्र हितवाद में प्रकाशित हुआ। परियोजना का आकार कितना बड़ा था, इसको समझने के लिए इतना ही पर्याप्त होगा कि लगभग 100 वर्ष पूर्व कसाईखाने की लागत लगभग 40 लाख रुपये थी। गो-मांस के परिवहन के लिए कसाईखाने तक रेल लाइन डाली गई थी। तालाब खुदवाये गए थे। कत्लखाने का प्रबंधन सेंट्रल प्रोविंसेज टेनिंग एंड ट्रेडिंग कंपनी ने अमेरिकी कंपनी सेंट डेविन पोर्ट को सौंप दिया था, जो डिब्बाबंद बीफ को निर्यात करने के लिए ब्रिटिश सरकार की अनुमति भी ले चुकी थी। गोवंश की हत्या के लिए यह कसाईखाना प्रारंभ हो पाता उससे पहले ही महान कवि, स्वतंत्रता सेनानी और प्रख्यात संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने यात्रा के दौरान यह विज्ञापन पढ़ लिया। वह तत्काल अपनी यात्रा खत्म करके वापस जबलपुर लौटे। वहाँ उन्होंने अपने समाचार पत्र “कर्मवीर” में रतौना कसाईखाने के विरोध में तीखा संपादकीय लिखा और गो-संरक्षण के समर्थन में कसाईखाने के विरुद्ध व्यापक आंदोलन चलाने का आह्वान किया।

सुखद तथ्य यह है कि इस कसाईखाने के विरुद्ध जबलपुर के एक और पत्रकार उर्दू  दैनिक समाचार पत्र 'ताज' के संपादक मिस्टर ताजुद्दीन मोर्चा पहले ही खोल चुके थे।

उधर, सागर में मुस्लिम नौजवान और पत्रकार अब्दुल गनी ने भी पत्रकारिता एवं सामाजिक आंदोलन के माध्यम से गोकशी के लिए खोले जा रहे इस कसाईखाने का विरोध प्रारंभ कर दिया। मिस्टर ताजुद्दीन और अब्दुल गनी की पत्रकारिता में भी गोहत्या पर वह द्वंद्व नहीं था, जो आज की मीडिया में है।

माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिष्ठा संपूर्ण देश में थी। इसलिए कसाईखाने के विरुद्ध माखनलाल चतुर्वेदी की कलम से निकले आंदोलन ने जल्द ही राष्ट्रव्यापी रूप ले लिया। देशभर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में रतौना कसाईखाने के विरोध में लिखा जाने लगा। लाहौर से प्रकाशित लाला लाजपत राय के समाचार पत्र वंदेमातरम् ने तो एक के बाद एक अनेक आलेख कसाईखाने के विरोध में प्रकाशित किए। माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता का प्रभाव था कि मध्यभारत में अंग्रेजों की पहली हार हुई। मात्र तीन माह में ही अंग्रेजों को कसाईखाना खोलने का निर्णय वापस लेना पड़ा। आज उस स्थान पर पशु प्रजनन का कार्य संचालित है। जहाँ कभी गो-रक्त बहना था, आज वहाँ बड़े पैमाने पर दुग्ध उत्पादन हो रहा है। कर्मवीर के माध्यम से गो-संरक्षण के प्रति ऐसी जाग्रती आई कि पहले से संचालित कसाईखाने भी स्वत: बंद हो गए। हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र का वातावरण बना सो अलग। दादा माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता का यह प्रसंग किसी भव्य मंदिर के शिखर कलश के दर्शन के समान है। यह प्रसंग पत्रकारिता के मूल्यों, सिद्धांतों और प्राथमिकता को रेखांकित करता है।

माखनलाल चतुर्वेदी  ने भारत की पत्रकारिता में ‘भारतीयता’ के भाव की स्थापना की। माखनलाल चतुर्वेदी भारतीय पत्रकारिता के ऐसे प्रकाश स्तम्भ हैं, जिनसे आज भी भारत की पत्रकारिता आलोकित हो सकती है।             

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्यप्रदेश में सहायक प्राध्यापक हैं)

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना