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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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जानेमाने चित्रकार ,पत्रकार और लेखक चंचल को जेल भेज दिया

मामला बयालीस साल पुराना है

अंबरीश कुमार / देश के जानेमाने चित्रकार ,पत्रकार और लेखक चंचल को आज अंततः जौनपुर की अदालत ने जेल भेज दिया .मामला बयालीस साल पुराना है जब वे बनारस हिंदू विश्विद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष थे .अब साठ पार के समाजवादी चंचल को बयालीस साल पुराने मामले में जेल भेजा गया है .पुलिस जो लिख दे ,निचली अदालत उसे वेद वाक्य मान लेती है .धारा लगाने में जरा सा खेल कोई करा दे तो जमानत का कोई सवाल भी नहीं उठता .और अपने उत्तर प्रदेश में तो अग्रिम जमानत की कोई व्यवस्था भी नहीं है .बयालीस साल के दौर में कई सरकार आई गई लेकिन जेल भेजने का अवसर इसी दौर में आया है .यह सोचना चाहिए .चंचल सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे हैं .सरकार की ठीक से खबर लेते रहे हैं .अब दूसरे को मौका मिला है .इस मुद्दे पर पत्रकार उर्मिलेश का सुझाव ठीक लगा कि उस दौर के छात्र नेव्ताओं से लेकर आज के छात्र नेताओं को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए .

सत्तर का वह दशक छात्र आंदोलनों का दौर था और उत्तर भारत के ज्यादातर विश्विद्यालयों में छात्र राजनीति अंगडाई ले रही थी .कभी हिंदी आंदोलन तो कभी सबको सामान शिक्षा का आंदोलन .वही दौर था जब आपातकाल का विरोध करते हुए हजारों छात्र जेल भेज दिए गए थे .मुझे याद है उस दौर में गंभीर धाराओं में मुकदमें दर्ज होते ताकि छात्र नेताओं को जेल से जल्दी जमानत भी न मिले .हम लोग भी कई बार लंबे समय तक लखनऊ की ग्यारह वीसी बैरक में मेहमान रहे .अभी भी उसमे कई मुकदमें चल रहे होंगे ,पता नहीं .ऐसे ही कई मुकदमें चंचल पर भी चले .उसी में से एक मुकदमा जौनपुर की अदालत का है .खुद चंचल ने जो लिखा इस बारे में पढ़े ,कल जौनपुर की अदालत में पुकार होगा - 

इस्टेट बनाम चंचल हाजिर हों .और हम अपने वकील दोस्त के साथ अदालत में हाजिर होंगे . मुकदमा है दफा 353 की . सरकारी कामकाज में रुकावट , बल प्रयोग , हत्या का कोशिश वगैरह वगैरह . जिस वक्त पुलिस ने यह गैर जमानती वारंट ' तामील ' कराई हम पलट कर पहुंच गए  मौका ये वारदात पर . यह वाकया 1978 का  है. हम अप बाजार महराजगंज जो कि ब्लॉक का मुख्य दफ्तर भी है वहां बैठे चाय पी रहे थे . इतने में हमारे एक परचित भारत यादव रोनी सूरत लेकर नमूदार हुए., हमने वजह पूछी तो लगे रोने और जो किस्सा सुनाया वह ज्यादती वाला था .उन दिनों सूबे में सीमेंट की किल्लत थी , और उसका परमिट मिलता था जिसे कोई मजिस्ट्रेट ही दे सकता था . एक छोटे कलेट्टर जनाब टीडी गौड़ साहब ब्लॉक का मुआयना करने आये थे . उनके सामने भारत यादव ने चार बोरी सीमेंट की दरख़ास्त दिया. बस गौड़ साहब हत्थे से उखड़ गए और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लट्ठमार भाषा मे दो चार गालियां भी दे गया .हम उन दिनों बनारस विश्विद्यालय  छात्र संघ के अध्यक्ष थे वाजिब था कि हम भिड़ते .बात बात में बतकही गर्म हो हो गई. एक कलेट्टर के लिए यह ज्यादा था। तब तक कलेट्टर को नही मालूम था कि हम ओहदा भी रखते हैं .बहरहाल थाने में हम दोनों एक दूसरे से अच्छी तरह मिल कर बात को रफा दफा कर गए लेकिन पुलिस पुलिस होती है ,उसने अपने बचाव के लिए मुकदमा दर्ज कर दिया . चालीस साल बाद हम अदालत में हाजिर होने जा रहे हैं . अगर जमानत न हुई और जेल जाना पड़ा तो जमानत बाद फिर मुलाकात होगी . तब तक के लिए अलविदा .शुक्रिया  सरकार .

आज सुबह चंचल का फोन आया .पुराने साथी राजबब्बर और समाजवादी राजेंद्र चौधरी से संपर्क नहीं हो पा रहा था .बोले ,आप इन दोनों को सूचित कर दीजियेगा .फिर साढ़े तीन बजे के आसपास जौनपुर अदालत से ही चंचल का फोन आया .बोले ,अदालत ने जमानत नहीं दी जेल जा रहा हूं .मै हतप्रभ रह गया .चंचल सोशल मीडिया पर रोज सरकार समर्थकों से उलझते रहे है .कभी पैर पीछे नहीं खींचे न पलायन करने की सोची .इस उम्र में वे मोर्चा ले रहे है .हम उनके साथ खड़े थे और खड़े रहेंगे .अदालत के इस फैसले का विरोध करते हुए .

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सम्पादक

डॉ. लीना