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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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पत्रकारों का बलिदान !

रिजवान चंचल / जोखिम उठाकर खबर देने वाले खबरनवीस पहले भी खबर बनते रहें हैं और आज भी खबर बन रहे हैं .किसी का पैर तोड़ दिया जा रहा है तो किसी के सिर में तलवार घोंप दी जा रही है, कहीं कैमरे तोड़ दिए जा रहें हैं तो कहीं ओबीवैन तक आग के हवाले कर दी जा रही हैं, गोली खाने वालों की फेहरिस्त ही काफी लम्बी है.सभी जानते हैं बाबा गुरुमीत राम रहीम प्रकरण की कवरेज के दौरान कई पत्रकार हमले के शिकार हुए.बलात्कारी बाबा को दोषी करार होने के बाद वो कितने काफिले के साथ और कितनी सुरक्षा में किस वाहन से जेल ले जाया गया वहां मुसलसल मुस्तैद तैनात मीडिया कर्मी यह दृश्य कैद नहीं कर पाये, बाबा कब अपने आवास से निकले यह भी शायद मीडिया नहीं रिकॉर्ड कर पाया,बाबा के काफिले को कहां कहां रोका कहाँ छोटा किया गया ये सारे दृश्य मीडिया नहीं ले सका, न्यूज चैनलों ने दृश्य के बजाए यह सूचना सिर्फ बोलकर या लिखकर दी ऐसा क्यों हुआ अभी मीडिया में इसका आंकलन शुरू नहीं हुआ है या नही, अभी पत्रकार विरादरी इस पर कोई विचार कर रही है.

ऐसा लिखने का मात्र मेरा उद्देश्य यही है कि आज ऐसी स्थिति बन आयी है कि खबरों को कवर करने में जहाँ पत्रकार अपनी जान माल की बाजी लगाने के बावजूद दृश्य कवर नहीं कर पा रहें हैं वहीं उन्हें इसकी कीमत कहीं कहीं जान देकर चुकानी पड़ रही है. दिनोदिन बढ़ती जा रही इन घटनाओं के बारे में भी हम सभी को गंभीरता से सोचना होगा और सभी पत्रकार साथियों मीडिया संस्थानों को संगठित भी होना होगा पत्रकारों को मनभेद मतभेद भुलाकर इस पर मंथन भी करना होगा वरना हमलावरों के हौसले बढते जायेंगें अभी कवरेज में कुछ दृश्य छूट रहे है आगे बहुत कुछ न केवल छोड़ना ही पडेगा बल्कि सत्ता के इशारों पर नाचने पर भी मजबूर होना पड़ेगा देश में मीडिया के विरूद्ध जिस तरह का वातावरण बनाया जा रहा है फिलहाल उसका असर भी दिखाई पड़ने लगा है जिसका जीता जगता उदाहरण  गुरुमीत राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद घटित घटनाये हैं.

पत्रकार साथी अन्यथा ना ले बल्कि इस विषय पर विचार अवश्य करें .हमें यह भी याद रखना होगा कि जहाँ गुरमीत राम रहीम के रसूख के आगे बड़े बड़े सूरमा नतमस्तक होते रहे वहीं वहां के लोकल सांध्यकालीन अखबार ‘पूरा सच’ के जाबांज पत्रकार रामचंद्र क्षत्रपति ने राम रहीम के द्वारा संचालित परदे के पीछे की पापी दुनिया को उजागर कर यह साबित कर दिया कि पत्रकार मात्र बड़े बैनर से ही नहीं बल्कि अपनी धारदार लेखनी से भी  पहचाने  व जाने  जाते  है लेकिन दुर्भाग्य की रामचंद्र जैसे जाबांज पत्रकार बाबा के पालतू गुर्गों की गोलियों का शिकार हो ही जाते हैं, कभी पत्रकार जगेंद्र सिंह को ये गुर्गे मिट्टी का तेल छिड़ककर जला देते है तो कही राजदेव रंजन को ये गुर्गे गोलियों से छलनी कर देते हैं लेकिन पत्रकारिता न तो डरती है न ही ठहरती है वो उसी जूनून उत्साह और बलिदान के साथ कल भी चल रही थी और आज भी चल रही है.

बताते चलें की सबसे पहले वर्ष 2002 में गुरमीत राम रहीम के पापों का भंडाफोड़ स्थानीय सांध्यकालीन अखबार ‘पूरा सच’ के जाबांज पत्रकार रामचंद्र क्षत्रपति ने किया था उन्होंने डेरे के अंदर चल रहे अय्याशियों के किस्से लगातार छापे और बताया कि कैसे लड़कियों को साध्वी के रूप में बंधक बनाकर रखा जाता है तथा  डेरे में देवियां कहीं जाने वाली लड़कियों के साथ कई करोड़ भक्तों का सानिध्य लिए स्वयं को भगवान कहने वाला ढोंगी बाबा राम रहीम कैसे उनकी अस्मिता को तार तार करता है. इसमें कोई दो राय नहीं उस समय बाबा के खिलाफ आस पास की कौन कहे दूर दूर तक कोई चूं तक करने की जुर्रत नहीं रखता था क्योंकि बाबा के तिलस्मी जादू का चमत्कार और प्रभाव शासन प्रशासन तक था ऐसे में इस स्थानीय अखबार के संपादक रामचंद्र ने इसके कुकृत्यों के खिलाफ अकेले मोर्चा खोलने की हिम्मत दिखाई खुद गोलिया खा ली किन्तु आज जब पापी बलात्कारी बाबा सलाखों के पीछे आया तो एक बार फिर इतिहास के पन्नो में कलम ने जीत दर्ज कराई शहीद रामचंद्र एक बार फिर लोगों को याद आये कहीं कहीं तो लोगों ने उनके पोस्टर लगा जयकारे भी लगाये.

लेकिन सवाल यह उठता है की कितने पत्रकार संगठन रामचंद्र के साथ खड़े हुए ऐसे जाबाज शहीद पत्रकार के नाम पर क्या किया पत्रकार संगठनों ने ये एक मात्र ऐसी घटना नहीं जिसे स्थानीय अखबार के पत्रकार ने उठाया हो ऐसे तमामों तमाम उदाहरण हैं जिसे छोटे अखबारों, लोकल पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के उठाने और वायरल होने के उपरान्त बड़े मीडिया संस्थानों ने संज्ञान में लिया. इसी सप्ताह अमेठी में दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार को बदमाश गोली मारकर भाग निकले. 4  पी एम् के एडीटर साथी संजय शर्मा ने मामला संज्ञान में आते ही मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को चिट्ठी लिखकर कड़ी कार्यवाही की मांग की लेकिन सारे पत्रकार संगठन मौन रहे. आखिर क्यों खिंची है पत्रकारों के बीच छोटे बड़े की सीमा रेखा, क्यों नहीं कर पा रहें हैं शहीद रामचंद्र जैसे जाबांज पत्रकारों का हम सम्मान? ऐसा कतई नहीं की 2002 में मात्र रामचंद्र को ही बाबा राम रहीम के कुकृत्यों का पता चला था तमाम बड़े मीडिया संस्थानो को बलात्कार की शिकार साध्वी की उस चिट्ठी का संज्ञान था जिसको लेकर वह दर दर न्याय की गुहार लगा रही थी किन्तु नहीं था तो बस पत्रकारिता का जूनून, नहीं थी कलम में उनकी धार, रामचंद्र के पास अखबार जरूर छोटा था स्थानीय था लेकिन कलम में धार भी गजब की थी और साहस भी अटूट था वो कलम की मर्यादा को बखूबी समझते थे तभी तो डंके की चोट पर रामचंद्र छत्रपति ने साध्वी के उस दो पन्ने की गुमनाम पाती को अपने अखबार की मुख्य खबर के रूप में छापा रिपोर्ट सनसनीखेज इसलिए भी हो गयी क्यों की बाबा के खिलाफ बोलने तक की तो जुर्रत किसी में थी नहीं और रामचंद्र ने अखबार की लीड खबर ही बाबा के कुकृत्यों पर लिख डाली थी बस फिर क्या था इस खबर ने पहले चिंगारी फिर आग बनकर फैलना शुरू कर दिया, खबर की आग से बलात्कारी बाबा की जैसे दुनिया ही हिलनी शुरू हो गई न केवल बाबा  ही बल्कि उसके गुर्गे इस आग की गर्मी से उबल पड़े।

छत्रपति की खबरों से सिंहासन डोलता नजर आया तो और बाबा गुरमीत राम रहीम ने पत्रकार रामचंद्र की हत्या की साजिश रच डाली अपने पालतू गुर्गों को हरी झंडी दे दी चूँकि बाबा अपने पाप पर पर्दा डालने के लिए  साध्वी के भाई रणजीत की हत्या गुर्गों से पहले ही करवा चुका था इसलिए उसने रामचंद्र को भी रास्ते से खत्म करने का गुर्गों को इशारा कर दिया साध्वी के भाए की हत्या की भी खबर बड़े बैनरों ने पुलिस के बयानों के मुताबिक लिखी मगर रामचंद्र ने हत्या की पूरी साजिस में बाबा  गुरमीत का हाँथ होना बताया यह खुलासा करने का साहस सिर्फ छत्रपति ने ही दिखाया। रामचंद्र ने खबर में गुरमीत का कनेक्शन जोड़ते हुए कहा कि हत्या मे पुलिस को जो रिवॉल्वर मिली थी उसका लाइसेंस डेरा के एक व्यक्ति के नाम था जिससे पता चलता है कि साध्वी के भाई की हत्या में बाबा गुरमीत शामिल हैं और इन्होने ही उसकी हत्या भी करवाई है इन्ही सारी बातों से खार खाए बाबा गुरुमीत ने सोचा की रामचंद्र नाम का यह रोड़ा अगर न समाप्त करवाया गया तो ये सारे भेद ही जनता के बीच उजागर कर देगा परिणाम स्वरुप रामचंद्र भी गुर्गों की गोली का शिकार बन गए ।

बात चाहे शहीद पत्रकार रामचंद्र क्षत्रपति की हो या पत्रकार हेमंत यादव या फ्रीलांस पत्रकार अधीर राय, जगेंद्र सिंह अथवा सलीम खान, नलिन मिश्रा, राजीव चतुर्वेदी, प्रमोद कुमार मुन्ना, संदीप कोठारी जैसे तमाम पत्रकार जो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी लेखनी उनके जूनून और आत्मविश्वास की गौरवगाथा न केवल पत्रकारों को दायित्वबोध ही कराती रहेगी बल्कि ऊर्जा और चेतना भी देगी आइये हम सब मिलकर ऐसे तमाम जबाज पत्रकारों के लिए अगर कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम सेल्यूट तो करें . मुझे यह कहने में कतई गुरेज नहीं की जब तक पत्रकारिता को मिशन समझने वाले लोग जिन्दा रहेंगे याद रखिये तब तक मुल्क में बाबा राम रहीम जैसे बलात्कारियों को उनके कुकर्मों की सजा मिलती रहेगी भले ही देर सबेर मिले आइये हम आप भी ऐसे जाबांज पत्रकारों को सच्ची श्रध्धांजलि देते हुए यह संकल्प लें की जहाँ भी रहेगें अपने मिशन से भटकेंगें  नही क्योंकि चापलूसी करके दौलत कमाई जा सकती हैं किन्तु इज्जत नही ,ष्पूरा सचष् के एडिटर रामचंद्र क्षत्रपति सहित उन तमाम जाबांज शहीद पत्रकारों की  सच्ची श्राद्धाजंलि यही  होगी कि हम जहाँ भी गरीब मजलूम पे जुल्म और अन्याय हो तुरन्त उसके खिलाफ आवाज उठाये चाहे जुल्म और अन्याय करने वाला कितना भी ताकतवर क्यों न हो?

रिजवान चंचल जन जागरण मीडिया मंच के राष्ट्रीय महासचिव भी  हैं 

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सम्पादक

डॉ. लीना