सुपौल से फारवर्ड प्रेस के वरिष्ठ संवाददाता अभिनव मल्लिक का अपने गाँव के लोगो के साथ बातचीत का अंश, जो उन्होंने स्वयं भेजा है-
अभी थोडी देर पहले सुपौल (बिहार) शहर मेरे घर पर ब्राह्मण टोला से कुछ लोग आये थे। बड़े टेम्पर में थे। एक के हाथ में फारवर्ड प्रेस का अगस्त अंक और पेज संख्या 32 " No Entry for Brahmins " ('ब्राह्मणों का प्रवेश निषेध' ) शीर्षक लेख की फोटो कॉपी थी। परिचय होने के बाद उनलोगों से हुई बात चीत के अंश आप लोगों लिए प्रस्तुत कर रहा हूं-
''हमलोग दुर्गापूजा में गाँव आये हुए हैं। आपका फारवर्ड प्रेस को देखें है..एक दम से एंटी ब्रह्मनिस्म लिखते है। हमलोगों ने रात में तय किया है कि इसका कंप्लेन किया जाये। इसी सिलसिले में डीप़ीआरओ से भेंट करने गए थे लेकिन भेंट नहीं हो सकी। आगे हमलोग कंर्सन्ड अथॉरिटी को लिखेंगे। हमलोग दशहरा के दिन फारवर्ड प्रेस के प्रतियों को जलाना का सोचे है। आप कुछ प्रतियाँ दीजिये..''
मैंने कहा - '' आपलोगों को जो करना हो कीजिये..जहाँ कंप्लेन करना हो कीजिये..फारवर्ड प्रेस की प्रति चाहिए तो पचीस रुपये के दर से जमा कीजिये। हां अगर कम से कम 50 कॉपी लीजियेगा तो पटना से कल आ जायेगी..लेकिन रुपैया एडवांस में जमा करना होगा..और मैगजीन अगर जलाना हो तो खबर कीजियेगा।
अभिनव मल्लिक
वरिष्ठ संवाददाता, फारवर्ड प्रेस, सुपौल
मोबाइल : 9771685333
abhinav mallick <abiotdrugs@gmail.com>
सुपौल के ब्राह्मणों की नाराजगी फारवर्ड प्रेस के लुधियाना संवाददाता राजेश मंचल की इस रिपोर्ट को लेकर है।
ब्राह्मणों का प्रवेश वर्जित
-- राजेश मंचल
पंजाब में दलित समाज के हित में कई सालों से काम कर रहे 'डॉ अबेडकर नवयुवक दल' ने एक अनोखा नियम बना रखा है। उसके सदस्यों ने अपने घरो में ब्राह्मणों के प्रवेश पर घोषित रूप से, बजाप्ता बोर्ड लगवा कर, पाबन्दी लगा दी है, जिस पर लिखा है - "ब्राह्मणों का प्रवेश वर्जित है’'। वे ब्राह्मणों के हाथ से बना खाना नहीं खाते, ना ही उन्हें अपनी किसी वस्तु को स्पर्श ही करने देते हैं।
पिछले वर्ष का वाकया है। लुधियाना में नगर निगम के चुनाव हो रहे थे। चुनाव प्रचार के क्रम में एक पार्षद पद का ब्राह्मण उम्मीदवार, दल के प्रदेश महासचिव बंशीलाल प्रेमी के घर में वोट मांगने के उद्देश्य से घुस गया। इससे बंशीलाल इतना खफा हुए कि उन्होंने तुरंत घर को अच्छी तरह धुलवा कर, शुद्दि की।
दल के सदस्य बताते हैं कि ‘’एक बार हम लोग दिल्ली में एक कार्यक्रम से हिस्सा लेकर बस से लुधियाना वापस आ रहे थे। ड्राईवर ने हाईवे के एक बड़े रेस्त्रां पर बस रोकी। वेटर ने खाना हमारी टेबिल पर लगाया ही था कि अचानक दल के एक कार्यकर्ता की नजर रेस्त्रां के मालिक पर पड़ी, जो माथे पर लम्बा-सा तिलक लगाकर कर बैठा था। यह देखते ही सभी लोग खाना छोड़कर उठ खड़े हुए। हमने वेटर से कहा कि यह खाना जूठा नहीं है। उठाना है तो उठा लो अन्यथा इसके पैसे ले लो। यह देख मालिक दौडता आया और खाना छोडने का कारण पूछने लगा। मालिक को जिज्ञासा हुई कि आखिर ये लोग ऐसी कौन सी उच्च जाति के हैं, जो एक ब्राह्मण के होटल का भी खाना नहीं खा रहे हैं। कई बार पूछने पर जब हम लोगों ने बताया कि हम भंगी और चमार जाति के हैं, तो उस पंडित की हालत देखने लायक थी।‘’
अम्बेडकर नवयुवक दल का मानना है कि ब्राह्मण जाति के संपूर्ण वहिष्कार की आवश्यकता है। इससे उन्हें दलितों के साथ किये गये अन्याय का अहसास होगा तथा दलित समाज में आत्मसम्मान की भावना आएगी।
बहरहाल, दल की इन प्रतिक्रियावादी गतिविधियों की आलोचना नहीं, तो सराहना भी नहीं की जा सकती। डॉ अम्बेडकर दल के सदस्यों को प्रतिक्रियावाद से ऊपर उठकर, अपनी उर्जा रचनात्मक कामों में लगानी चाहिए।