‘द फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर’ ने की मांग
नयी दिल्ली/ देश के प्रकाशकों ने प्रकाशन व्यवसाय को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे से बाहर रखने की मांग की है, ताकि पाठकों को सस्ती दर पर पुस्तकें उपलब्ध कराया जा सके। पहले से ही कागज तथा छपायी आदि की दरें बढ़ने से पुस्तकों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं और आम पाठक के लिए अच्छी पुस्तकें खरीदना कठिन हो गया है। प्रकाशकों के संगठन ‘द फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर’ का कहना है कि बेहतर कागज और छपायी के साथ वे भी पाठकों को अच्छी और सस्ती दर पर पुस्तकें उपलब्ध कराना चाहते हैं लेकिन यह काम तब ही संभव है जब सरकार प्रकाशन उद्योग को जीएसटी की नकारात्मक सूची में शामिल करें।
वित्त मंत्रालय ने जीएसटी के दायरे से बाहर रखे जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के बारे में अब तक दो नकारात्मक सूचियां जारी की हैं और इन दोनों सूचियों में पुस्तक उद्योग को नहीं रखा गया है। पुस्तक व्यवसायी इन सूचियों में किताबों से जुड़े कारोबार को नहीं रखे जाने से बहुत चिंतित हैं।
फेडरेशन के अध्यक्ष एन के मेहरा ने कहा कि पुस्तक व्यवसायी कर प्रणाली का पूरी तरह से पालन करते हुए अब तक सभी कर दे रहे हैं। लेकिन अब जीएसटी उनकी बड़ी चिंता बन गयी है। प्रकाशकों का मानना है कि पुस्तक व्यवसाय को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।
पुस्तकों को ज्ञान का भंडार बताते हुए फेडरेशन ने कहा कि प्राचीन काल से ही ज्ञान को कर के दायरे से बाहर रखने की भारतीय परंपरा रही है। किताबें ज्ञान दायनी होती हैं इसलिए किताबों पर बिक्री कर, मूल्यवर्द्धित कर प्रणाली-वेट आदि नहीं लगाए जाते हैं। पुस्तकें आयात की जाती हैं तो उन पर आयात शुल्क नहीं लगता है। भारत को विकासशील देश के रूप में प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने ज्ञान आधारित समाज के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इसके बिना देश की तरक्की संभव नहीं है।
फेडरेशन के अध्यक्ष ने दावा किया कि भारत में अमेरिका के बाद अंग्रेजी की सर्वाधिक पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। देश में करीब दस हजार प्रकाशक हैं जिनमें आधे से ज्यादा का फोकस बाल साहित्य पर रहता है। देश में सभी भाषाओं में लगभग एक लाख पुस्तकें हर साल प्रकाशित हो रही हैं। पिछले वर्ष देश से दो हजार करोड़ रुपए की पुस्तकों का निर्यात हुआ था जबकि महज तीन करोड़ रुपये की किताबें आयात की गयी।
पुस्तक कारोबारियों ने डिजिटल प्रकाशन को भी पुस्तक प्रकाशन व्यवसाय के लिए बड़ी चुनौती बताया और कहा कि जिस तरह से यह कारोबार पांव पसार रहा है उससे प्रिंट प्रकाशन का कारोबार प्रभावित हो सकता है। हालांकि कुछ प्रकाशकों का कहना है कि प्रिंट प्रकाशन को डिजिटल प्रकाशन बहुत प्रभावित नहीं करेगा और इससे पुस्तकों के कारोबार पर असर नहीं पड़ेगा।