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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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फारसी भाषा का 34 वां सम्मेलन संपन्न

नई पीढ़ी को फारसी से जोड़ने में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण  

साकिब ज़िया/ पटना। "अगर बेरुए ज़मीन बेहिश्त हस्त, हमीन अस्त, हमीन अस्त, हमीन अस्त" । यानी "अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है" । मुगल काल के राजा जहांगीर ने कश्मीर की सुन्दरता के लिए यह पंक्तियाँ फारसी भाषा में कहीं थीं लेकिन आज इस भाषा के भविष्य पर सवालिया निशान सा लगता दिख रहा है।


पिछले दिनों राजधानी के पटना विश्वविद्यालय प्रांगण में यूजीसी प्रायोजित "ऐपटा" अखिल भारतीय फारसी शिक्षक संघ का 34 वां सम्मेलन आयोजित किया गया। इसका मकसद फारसी भाषा को और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना था। तीन दिवसीय आयोजन का उद्घाटन पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वाई. सी. सिम्हाद्री ने संयुक्त रूप से किया। अपने उद्घाटन भाषण में कुलपति ने कहा कि फारसी को पटना विश्वविद्यालय और बिहार दोनों ने हमेशा से फारसी को प्राथमिकता दी है। समारोह में ईरान कल्चर हाउस के कल्चर्ल काउंसिलर अली दहगाही, अफगानिस्तान दूतावास के राजदूत सहित देश- विदेश के लगभग   40 विश्वविद्यालयों के शिक्षक सहित छात्र - छात्राओं ने भाग लिया।

सम्मेलन में ऐपटा की अध्यक्षा और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फारसी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष अज़रमी दोख्त सफवी ने फारसी भाषा पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि देश में कई शिक्षण संस्थानों में यह भाषा पढ़ाई जाती है लेकिन बिहार में इसका सदियों पुराना संबंध होने के बावजूद फारसी मृत्यु शय्या पर लेटी हुई है। ऐपटा की अध्यक्षा ने कहा कि भारत जैसे देश में इस भाषा का अलग ही महत्व है। फारसी बोलने वाले देशों के साथ मिलकर भारत कई नई परियोजनाओं पर काम कर रहा है। मुगल काल के इतिहास को खोजने के लिए भी इस भाषा का वजूद में रहना जरूरी है क्योंकि उस समय का इतिहास फारसी भाषा में ही लिखा गया था।

काबुल विश्वविद्यालय के प्रो. फखरी ने आज की मीडिया की पहुंच और उसके लिए इस्तेमाल की जाने वाली अत्याधुनिक संसाधनों की तारीफ करते हुए कहा कि इस भाषा के संरक्षण और प्रसार के लिए इनकी भूमिका काफी उपयोगी साबित हो रही है। हम ऐसा करके ही नई पीढ़ी को फारसी की ओर आकर्षित कर सकते हैं ताकि वे अपने पाठ्यक्रमों से इसका चयन कर सकें। सम्मेलन में इस बात की भी चर्चा की गई कि बिहार के खानकाहों में ऐसे कई महत्वपूर्ण दस्तावेज फारसी में ही मौजूद हैं जिनको पढ़ कर देश और राज्य के इतिहास के अनगिनत अनछुए पहलुओं को सामने लाने में मदद मिलेगी। सम्मेलन में राज्य के फारसी विद्वानों के साथ साथ दूसरे भाषा के शिक्षाविदों ने भी शिरकत किया। 

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सम्पादक

डॉ. लीना