Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

भारतीयता के प्रतीक बन गए थे माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और महात्मा गांधी की पुण्य स्मृति में कार्यक्रम आयोजित

भोपाल। ऐसा माना जाता है कि आत्मा की कोई जाति नहीं होती, संप्रदाय नहीं होता और न ही उसकी कोई राष्ट्रीयता होती है। परंतु, पंडित माखनलाल चतुर्वेदी को 'एक भारतीय आत्मा' कहा गया। आखिर उन्हें 'भारतीय आत्मा' क्यों कहा गया? इसके लिए यह जानना जरूरी है कि भारतीयता क्या होती है? यदि भारत की अवधारणा को समझ लिया जाए, तब भारतीयता भी स्पष्ट हो जाएगी। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने व्यक्त किए। विश्वविद्यालय की ओर से 30 जनवरी को पंडित माखनलाल चतुर्वेदी एवं महात्मा गांधी के पुण्य स्मरण में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने भी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन और उनकी पत्रकारिता के संबंध में भाषण प्रतियोगिता में अपने विचार व्यक्त किए।

कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय होने के लिए भारत में जन्म लेना जरूरी नहीं है। अनेक बाहरी व्यक्ति ऐसे हुए हैं, जो भारत में आकर भारतीय हो गए। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी लेखनी से क्या लिखा, इस संबंध में शोध करने की आवश्यकता है। इस दौर में यह भी आवश्यक है कि हम दुनिया के सामने माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता के सिद्धाँतों को प्रस्तुत करें, ताकि आज की पत्रकारिता उन सिद्धाँतों से प्रेरित हो सके। इससे पूर्व विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विद्यार्थियों ने पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन और उनकी पत्रकारिता के संबंध में भाषण दिए। इस भाषण प्रतियोगिता में मीडिया शोध विभाग की छात्रा विशाखा राजुलकर को प्रथम पुरस्कार, पत्रकारिता विभाग के छात्र अजय दुबे को द्वितीय और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के छात्र सौरभ कुमार को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ, जबकि शेष सभी को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। इस अवसर पर कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा और कुलसचिव दीपक शर्मा उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ. राखी तिवारी ने किया।

विद्यार्थियों ने यह कहा :

माखनलाल चतुर्वेदी ने अंग्रेज शासन के खिलाफ ही अपनी कलम नहीं चलाई, बल्कि उन संपादकों एवं पत्रकारों को भी सीख दी, जो अपने पत्रकारिता के धर्म का ठीक से पालन नहीं कर रहे थे। साथ ही उन्होंने पाठकों को भी नसीहत दी। - विशाखा राजुलकर

हिंदी के सम्मान की रक्षा के लिए उन्होंने अपने सभी सम्मान सरकार को लौटा दिए थे। वह स्पष्ट वक्ता और साहसी पत्रकार थे। - अजय दुबे

माखनलाल चतुर्वेदी ने प्रारंभ में क्रांतिकारियों के साथ भी काम किया। बाद में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ अहिंसा का व्रत अपनाया। लेकिन, उन्होंने कभी भी अपने समाचार पत्र में क्रांतिकारियों के लिए एक शब्द भी प्रकाशित नहीं किया। - सौरभ कुमार

भारतीयता के प्रतीक होने के कारण माखनलाल चतुर्वेदी को 'एक भारतीय आत्मा' कहा गया। - सुप्रिया सिंह

आज आवश्यकता है कि हम उस 'स्व' के उस भाव को जगाएं, जिसे माखनलाल चतुर्वेदी ने जिया था। - सौम्या तारे

नवोदित पत्रकारों को दादा की पत्रकारिता से सीख लेनी चाहिए और उनके आदर्शों पर चलना चाहिए। इस संदर्भ में भरतपुर में पत्रकारों के सम्मेलन में उनके उद्बोधन को जरूरी पढ़ा जाना चाहिए। - अभिषेक सिंह

उन्होंने अपनी कलम की ताकत से सागर के रतौना में खुल रहे कसाईखाने के विरुद्ध राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा कर दिया था। कर्मवीर में उनके संपादकीय पढ़कर हिंदू-मुस्लिम-ईसाई सब मिलकर गौहत्या के विरोध में आंदोलन में आ गए थे। अंतत: अंग्रेज सरकार को अपना यह निर्णय वापस लेना पड़ा था। - रजनी गजभि

दादा को पद और पुरस्कार से मोह नहीं था। यही कारण है कि उन्होंने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री का पद भी अस्वीकार कर दिया। - सुभाष कुमार

 

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना