शीघ्र फैसले की उम्मीद
नागपुर / हजारों करोड़ रुपए वाले महाराष्ट्र के नंबर वन समाचार पत्र समूह लोकमत पत्र समूह के प्रबंधन को माननीय औद्योगिक न्यायालय, नागपुर के एक फैसले से जोर का झटका लगा है. इस झटके से एक बार फिर लोकमत पत्र समूह के प्रबंधन का झूठ और फरेब सामने आ गया है. लोकमत पत्र समूह के प्रबंधन ने पिछले साल नवंबर में कर्मचारियों के श्रमिक संगठन लोकमत श्रमिक संघटना के सारे पदाधिकारियों, कार्यकारिणी सदस्यों और सलाहकारों को नौकरी से अवैध रूप से हटा दिया था. इसमें स्थायी और ठेके पर कार्यरत मजदूर शामिल थे. नागपुर, अकोला और गोवा के मिलाकर कुल 61 कर्मचारियों में 10 पत्रकार भी हैं. इसके साथ ही प्रबंधन ने लोकमत श्रमिक संघटना पर भी कब्जा कर लिया था और संपादक, कार्यकारी संपादक, निवासी संपादक, सिटी एडीटर, एसोसिएट एडीटर, महाप्रबंधक और प्रबंधक सहित तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को लोकमत श्रमिक संघटना का पदाधिकारी और कार्यकारी सदस्य बनाकर बैठा दिया था. संघटना के वास्तविक पदाधिकारी इसके विरोध में माननीय औद्योगिक न्यायालय की शरण में गए थे. औद्योगिक न्यायालय नागपुर ने इस कब्जे को अवैध ठहराते हुए इस पर रोक लगा दी है. इस तरह एक बार फिर लोकमत के कर्मचारियों को उनके अपने श्रमिक संघ लोकमत श्रमिक संघटना के संचालन का अधिकार मिल गया है.
शीघ्र फैसले की उम्मीद
अब मामला बचा है 61 कर्मचारियों की नौकरी का. इसमें से नागपुर, अकोला और गोवा के 31 स्थायी कर्मचारी माननीय औद्योगिक न्यायालय की शरण में हैं. मामला न्यायालय के विचाराधीन है. उम्मीद है कि इस पर भी शीघ्र ही कर्मचारियों के हित में कोई फैसला आ जाएगा.
कैट का आग्रह खारिज
अलावा इसके, लोकमत प्रबंधन को एक और झटका लगा है. लोकमत प्रबंधन ने इस मामले को औद्योगिक न्यायालय से हटाकर कैट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल) में चलाने का आग्रह किया था, जिसे माननीय न्यायालय ने खारिज कर दिया.
14 साल बाद लौटे 7 चपरासी
हाल में लोकमत प्रबंधन द्वारा 14 साल पूर्व नौकरी से निकाले गए 7 चपरासी भी सुप्रीम कोर्ट से जीतकर लौटे हैं. इन कर्मचारियों को नौकरी पर वापस लेने का आदेश माननीय सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में ही दे दिया था, मगर तब प्रबंधन ने नौकरी पर वापस लेने के बाद सारे चपरासियों का चेन्नई, दिल्ली और अन्य स्थानों पर तबादला कर दिया था. ये कर्मचारी फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और अभी मार्च 2014 में कोर्ट ने बाकायदा उन्हें यहीं नागपुर में ही पदस्थ करने का आदेश दिया. प्रबंधन ने अब इस आदेश की पूर्ति भी कर दी है. अदालत ने ही पूरा हिसाब होने तक इन चपरासियों को 15 हजार रुपए प्रति माह वेतन का भुगतान करने का आदेश भी दिया है.