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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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स्त्री चेतना को जगाती कविताएं

एम अफसर खान 'सागर'/ सुहैल मेरे दोस्त उषा राय की पहली कविता संग्रह है। कुल चौव्वालीस (44) कविताओं का यह संग्रह स्त्री जीवन के विभिन्न रूपों को दर्शाती है, जिसमें करुणा, आक्रोश, ममता, दया और यथार्थ शामिल है। इसके साथ इस संग्रह में सामाजिक, पारिवारिक विद्रूपताओं के सरोकार भी परिलक्षित हैं। आजकल कविताएं लिखना बहुत आसान समझा जाता है किंतु कविता इतनी मुश्किल है कि वह अनुभूतियों की छाप से आगे न निकले तो शब्दों के जोड़-तोड़ में बदल जाती है। मगर उषा राय ने इस संग्रह में काव्य पाठकों के लिए बेहतर रचनाएं पेश किया है। उषा राय ने जीवन में जो सहा, भोगा, देखा और जिन हालातों से उनका सामना हुआ, उन्हीं वास्तविक अनुभवों को कविता का रूप दिया है। इनकी कविताओं से गुजरने पर महसूस होता है कि अब स्त्रियां केवल विलाप नहीं करती हैं बल्कि चेतना व जागृति की वाहक हैं। संग्रह की हर कविता अपनी मकसद को पार उतरती है। स्त्री विमर्श के हर मेयार पर खरी हैं कविताएं।

इस काव्य संग्रह में स्त्री जीवन का मर्म, संघर्ष और कठिनाइयों तो परिलक्षित है ही साथ में बेहतर दुनियां की चाह यहां अनूठेपन के साथ मौजूद है। कवियत्री ने अपनी रचनाओं के मध्य से स्त्री विरोधी लोगों और फासीवादी व्यवस्था पर प्रहार किया है। सामाजिक विद्रूपताओं से घिरी व छलि स्त्री की पीड़ा व संवेदना को बखूबी कलमबद्ध किया है। संग्रह की पहली कविता ईंट भर जमीन में उषा राय ने स्त्री की उस विडंबना व संकोच को दर्शाया है, जब स्त्री को अंजान हालात और माहौल को आत्मसात करना पड़ता है-

कीचड़ में

ईंट रखती लड़की

रास्ता बनाती है

उस जगह में भी

जहाँ से गुजरते हुए

डर लगता है।

अतीत के स्त्री चरित्र से कवियत्री ने वर्तमान के स्त्रियों को प्रेरणा देते हुए शबरी और अहिल्या शीर्षक से कविता लिखी है। कविताओं के जरिये ये स्त्रियों को स्वावलंबी और मजबूत बनाने का प्रयास है। शबरी के संघर्ष भरे जीवन को उकेरते हुए लिखा है-

जंगल में

जहां खाने को नहीं

पहनने को नहीं

कैसे संभाला

मासिक धर्म और

अपने औरतपने को

शबरी मेरी अग्रजा

तुमने दी है

मुझे बुरे वक्त में

खड़े होने की

हिम्मत

अहिल्या शीर्षक से कविता में उषा राय लिखती हैं-

जब घटेगी कोई घटना

बेहद मामूली सी और

दुनिया हो जाएगी पुरुषमय

डरती हूँ प्रणाम की मुद्रा में

यही तो बात है

सच को तुम खोजो और गढ़ो

अपने लिए अपनी जैसी अहिल्या

सुहैल मेरे दोस्त शीर्षक कविता में उषा राय ने सामाजिक बंधनों में कैद प्रेम करने वाली लड़की की पीड़ा, संवेदना और अकुलाहट को दर्ज करते हुए लिखा है-

अंधेरा हो रहा है

मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूँ

तुम्हारे कहने से पहले ही कह बैठी

नहीं... नहीं बहुत सफाई देनी पड़ेगी

फिर मैंने कहा तुम जाओ सुहैल

मैं चली जाऊँगी...

हर बेटी के लिए माँ संसार के समान होती है। समाज और परिवेश के भले-बुरे से बेटी को माँ ही परिचित करती है। माँ का कंधा शीर्षक कविता के माध्यम से कवियत्री ने संदेश दिया है, अपनी बेचैनी और भावना को परोसा है-

बेटियों के लिए

कांच भरी दुनिया को

देखने का मुंडेर है

माँ का कंधा

बेटियों के लिए

दुनियादारी में

उतरने की सीढ़ी है

काव्य मन सदैव ही समाजी हालात पर नजर लगाए रहती है। हमारे आसपास जो घटता है, उससे हम हमेशा प्रभावित होते हैं। मुजफ्फरनगर दंगा पर कवियत्री का व्याकुल मन कैसे मौन रहता-

उसकी आँखों में हत्यारे की सी

क्रूरता आ रही थी, जरूर कहीं न कहीं

मौत पंजे फैलाएगी, रोको उसे

जो मौत का पैगाम लेकर जा रहा है

इतिहास की कोई तारीख

आंख मूंद लेती है

कि अभी मौत

काली चादर तान देगी

हवा रास्ता भूल जाएगी

हिंसक आंखें चमक उठेंगी

झपट्टा मारेगी शिकार पर

बदहवास भागती औरतें

कुचले जाते बच्चे, रोते बूढ़े

शहरों, कस्बों में मासूम बच्चियों से होते बलात्कार और अत्याचार पर उषा राय ने बड़ी बेबाकी से कलम चलाया है। आदमखोर शीर्षक कविता में लिखती हैं-

लार सने दांत चमकी आंखें

मारेगा झपट्टा शिकार पर

रक्त मांस का कतरा-कतरा

खाएगा, खाता है आदमखोर

मानव के वजूद के साथ ही प्रेम की शुरुआत है। इंसान चाहे जैसा हो उसके साथ प्रेम ईश्वरीय सत्ता से मिली हुई है। जिंदगी की रुमानियत का एहसास ही प्रेम है। वक़्त और हालात भले बदल जाते हैं मगर प्रेम की चादर सदैव ही इंसान के जेहन को ढके रहता है। उषा राय ने प्रेम शीषर्क से कविता में इंसानी जज्बात को परखा है-

ऐसे ही कोई

खास होता है समय

जब प्रेम उतरता है

सातवें आसमान से

प्रेम अपने आप को

दुहराता नहीं

हाँ चिन्ह अवश्य

छोड़ जाता है

इस काव्य संग्रह में उषा राय ने बहुत ही ईमानदारी और साफगोई से स्त्री वेदना, संघर्ष और प्रेम को उकेरा है। इनकी कविताओं के कथ्य और विम्ब जीवन को आशा और सुख प्रदान करती हैं। काव्य साधना भले ही निर्धारित मानदण्ड पूरे न करती हों लेकिन उनमें प्रयुक्त प्रवाहमय शब्द अपनी बात कह ही जाते हैं, जो हृदय तक पहुंचते-पहुंचते रचना का रस पाठक को स्वाद देती है। निःसंदेह यह काव्य संग्रह पठनीय है।

पुस्तक- सुहैल मेरे दोस्त (काव्य संग्रह),

कवियत्री- उषा राय,

प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, जयपुर, राजस्थान,

मूल्य- ₹ 120/

(समीक्षक स्तम्भकार व चर्चित पत्रकार हैं। सम्पर्क- 8081110808)

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सम्पादक

डॉ. लीना