भाग 1
प्रेमेन्द्र/ आज कल प्रेस क्लब की चर्चा कुछ ज्यादा ही हो रही है. आइये मैं आपको ले चलता हूँ औरंगाबाद में पत्रकारिता के इतिहास की तरफ-
1980 के दशक की शुरुआत तक औरंगाबाद में पत्रकारिता लगभग अनजानी चीज थी. उस वक्त जो मुख्य अख़बार थे उनमें आज, आर्यावर्त, पाटलिपुत्र टाइम्स और बाद में नवभारत टाइम्स का नाम जुड़ा. तब अख़बार शाम ३ या 4 बजे जिले में आते और कई बार नहीं भी आते. अधिकतर अख़बार 4 या 6 पन्ने के पूरी तरह ब्लैक एंड वाइट होते थे और उनका आकार आज के अख़बारों से काफी बड़ा होता था. उस वक्त के पत्रकारों में (80 के दशक की शुरुआत में ) नौ लाख सिंह ( द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ), कृष्ण वल्लभ सिंह नीलम ( आकाशवाणी – तब दूरदर्शन नहीं था ), अनिरुद्ध सिंह ( इंडियन नेशन ) उदय सिंह ( आज ), विश्वनाथ मिश्र ( आर्यावर्त ), और जगन्नाथ गुप्ता (नवभारत टाइम्स) , कौमी तंजीम के मास्टर साहब यानि सुहैल साहब शामिल थे. कम्युनिस्ट पार्टी भी एक अख़बार छापती थी – जनशक्ति . इसके पहले पत्रकार त्रिभुवन सिंह थे लेकिन बाद में अधिवक्ता लल्लू प्रसाद सिंह इसके लिए खबरें लिखने लगे. इनमें से किसी का मुख्य पेशा पत्रकारिता न था और ये शौकिया पत्रकारिता करते थे. उस जमाने में न टेलीफोन था न fax या कोई और संचार साधन जिससे ख़बरें भेजी जा सकें . फोटो का तो सवाल ही नहीं था. अखौरी प्रमोद जी उस जमाने में व्यावसायिक फोटोग्राफी ले कर आये और उस जमाने के पत्रकारों को कभी फोटो की जरुरत पड़ी तो अखौरी जी उपलब्ध करा देते ( 20 रु प्रति कॉपी जो उस जमाने में काफी महंगी थी ). चूँकि तब अख़बारों के एक या दो ही एडिशन होते , पन्ने कम होते तो ज्यादा ख़बरों की जरुरत ही नहीं पडती थी. अगर कोई बड़ी खबर हो तो पटना से ही छप जाती थी. लोकल पत्रकारों को कोई टेंशन न थी. कई बार तो उन्हें भी अख़बारों से ही लोकल खबर पता चलती थी. वे बैठक आदि की खबरें डाक से भेज देते जो तीन या चार दिन बाद पटना पहुंचती. ऐसे में अगर साल भर में एक खबर भी छप जाये तो बहुत था.
ऐसे में 1988 का साल बड़ा परिवर्तन ले कर आया . इस वर्ष हिंदुस्तान ने बिहार में पदार्पण किया.
शेष अगली किश्त में - संलग्न चित्र में आपको पुरानी पीढ़ी के अनिरुद्ध सिंह, नीलम बाबू , सुहैल साहब मेरे और कमल जी के साथ दिख जायेंगे.
प्रेमेन्द्र जी के फेसबुक वाल से साभार