निखिल आनंद/ उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह पूरा मामला क्या है मुझे नहीं पता, लेकिन इस स्थिति के जिम्मेदार खुद पत्रकार बंधु है।
वैसे पत्रकारों के बारे में आमलोग से अपने गाँव- घर में जब मैं बात करता हूँ तो जो दो- तीन बात सबसे बुरा बोलते हैं वो ये हैः 1. पत्रकार दारू और भोजन देखकर टूट पड़ते हैं/ 2. बिना नास्ते के इंतजाम के प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं आते हैं/ 3. स्थानीय स्तर पर बिना पैसे के खबर और खबर में नाम नहीं छपता है/ 4. घोर आश्चर्य तब होता है जब कोई फोन करके घटना या खबर बताता है और पूछता है कि कितना इस खबर को छपवाने में कितना पैसा लगेगा सो हम खर्चा- वर्चा दे देंगे। ..... अब तो हाल ये है कि कहीं पत्रकार पीटता है, धक्का- मुक्की खाता है तो लोग खुश होते हैं। आखिर लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ की इतनी बुरी छवि कैसे बनी और किसने बनाई, यह सवाल हम सभी के लिये गंभीर चिंता का प्रश्न है !