उन्हें बिना सुने लिखने का लम्बा अनुभव है
सुभाष राय/ आजकल अखबारों में बड़े ज्ञानी संवाददाता भर गये हैं। वे कहीं रिपोर्टिंग के लिए नहीं जाते। विज्ञप्ति मंगवा लेते हैं। कार्यक्रम करने वाले तमाम लोग अब उनके ज्ञान से परिचित हो गये हैं। वे भी कार्यक्रम के पहले ही विज्ञप्ति तैयार रखते हैं। अगर दुर्घटनावश कोई वक्ता नहीं आया तो भी उसका बयान अखबारों में छप जाता है। कइयों को तो यह भी पता रहता है कि कोई क्या बोलेगा। उन्हें बस इतना बता दीजिये कि कार्यक्रम में कौन-कौन आने वाला है और कार्यक्रम का विषय क्या है। वे बिना मौके पर गये, पूरी खबर लिख देते हैं। कभी अगर वे मौके पर पहुंच भी जाते हैं तो खाते-पीते रहते हैं, सुनते नहीं। उन्हें बिना सुने लिखने का लम्बा अनुभव है और उसे कोई चुनौती देने वाला नहीं। लोग अखबार में नाम मात्र छप जाने से खुश हो जाते हैं। अब नाम के साथ क्या छपा, इसकी चिंता करने की क्या जरूरत है।
मैं कल बाराबंकी में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में था। आज एक बड़े अखबार में मेरा जो बयान छपा है, उसे पढ़कर मैं खुद ही नहीं समझ पा रहा हूँ कि आखिर ज्ञानी रिपोर्टर ने अपना चिंतन मेरे नाम से क्यों छाप दिया। ऐसे पत्रकारों का भविष्य शानदार है। हां, आज के समय को देखते हुए कोई भी कह सकता है कि झूठ और गप का भविष्य बेहतरीन है।